- अखिल पाराशर, बीजिंग, चीन।
भारत की केंद्र सरकार ने देश की नई शिक्षा नीति को मंजूरी दे दी है। इसके साथ ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है। इस साल जो शिक्षा नीति आई है यह भारत के इतिहास में तीसरी शिक्षा नीति है। पहली शिक्षा नीति साल 1968 में लागू की गई थी, जब इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं, फिर साल 1986 में जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। 1992 में इसे संशोधित किया गया। और अब साल 2020 में नई शिक्षा नीति को मंजूरी मिली है, अब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं।
नई शिक्षा नीति को आने में 34 साल लग गए, और पिछले 34 साल से शिक्षा नीति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। लेकिन नई शिक्षा नीति 2020 में बड़े बदलाव किए गए हैं। कानून बनने में अभी वक्भात है लेकिन इस नई नीति में कहा गया है कि पूरे उच्च शिक्षा क्षेत्र के लिए एक ही रेगुलेटरी बॉडी होगी ताकि शिक्षा क्षेत्र में अव्यवस्था को खत्म किया जा सके। इस फैसले के बाद देश में अब शिक्षा क्षेत्र में सिर्फ एक रेगुलेटर होगा यानी एक रेगुलेटिंग बॉडी के जरिए शिक्षा व्यवस्था को संचालित की जाएगी। इसके अलावा, अब शिक्षा पर देश की जीडीपी का 6 प्रतिशत हिस्सा खर्च किया जाएगा।
दरअसल, साल 1968 में, जो शिक्षा नीति थी, वो कोठारी आयोग की सिफारिशों पर बनी थी। कोठारी आयोग (1964-66) या राष्ट्रीय शिक्षा आयोग, भारत का ऐसा पहला शिक्षा आयोग था जिसने अपनी रिपार्ट में सामाजिक बदलावों को ध्यान में रखते हुए कुछ ठोस सुझाव दिए थे। इस शिक्षा नीति में बहुत-से सुझावों को मान लिया गया लेकिन एक सुझाव को शामिल नहीं किया, वो था शिक्षा पर देश की जीडीपी का 6 प्रतिशत भाग खर्च करना।
दरअसल, कोठारी आयोग ने साल 1964 में दिये अपने प्रस्ताव में कहा था कि अगर भारत का विकास करना है, तो शिक्षा पर देश की जीडीपी का 6 प्रतिशत भाग खर्च करना ही होगा, नहीं तो बाकि देशों की तुलना में भारत काफी पीछे रह जाएगा। लेकिन भारत का दुर्भाग्य रहा है कि जब से भारत आजाद हुआ है, तब से लेकर अब तक कभी भी किसी बजट में शिक्षा पर जीडीपी का 6 प्रतिशत भाग खर्च नहीं किया गया है।
देखा जाए तो भारत शिक्षा पर जीडीपी का लगभग 3 प्रतिशत ही खर्च करता रहा है। जबकि अन्य छोटे-बड़े देश अपनी शिक्षा पर जीडीपी का बहुत बड़ा हिस्सा खर्च करते हैं। अगर छोटे से देश भूटान की बात करें, या जिम्बाब्वे जैसे विकासशील देश या फिर स्वीडन जैसे विकसीत देश की, ये देश शिक्षा पर अपनी जीडीपी का 7.5 प्रतिशत हिस्सा करते हैं। ये देश जानते हैं कि शिक्षा पर खर्च करना बहुत जरूरी है।
वहीं, कोस्टा रिका, फिनलैंड आदि देश शिक्षा पर जीडीपी का 7 प्रतिशत हिस्सा खर्च करते हैं। वर्ल्ड इकॉनॉमिक फोरम और कई अन्य रिपोर्ट के अनुसार फिनलैंड की शिक्षा प्रणाली को दुनिया में सबसे बेहतर समझा जाता है। किर्गिस्तान, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजिल आदि देशों की बात करें तो ये देश शिक्षा पर 6 प्रतिशत खर्च करते हैं, जबकि ब्रिटेन, नीदरलैंड, फिलिस्तीन अपने शिक्षा तंत्र पर जीडीपी का 5.5 प्रतिशत भाग खर्च करते हैं। मलेशिया, केन्या, मंगोलिया, कोरिया, अमेरिका आदि देश 5 प्रतिशत का खर्च करते हैं।
अगर चीन की बात करें तो चीन ने अपनी शिक्षा प्रणाली पर पिछले 7 सालों से लगातार अपनी जीडीपी का 4 प्रतिशत से ज्यादा का हिस्सा खर्च किया है। पिछले चार सालों में उसका कुल शिक्षा बजट 520 बिलियन डॉलर (तकरीबन 40 अरब रूपये) रहा है। यानी कि भारत ने लंबे समय तक एक ऐसे स्थापित तंत्र को नजरंदाज किया है कि जिसको दुनिया ने सबसे ज्यादा महत्व दिया है। उसने शिक्षा से ज्यादा रक्षा पर अधिक खर्च किया है।
अगर गौर करें तो अमेरिका, नीदरलैंड, फिनलैंड, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजिल आदि देश, जो आर्थिक सहयोग तथा विकास संगठन (ओईसीडी) के सदस्य देश हैं, उनकी शिक्षा प्रणाली, बुनियादी आधारभूत संरचना, स्कूल, विद्यार्थियों के लिए लैब, अध्ययन कार्य आदि सब पहले से ही काफी हद तक विकसित हैं। इन देशों ने पहले से ही शिक्षा के क्षेत्र में बहुत ज्यादा निवेश किया हुआ है, और अभी भी जीडीपी का बहुत बड़ा हिस्सा शिक्षा पर करते हैं। यह खर्च स्कूलों के रखरखाव, टीचर की सैलरी, रिसर्च आदि में होता है।
जाहिर है, भारत इस पहलू में भी काफी पीछे है। भारत में जो स्कूल हैं, उनका ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, स्वीडन, फिनलैंड आदि के स्कूलों से तुलना नहीं की जा सकती। भारत को अभी शिक्षा पर बहुत ज्यादा निवेश करने की आवश्यकता है।
अगर अब निवेश नहीं करेगा तो भविष्य में भारत पिछड़ जाएगा। इसके लिए जरूरत है कि भारत अपनी जीडीपी का 6 प्रतिशत हिस्सा शिक्षा पर खर्च करना शुरू करे। अभी शिक्षा पर जो पैसा खर्च होता है, उसका बड़ा हिस्सा टीचर की सैलरी में निकल जाता है, और स्कूलों का रखरखाव, लैब, सीखने के संसाधन, मिड-डे मील आदि पर बेहद कम खर्च होता है।
इसलिए नई शिक्षा नीति 2020 के तहत अब भारत सरकार जल्द से जल्द जीडीपी का 6 प्रतिशत भाग शिक्षा पर खर्च करेगी। आने वाले 10 सालों में समग्र सार्वजनिक व्यय को 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत तक किया जाएगा।
दरअसल, भारत को उम्मीद है कि साल 2030-32 तक भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी। अगर अर्थव्यव्स्था बड़ी होगी तो जाहिर है लोग ज्यादा कमाई करेंगे, टैक्स भी ज्यादा देंगे, और टैक्स के पैसों को शिक्षा पर लगाया जा सकेगा, जो भारत की शिक्षा प्रणाली के लिए अच्छे संकेत हैं।
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