‘फेकबस्टर’ एक अनूठा डिटेक्टर है, जो अब बिना किसी की जानकारी से आभासी सम्मेलन (वीडियो कांफ्रेंस) में भाग लेने वाले धोखेबाजों की पहचान करने के लिए विकसित किया गया है। इस डिटेक्टर का आविष्कार भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, पंजाब में रोपड़ और ऑस्ट्रेलिया के मोनाश विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने किया है।
यह डिटेक्टर किसी को बदनाम करने या मजाक बनाने के लिए सोशल मीडिया पर हेरफेर किए गए चेहरों का भी पता लगा सकता है। वर्तमान कोरोना महामारी के मौजूदा समय में जब अधिकांश आधिकारिक और निजी बैठकें और कार्य ऑनलाइन किए जा रहे हैं, यह डिटेक्टर उपयोगकर्ता (आयोजक) को यह पता लगाने में सक्षम बनाता है कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान किसी अन्य व्यक्ति के वीडियो में हेरा-फेरी तो नहीं की गई है या धोखा तो नहीं दिया गया है।
आसान शब्दों में कहें तो यह तकनीक पता लगाएगी कि क्या कोई धोखेबाज़ वेबिनार में भाग ले रहा है या आपके किसी सहकर्मी की ओर से उसकी छवि को अपने साथ जोड़कर वर्चुअल मीटिंग में भाग ले रहा है।
प्रोजेक्ट से जुड़े डॉ. अभिनव ढल ने टेकोहंट टाइम्स से कहा, ‘इस तरह की कृत्रिम बुद्धि तकनीकों (वीडियो कॉल, जूम कॉल, गूगल मीट व अन्य) ने मीडिया सामग्री में हेरफेर में नाटकीय वृद्धि की है। ऐसी तकनीकें विकसित होती जा रही हैं, जो अधिक यथार्थवादी लगती हैं। इससे पता लगाना मुश्किल हो जाता है जिसके निजी और आधिकारिक सुरक्षा खतरे में पढ़ जाती है।
डॉ. अभिनव ढल ‘फेकबस्टर‘ विकसित करने वाली चार सदस्यीय टीम के प्रमुख सदस्यों में से एक है। वह आगे कहते हैं कि इस उपकरण ने 90 प्रतिशत से अधिक सटीकता हासिल कर ली है। इस प्रोजेक्ट से जुड़ तीन सदस्यों में एसोसिएट प्रोफेसर रामनाथन सुब्रमण्यम और दो छात्र विनीत मेहता और पारुल गुप्ता शामिल हैं।
डॉ. ढल बताते हैं कि बड़े पैमाने पर आज फर्जी समाचार, पोर्नोग्राफ़ी और ऐसी अन्य ऑनलाइन सामग्री फैलाने में हेरफेर और मीडिया सामग्री के साथ छेड़छाड़ कर गलत तरीके से पेश किया जाता है। इस तरह के जोड़-तोड़ ने हाल ही में चेहरे के भावों के बदलाव के आधार पर स्पूफिंग टूल के माध्यम से वीडियो-कॉलिंग प्लेटफॉर्म में अपना रास्ता खोज लिया है, अब इस तरह की घटना कहीं हो रही है तो तकनीक के उपयोग से इसे रोका और इस तरह का क्राइम करने वालों पर कानूनी कार्रवाई भी की जा सकती है।
दरअसल, ‘डीपफेक’ के नाम से जाने जाने वाले इन वास्तविक समय के नकली दृश्यों (वीडियो) का उपयोग ऑनलाइन परीक्षाओं और नौकरी के साक्षात्कार के दौरान भी किया जा सकता है।
‘फेकबस्टर’ सॉफ्टवेयर प्लेटफॉर्म वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग समाधानों से स्वतंत्र है और ज़ूम और स्काइप एप्लिकेशन के साथ इसका परीक्षण किया गया है। डीपफेक डिटेक्शन टूल-‘फेकबस्टर’ ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों मोड में काम करता है। इस डिवाइस को वर्तमान में केवल लैपटॉप और डेस्कटॉप के साथ जोड़ा जा सकता है प्रोजेक्ट टीम कहती है कि नेटवर्क को छोटा और हल्का बनाने का लक्ष्य पर वो काम कर रहे हैं ताकि इसे भविष्य में मोबाइल फोन/डिवाइस पर भी चलाया जा सके।
एसोसिएट प्रो. सुब्रमण्यम ने बताया कि टीम नकली ऑडियो का भी पता लगाने के लिए डिवाइस का उपयोग करने पर काम कर रही है। टीम का दावा है कि यह सॉफ्टवेयर प्लेटफॉर्म ‘फेकबस्टर’ डीपफेक डिटेक्शन तकनीक का उपयोग करके लाइव वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान धोखेबाजों का पता लगाने वाले भारत के पहले टूल में से एक है। डिवाइस का परीक्षण पहले ही किया जा चुका है और यह जल्द ही बाजार में आएगा।
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