- डॉ. वेदप्रताप वैदिक।
भारत के विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला हालही में रूस की राजधानी मास्को होकर आए हैं। कोविड के इस माहौल में हमारे रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री और विदेश सचिव को बार-बार रूस जाने की जरूरत क्यों पड़ रही है? ऐसा नहीं है कि किसी खास मसले को लेकर भारत और रूस के बीच कोई तनाव पैदा हो गया है या भारत-रूस व्यापार में कोई गंभीर उतार आ गया है। लेकिन ऐसे कई मुद्दे हैं, जिनकी वजह से दोनों मित्र-राष्ट्रों के बीच सतत संवाद जरूरी हो गया है।
सबसे पहला मुद्दा तो यह है कि रूस से भारत जो एस-400 मिसाइल 5 बिलियन डॉलर में खरीद रहा है, उसे लेकर अमेरिका कोई प्रतिबंध तो नहीं लगा देगा। ट्रंप-प्रशासन के दौरान यह खतरा जरूर था लेकिन अब इसकी संभावना कम ही है। ये रूसी मिसाइल इस वक्त दुनिया के सबसे तेज मिसाइल हैं। दूसरा, कोरोना महामारी से निपटने में दोनों राष्ट्र परस्पर खूब सहयोग कर रहे हैं। वैसे, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और मोदी अब तक 19 बार मिल चुके हैं। कोराना-काल में पिछले साल उनकी चार बार बात भी हुई है।
तीसरा, मुद्दा है, भारत-प्रशांत का यानी रूस को यह चिंता है कि प्रशांत महासागर क्षेत्र में भारत कहीं अमेरिका का मोहरा बनकर चीन और रूस के विरूद्ध मोर्चाबंदी तो नहीं कर रहा है? इन सभी के जवाब में श्रृंगला ने कहा है कि भारत किसी भी देश के विरुद्ध नहीं है। वह चेन्नई से व्लादिवस्तोक तक समुद्री गलियारा बनाने की भी तैयारी कर रहा है।
चौथा, अफगानिस्तान के सवाल पर श्रृंगला ने कहा कि भारत को इस बात से कोई एतराज नहीं है कि रूस और पाकिस्तान के बीच सीधा संवाद चल रहा है। यदि यह संवाद अफगानिस्तान में शांति लाता है तो भारत इसका स्वागत करेगा लेकिन अफगानिस्तान पर वह किसी राष्ट्र के कब्जे को बर्दाश्त नहीं करेगा।
इधर भारत की चिंता यह है कि अफगानिस्तान के बहाने रूस-पाक फौजी-सहकार जोरों से बढ़ रहा है। अभी-अभी अफगानिस्तान पर रूस के विशेष दूत जमीर काबुलोव ने इस्लामाबाद-यात्रा की है। दुर्भाग्यपूर्ण सच्चाई तो यह है कि अफगान-समस्या को हल करने में भारत की भूमिका नगण्य है।
भारत सरकार और बीजेपी में ऐसा कोई नहीं है, जो अफगान-स्थिति को ठीक से जानता-समझता हो। वैसे भी हमारी सर्वज्ञ सरकार अपने बयानों से ही खुश होती रहती है। दक्षिण एशिया के सबसे बड़े देश होने के नाते हमारी जिम्मेदारी सबसे ज्यादा है लेकिन अफगान-मामले में हम हाशिए में पड़े हुए हैं।
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