दुनिया में सनातन धर्म उतना ही पुराना है, जहां तक आपसी सोच पहुंच सकती है। लेकिन यहां हम 12वीं शताब्दी की बात करें तो उस समय अंकोरवाट मंदिर, दुनिया का सबसे बड़ा प्राचीन धार्मिक स्थल था।
हिंदू धर्म के भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर विशाल परिसर में बना है, समय के साथ यह मंदिर बौद्ध धर्म के पूजा स्थल में बदल दिया गया। किंवदंती है कि भगवान बुद्ध को विष्णु जी का ही अवतार माना गया है।
यहां आप इसी जादुई मंदिर की वर्चुअल यात्रा कर सकते हैं। यह आभाषी (वर्चुअल) दौरा आपको उस दौर में ले जाएगा, जहां आप वास्तविक तौर पर नहीं जा सकते हैं। यहां आप उस जादूई करिश्मे से भरे हुए मंदिर को देख सकते हैं, जो अब प्रकृति और मनुष्य के विनाश के बाद अब बस खंडहरों के रूप में बचे हैं।
यहां आप अंकोरवाट मंदिर के वो पांच टॉवर देख सकते हैं, जो गुलाबी बलुआ पत्थर से बनाए गए। यह साल 2001 में आई हॉलीवुड फिल्म लाारा क्रॉफ्ट: टॉम्ब रेडर में भी दिखाया गया है।
अंकोरवाट मंदिर की यह वर्चुअल यात्रा पुरातत्विदों, इतिहासकारों और सीजीआई कलाकारों के सहयोग से तैयार की गई है। 360 डिग्री वाले ये दृस्य आपको उस दौर की सैर कराते हैं, जहां आप जाना चाहेंगे।
क्यों हैं अंकोरवाट के ये मंदिर खास
अंकोरवाट, कंबोडिया (एक देश) में एक मंदिर परिसर और दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक स्थल है। मंदिर 162.6 हेक्टेयर (1,626,000 वर्ग मीटर; 402 एकड़) में बनाया गया है।
यह मंदिर मूल रूप से खमेर साम्राज्य के लिए भगवान विष्णु के एक हिंदू मंदिर के रूप में बनाया गया था, जो धीरे-धीरे 12 वीं शताब्दी के अंत में बौद्ध मंदिर में बदल दिया गया।
यह मंदिर कंबोडिया के अंकोर में है जिसका पुराना नाम ‘यशोधरपुर’ था। इसका निर्माण सम्राट सूर्यवर्मन द्वितीय के शासनकाल में हुआ था। यह विष्णु मन्दिर है जबकि इस समय के आस-पास के शासकों ने प्रायः शिवमंदिरों का निर्माण किया था।
मीकांग नदी के किनारे सिमरिप शहर में बना, यह मंदिर आज भी संसार का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर है जो सैकड़ों वर्ग मील में फैला हुआ है। राष्ट्र के लिए सम्मान के प्रतीक इस मंदिर को 1983 से कंबोडिया के राष्ट्रध्वज में भी स्थान दिया गया है।
यह मंदिर मेरु पर्वत का भी प्रतीक है। इसकी दीवारों पर भारतीय धर्म ग्रंथों के प्रसंग का चित्रण है। इन प्रसंगों में अप्सराएं बहुत सुंदर चित्रित की गई हैं, असुरों और देवताओं के बीच समुद्र मंथन भी दिखाया गया है।
विश्व के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थानों में से एक होने के साथ ही यह मंदिर यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थलों में से एक है। पर्यटक यहां केवल वास्तुशास्त्र का अनुपम सौंदर्य देखने ही नहीं आते बल्कि यहाँ का सूर्योदय और सूर्यास्त देखने भी आते हैं। सनातनी लोग इसे पवित्र तीर्थस्थान मानते हैं।
मंदिर का स्थापत्य
अंकोरवाट मंदिर ख्मेर शास्त्रीय शैली से प्रभावित है। मंदिर का निर्माण कार्य सूर्यवर्मन द्वितीय ने प्रारम्भ किया परन्तु वे इसे पूर्ण नहीं कर सके। मंदिर का आगे का काम उनके भानजे और उत्तराधिकारी धरणीन्द्रवर्मन के शासनकाल में सम्पूर्ण हुआ।
मिश्र एवं मेक्सिको के स्टेप पिरामिडों की तरह यह सीढ़ी पर उठता गया है। इसका मूल शिखर लगभग 64 मीटर ऊंचा है। इसके अतिरिक्त अन्य सभी आठों शिखर 54 मीटर ऊंचे हैं।
मंदिर साढ़े तीन किलोमीटर लम्बी पत्थर की दिवार से घिरा हुआ था, उसके बाहर 30 मीटर खुली भूमि और फिर बाहर 190 मीटर चौडी खाई है।
इतिहासकारों के अनुसार चोल वंश के मंदिर की तरह ही यह मंदिर है। दक्षिण पश्चिम में स्थित ग्रन्थालय के साथ ही इस मंदिर में तीन गैलरी हैं जिसमें अंदर वाली गैलरी अधिक ऊंचाई पर हैं।
निर्माण के कुछ ही वर्ष पश्चात चम्पा राज्य ने इस नगर को लूटा। उसके उपरान्त राजा जयवर्मन-7 ने नगर को कुछ किलोमीटर उत्तर में पुनर्स्थापित किया। 14वीं या 15वीं शताब्दी में थेरवाद बौद्ध लोगों ने इसे अपने नियंत्रण में ले लिया।
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