चित्र : लॉकडाउन के दौरान मजदूर घर की ओर जाते हुए।
आत्मनिर्भर भारत, स्वदेशी बनाम विदेशी का 20-20 मैच नहीं है बल्कि सबसे पहले हमें अपनी सोच को आत्मनिर्भर बनना होगा। आज भी ग्रामीण और शहरी तबके में रहने वाले युवा सरकारी नौकरी को ही प्राथमिकता दे रहे हैं। स्टार्टअप और स्वरोजगार करने वालों का प्रतिशत कम है।
आज से 29 साल पहले, 1991 में जब उदारीकरण आया तो आर्थिक सुधार के बाद देश में तरक्की की रफ्तार तेज हुई लेकिन इस तरक्की का फायदा किसे मिला इस पर हमेशा से विवाद चलता आया है। उदारीकरण के बाद भी भारत में गरीबी और धन की असमानता का सिलसिला बना रहा। जनमत से कई सरकार चुनी गईं, वो आई और चली गईं।
बात यदि बीते कुछ साल की करें तो मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया जैसे कई प्रोजेक्ट भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार लाई लेकिन इससे ज्यादा कुछ सफलता नहीं पाईं। ऐसे कई आंकड़े इंटनेट पर मौजूद है जो इस बात को सिद्ध करते हैं।
इन सभी प्रोजेक्ट से भाजपा की केंद्र सरकार की लोकप्रियता को काफी बल मिला, जिसके कारण यह राजनीतिक पार्टी मोदी सरकार 2.0 बनाने में सफल रही। कमजोर विपक्ष अपनी भूमिका के कारण पूरे घटनाक्रम में कई सवालों के कटघरे में हमेशा रहेगा।
तो क्या ये पांच मंत्र कारगर होंगे?
कोरोना संक्रमण के बीच, लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए आत्मनिर्भर भारत योजना शुरू की गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे शुरू करते हुए पांच पिलर्स का मंत्र दिया जोकि क्रमशः अर्थव्यवस्था, इन्फ्रास्ट्रकचर, सिस्टम, आबादी और मांग पर केंद्रित है।
पिछले, कुछ साल पीछे जाएं तो योजनाएं तो बनाईं गईं। जोकि देश के विकास के लिए बेहतर भी हैं लेकिन उनका क्रियान्वयन निचले से सबसे ऊपरी प्रशासनिक सिस्टम में भ्रष्टाचार और बिना बेहतर मूल्यांकन के चलता आया है। केंद्र सरकार की पिछली योजनाओं का विफल होने में यह बेहद महत्वपूर्ण कारक रहा है।
इस बीच इन्फ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा देने पर काफी जोर दिया जा रहा है। सरकार छोटे मजदूरों को ऋण मुहैया करवा रही है। उन्हें अपना व्यवसाय फिर से शुरू करने के लिए कई योजनाओं के जरिए रुपया भी दिया जा रहा है।
पिछले बजट में सेलफोन के अंदर लगने वाले प्रिंटेड सर्किट बोर्ड या पीसीबी पर ड्यूटी दस से बढ़ाकर बीस प्रतिशत और चार्जर पर 15 से 20 प्रतिशत कर दी गई है। लेकिन इन्हें भारत में बनाने पर जोर दिया जा रहा है। तर्क यह है कि इतना महंगा सामान खरीदने के बाद कंपनी आम आदमी को सेलफोन सस्ता कैसे बेच सकती है? ठीक, इसी तरह के ऐसे कई उदाहरण हैं।
मुफ्त अनाज से वोट बैंक तक
आत्मनिर्भर भारत की बात तो हम कर रहे हैं लेकिन कोरोना काल में सबसे ज्यादा प्रभावित हुए उन मजदूरों का क्या? सरकार उन्हें मुफ्त अनाज देकर कुछ दिनों तक राशन दे सकती है। उसके बाद इनका क्या होगा?
मुफ्त राशन से वोट बैंक तो बनाए जा सकते हैं लेकिन यदि गरीबों को रोजगार दिया जाता तो वो सम्मान से खुद श्रम कर धन अर्जित करते ऐसा वो काफी समय तक कर सकते थे क्यों कि सरकार उन्हें एक निश्चित समय तक ही मुफ्त राशन दे सकती है।
देश में बेरोजगारी चरम पर है। देश की अर्थव्यस्था सुधारने की बात भले ही केंद्र और राज्य सरकारें कर रही हैं लेकिन अर्थव्यवस्था अभी पटरी पर नहीं आई है। इसे वक्त लगेगा। वक्त इसलिए भी लगेगा क्योंकि सरकार के पास कोई ठोस रणनीति नहीं है।
यदि केंद्र में बैठे सुप्रीम नीतियों के रणनीतिकार कोई विशेष रणनीति बनाते हैं जो भारत की लचर अर्थव्यवस्था को गति दे सके तो ऐसे में निचले पायदान पर इसे लागू कर उसे उस व्यक्ति तक पहुंचाना जिसे इसकी वास्तविक जरूरत है काफी चुनौतीभरा होगा।
चुनाव सिर पर तो, समस्याएं अधर में
साल 2021 में पं.बंगाल में चुनाव है, बिहार और मध्यप्रदेश चुनाव का बिगुल बज चुका है। केंद्र और राज्य क लगभग सभी बड़े नेता चुनावी प्रचार और सत्ता की नरम कुर्सी हासिल करने में जुटे हुए हैं। ऐसे में वो सभी लोक-कल्याणकारी योजनाएं जो कोरोना के बाद लोगों की स्थिति और देश की इकॉनोमी ठीक करने के लिए बनाई गईं वो अधर में ही है।
असल मायनों में आत्मनिर्भर भारत, तब-तक बन ही नहीं सकता जब-तक लोग खुद इसके लिए जागरुक नहीं हों। जिंदगी में स्थिरता सभी चाहते हैं, लोग मानते हैं सरकारी नौकरी आर्थिक स्थिरता का सही पैमाना है। लोग सरकारी नौकरी की जद्दोजहद में आत्मनिर्भर बनने का रिस्क क्यों उठाएंगे?
यदि उठा भी लेते हैं तो आत्मनिर्भर बनने के बाद वह कितने लंबे समय तक ऐसा कर पाएंगे। हर रोज मार्केट बदलता है। चीजें बदलती हैं। ग्राहक की पसंद बदलती है और उत्पाद भी बदल जाता है। देश के नीति निर्माता भी अचनाक से कभी तालाबंदी तो कभी जीएसटी जैसे गंभीर फैसले बिस्किट की तरह तोड़कर बिखरा देते हैं।
ऐसे में आत्मनिर्भर भारत बनाने से पहले सरकार को अपनी तमाम नीतियां जो हालही में जारी की गईं उन पर पुर्नविचार करना होगा, क्योंकि आत्मनिर्भर भारत बनाने की मंशा में देश किस स्थिति में पहुंचेगा इस बात पर ज्यादा जोर देने की जरूरत नीति निर्माताओं को होना चाहिए।
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