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कला : जहरीला है ‘तिब्बती कागज’ जो हजारों साल तक नहीं होता खराब

चित्र : तिब्बती कागज।

  • अखिल पाराशर, ल्हासा/तिब्बत।

चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में कागज बनाने की कला और संस्कृति सदियों से चली आ रही है। तिब्बती कागज की गुणवत्ता अन्य कागजों की तुलना में बेहद खास और अच्छी है। जैसे-जैसे तिब्बती समाज का विकास होता गया, वैसे-वैसे तिब्बत के विभिन्न स्थानों में कागज बनाने की विभिन्न शैलियां भी गठित होती गईं।

दरअसल, तिब्बती कागज बनाने में स्थानीय पौधों का इस्तेमाल होता है, जैसे- चीनी स्टेलेरा चैमेजास्म, चीनी ईगलवुड लकड़ी, कॉर्नस इत्यादि। ये पौधे सामान्यतः जहरीले होते हैं, इसलिए इन पौधों की जड़ से बनने वाले कागजों में कभी कीड़ा नहीं लगता, और हजारों तक कभी खराब नहीं होते हैं।

तिब्बत के ल्हासा क्षेत्र में नीमू काउंटी में तिब्बती कागज बनाने का एक कारखाना है, जहां आज भी हाथों से ही कागज बनाए जाते हैं। आमतौर पर कागज को मशीन से बनाया जाता है, लेकिन नीमू काउंटी में स्थित कागज कारखाना में हाथों से कागज बनाया जाता है। यही सबसे बड़ी वजह है कि इस काउंटी में बनने वाले कागजों की गुणवत्ता बेहद अच्छी है, और उनका इस्तेमाल बौद्ध सूत्र, सुलेखकला, चित्रकला आदि में किया जाता है। इसको बनाने में छीलना, उबालना, सुखाना, चूरा बनाना, हवा लगना आदि प्रक्रिया शामिल होती है।

तिब्बती कागज की तकनीक न केवल तिब्बत के भीतर, बल्कि नेपाल और भूटान जैसे पड़ोसी देशों तक फैली है। तिब्बती पठार पर शुष्क वातावरण होने के कारण, तिब्बत में बने कागज कीटाणु रोधक, कीटाणु नाशक और नमी-रोधित होते हैं, और करीब एक हजार साल तक सुरक्षित रहते हैं।

वास्तव में, असाधारण पेपर बनाने का कौशल, हजार साल पुराना लंबा इतिहास, और अनुभव तिब्बती कागज की अनूठी संस्कृति में योगदान देते हैं। इसीलिए यह बहुत जरूरी है कि भावी पीढ़ियों के लिए इन तरीकों को संरक्षित और सुरक्षित रखा जाए।

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