चित्र सौजन्य: रॉयटर्स/अमित दवे / अहमदाबाद में गोबर चिकित्सा पद्धिति के दौरान लोग अपने शरीर पर गोबर का लेप लगाने के बाद प्रार्थना करते हैं।
दुनिया में, अभी तक किसी देश ने कोरोना बीमारी की कोई कारगर दवा इज़ाद नही की है। दवाएं इतने जल्दी नहीं बनती हैं, दावे जल्दबाजी में किए जाते हैं। यहां हमें इस बात पर ग़ौर करना होगा कि हर देश का अपना पर्यावरण है लोगों की दिनचर्या तो यह दवाएं कितनी सफल हो रही हैं, यह आप उन सभी देशों की मीडिया रिपोर्ट्स में पढ़ सकते हैं।
जब हम भारत की बात करते हैं तो यहां के एक राज्य मध्यप्रदेश की संस्कृति मंत्री ऊषा ठाकुर कहती हैं कि यज्ञ करने से कोरोना महामारी को काबू किया जा सकता है, हालांकि इस बात का विरोध भी हुआ लेकिन इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पढ़ता, वो यह बात बार-बार कहती हैं। उनका कहना सही है लेकिन यह उपाय तब कारगर सिद्ध होते हैं जब हर दिन यज्ञ किए जाएं और दुनिया में किसी भी तरह का प्रदूषण ना हो। दूसरी बात संभव नहीं, पहली बात इस दौर में प्रासंगिक नहीं। वो शायद आधुनिक युग में उस दौर की बात करती हैं जिसे हम वैदिक काल कहते थे।
बहरहाल, ठीक इसी तरह भारत में डॉक्टर गाय के गोबर का लेप करने की प्रथा के खिलाफ चेतावनी दे रहे हैं, लोगों का मानना है कि यह कोविड-19 वायरस को नष्ट कर देगा, जबकि डॉक्टर्स का कहना है कि इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है जबकि यह अन्य बीमारियों को फैला सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कोरोनावायरस महामारी से भारत में संक्रमित लोगों की वास्तविक संख्या 05 से 10 गुना अधिक हो सकती है। मौजूदा समय में देश भर के नागरिक अस्पताल में बेड, ऑक्सीजन, या दवाओं को खोजने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जिससे कई लोग समय पर इलाज के अभाव में मर जाते हैं।
सब कुछ अनुमान पर, अधर में ‘देश की जनगणना’
केंद्र सरकार ने हर 10 साल में होने वाली जनगणना नहीं करवाई है, ऐसे में भारत में निवास करने वाले लोगों की वास्तविक संख्या कितनी है यह कोई नहीं जानता है। सब कुछ अनुमान के आधार पर हो रहा है। टीकाकरण, स्वास्थ्य सुविधाओं को मुहैया करवाना या फिर निःशुल्क राशन, दवाएं इसका कोई वास्तविक हिसाब नहीं है। सरकार भले ही दावा करती रहे कि वो योजनाओं के जरिए मौजूदा हालात को काबू करने में सफल हो रही है लेकिन मौजूदा हालात बद-से-बद्तर हैं। यह बात भारत के लगभग हर राज्य पर लागू होती है।
विषम परिस्थिति में, शिव’राज’ को छबि की भी है चिंता
मध्यप्रदेश सरकार इस चुनौतीपूर्ण स्थिति में निःशुल्क उपचार, त्रासदी में मृत हो चुके परिवारों के बच्चों को निःशुल्क परवरिश और शिक्षा देने में मदद करने का दावा कर रही है, और गरीबों के लिए निःशुल्क कोविड उपचार योजना के जरिए कोरोना रोकथााम स्थिति पर नियंत्रण करने की कोशिश कर रही है। लेकिन चीजें अभी भी चुनौतीपूर्ण हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रदेश में स्थिति में सुधार करने के साथ अपनी छबि चमकाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। वो हर योजना के बाद अपने प्रचार-प्रसार में कोई कमी नहीं छोड़ रहे हैं।
हालांकि प्रदेश की स्थिति में सुधार का एक बड़ा कारण कोविड योद्धाओं की ईमानदारी, तत्परता और प्रशासनिक अमले की सतर्कता है। लेकिन ऐसे कई लोग भी हैं जो कोरोना कर्फ्यू का पालन नहीं कर रहे हैं। छोटे शहरों में स्थितियां नियंत्रण में हैं कुछ बड़े शहरों में प्रशासनिक अमला बिना मास्क के घूम रहे लोगों और कोरोना कर्फ्यू का उल्लंघन करने वालों पर कार्रवाई नहीं कर रहा है।
गांव में कोरोना की दस्तक और नदियों में बहते शव
उत्तरप्रदेश के मौजूदा हालात बिगड़ते जा रहे हैं, प्रशानिक दिशानिर्देशों को यहां लोग गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। भीड़ हर जगह है। मौजूदा बीजेपी सरकार यहां स्वास्थ्य सेवाओं और मृत शरीर के अंतिम संस्कार करने के लिए संसाधन मुहैया करवाने में विफल है। लोग नदियों में शव बहा रहे हैं तो गांव के गांव संक्रमित हो रहे हैं। गांव में लोग मर रहे हैं, उपचार मिलना कठिन हो रहा है। प्रदेश के ललितपुर जिले के हालात गंभीर हैं। यही हाल अन्य जिलों का है।
स्थानीय ग्रामीण कहते हैं कि पंचायती चुनाव के बाद कोरोना ने गांव में दस्तक दी, इस तबाही को समय रहते, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ रोक सकते थे? तो वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस के घाटों पर शवों की तांता लगा हुआ है, वो यहां विकास के बड़े-बड़े वायदे अपनी चिर-परिचित शैली में करते रहे हैं। लोग नाराज है। इसका अंजाम क्या होगा, यह भविष्य तय करेगा।
क्या अब गाय और गौ-मूत्र से होगा कोरोना का इलाज?
गुजरात में, हालात बेकाबू हैं फिर भी यहां ऐसे कई आश्रम चलाए जा रहे हैं जहां गाय के गोबर और गौ-मूत्र को शरीर में लेप लगाकर कोरोना से बचाने की तरकीब सुझाई जा रही है। हिंदू धर्म में, गाय को कामधेनू कहा गया है। यह जीवन और पृथ्वी का एक पवित्र प्रतीक है। सदियों से हिंदुओं ने अपने घरों को साफ करने और प्रार्थना अनुष्ठानों के लिए गाय के गोबर का उपयोग किया है, यह विश्वास करते हुए कि इसमें चिकित्सीय और एंटीसेप्टिक गुण हैं। वो गोबर स्नान कर रहे हैं। लेकिन इस बात की कोई प्रमाणिकता नहीं कि गाय के गोबर व गौ-मूत्र को शरीर में लेप करने से कोरोनावायरस से बच सकते हैं।
द वायर की रिपोर्ट बताती है कि गुजरात में कई डॉक्टर मानते हैं कि गाय गोबर व मूत्र की थेरेपी से प्रतिरोधक क्षमता में सुधार होता है और वे बिना किसी भय के रोगियों के पास जा सकते हैं और उन्हें रोक सकते हैं, गौतम मणिलाल बोरीसा, जो कि एक फार्मास्युटिकल्स कंपनी के एक सहयोगी प्रबंधक हैं, वह कहते हैं कि इस तरह के अभ्यास ने उन्हें पिछले साल कोविड-19 से उबरने में मदद की?
इस तथाकथित थैरिपी में पहले शरीर पर गोबर और गौ-मूत्र के मिश्रण को लगाकर सूखने का इंतजार किया जाता हैं, यह प्रक्रिया शरीर में ऊर्जा के स्तर को बढ़ाने के लिए योग की तरह कार्य करती है। ऐसा वो कहते हैं, फिर दूध या छाछ से धोया शरीर से गोबर और गौ-मूत्र को धोया जाता है।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. जे.ए. बताते हैं कि ‘गौ-मूत्र और गोबर जैसे उत्पादों का सेवन या लेप लगाने स्वास्थ्य जोखिम ऐसे में अन्य बीमारियां जो पशु में होती हैं वो मनुष्यों में फैल सकती हैं।’
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