Iran Presidential Election 2024: ईरान में 28 जून को राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होने वाला है. गौरतलब है कि पिछले महीने ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की एक विमान हादसे में मौत हो गई थी. ईरान के इस बार के राष्ट्रपति चुनाव के लिए करीब 80 दावेदार थे. गार्जियन काउंसिल ने उनमें से सिर्फ छह को चुनाव लड़ने के योग्य पाया है. इस प्रकार इस बार के ईरान के राष्ट्रपति चुनाव में 6 उम्मीदवार मैदान में उतरे हैं. ईरान में चुनाव के नियमों के अनुसार जो भी उम्मीदवार होते हैं, उनके आवेदन को वहां की गार्जियन काउंसिल देखती है और उसकी मंजूरी के बाद ही वे चुनाव में खड़े हो सकते हैं.
कौन हैं वे छह दावेदार सईद जलीली, जो राष्ट्रीय सुरक्षा आयोग के पूर्व सचिव रह चुके हैं, वे राष्ट्रपति पद के पहले उम्मीदवार हैं. पश्चिमी देशों और ईरान के बीच जो परमाणु हथियारों पर बातचीत हुई थी वह उनके वार्ताकार रहे हैं. दूसरे उम्मीदवार मोहम्मद बाक़र क़ालीबाफ़ हैं, जो संसद के मौजूदा स्पीकर हैं. तीसरे दावेदार हैं तेहरान के मौजूदा मेयर अली रज़ा ज़कानी. चौथे दावेदार हैं मौजूदा उपराष्ट्रपति आमिर हुसैन. पांचवें उम्मीदवार मुस्तफ़ा पोरमोहम्मदी हैं, जो पूर्व क़ानून और गृह मंत्री हैं. इन पांचो उम्मीदवारों के बारे में कहा जाता है कि यह सभी कट्टर इस्लामी हैं. छठे और आखिरी उम्मीदवार हैं मसूद पेज़ेशकियान, जो अभी तबरेज से सांसद है. इनके बारे में कहा जाता है कि वह थोड़े उदार विचारधारा के हैं.
कैसा होगा भारत से संबंध चुनाव के बाद कौन होगा ईरान का अगला राष्ट्रपति यह तो वहां की जनता तय करेगी, लेकिन अभी का सबसे बड़ा सवाल सबके जहन में है कि क्या नए राष्ट्रपति के बाद ईरान और बाकी दुनिया के साथ उनका रिश्ता अच्छा होगा? खासकर भारत को लेकर क्या कुछ बदल सकता है?
ईरान और भारत के बीच में संबंध उसकी बुनियाद क्षेत्रीय सुरक्षा पर आधारित है. ईरान और भारत की अफगानिस्तान और मध्य एशिया के मुद्दों पर एक राय है. दोनों देश इनसे जुड़े मामलों में एक दूसरे की मदद करते हैं. अतः यह मूलभूत सिद्धांत दोनों देशों के संबंधों को चुनाव से परे बनाते हैं. कोई भी राष्ट्रपति आए तो थोड़ा असर पड़ सकता है, लेकिन अगर कोई सुधारकारी राष्ट्रपति आते हैं तो इससे संबंधों में तब्दीली नहीं आएगी.
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अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा-चुनाव जीते तो विदेशी छात्रों को दिया जाएगा ग्रीन कार्ड
क्या होगी अमेरिका की भूमिका ईरान को लगने लगा है कि बाइडेन प्रशासन के दौरान अगर उन पर हमला हो सकता है तो ट्रंप के राष्ट्रपति बनने पर वह इसराइल को हमला करने की खुली छूट दे देंगे. अगर बाइडेन के जाने से पहले इसराइल और गाजा के बीच शांति नहीं होती है, तो ईरान को एक बड़े खतरे का सामना करना पड़ सकता है।
इसी वजह से ईरान ने कहा है कि वह परमाणु कार्यक्रम को कभी भी शुरू कर सकता है, और राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हुआ तो परमाणु हथियार बनाने से पीछे नहीं हटेगा. यह भारत के लिए चिंताजनक हो चुका है. क्योंकि भारत नहीं चाहता कि उसके पड़ोस में एक और परमाणु हथियारों से संपन्न देश हो. इसको नजर अंदाज करने के लिए जरूरी है कि बातचीत के जरिए मामला को सुलझाया जाए. हो सकता है की भारत पश्चिमी देशों से एक बार अपील करेगा कि यह मामला हल किया जाए. भारत अपनी क्षेत्रीय सुरक्षा को बिगड़ने नहीं देना चाहता, जिसमें ईरान की एक महत्वपूर्ण भूमिका है.
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