रंग, उमंग और खुशियों का त्योहार ‘होली’। जब आती है तो रंगों के साथ गिले-शिकवे दूर करने का मौका भी लाती है। इस दिन लोग रंग में रंगे हुए हाथों से, जब एक दूसरे को मिठाई खिलाते हैं, तो आपसी सौहार्द का ये दृश्य देखते ही बनता है।
होली, होलिका दहन से शुरू होती है। दूसरे दिन धुलेडी और फिर इसी दिन से पांचवे दिन रंगपंचमी का त्योहार मनाया जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार होली फाल्गुन माह की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। होलिका दहन के दिन किसान अपनी फसल के नए दाने अग्नि को समर्पित करते हैं, इसके बाद वह अन्न खाना शुरू करते हैं।
होली दुनियाभर में मनाई जाती है। इसकी वजह है रंगों का महत्व। रंग हमारे जीवन में बेहद जरूरी है। यह रंग जब चेहरे और कपड़ों को रंगीन कर देते हैं, तो हर व्यक्ति रंग में रंगा हुआ नजर आता है और यह सब होली के दिन ही संभव है।
होली दुनियाभर में अलग-अलग नाम से मनाई जाती है। फ्लोरिडा जोकि अमेरिका में है यहां के एक कॉलेज में कलर पार्टी मनाई गई। नाम रखा गया ‘लाइफ इन कलर’ यह पार्टी इतनी प्रसिद्ध हुई कि पूरे अमेरिका में ‘लाइफ इन कलर’ नाम से एक पूरा उत्सव मनाया जाने लगा।
दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन में होली से प्रेरित होकर ‘होली वन’ नाम का उत्सव मनाया जाता है। गीत-संगीत के साथ रंग में रंगे हुए लोग एक साथ जब झूमते हैं तो यह सब अमेरिका के टेक्सास में देखा जा सकता यहां मनाया जाने वाला ‘कलरजाम’ नाम का उत्सव बिल्कुल हमारी होली की तरह ही है। स्पेन में होली की तर्ज पर ही ‘ला टोमाटीना’ (टोमैटो फाइट) फेस्टिवल का आयोजन हर साल किया जाता है।
यदि हम बात भारत की करें तो उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं में होली कुछ अलग तरह से मनाई जाती है, जिसे कुमाऊंनी होली कहते है। यहां यह त्योहार बसंत पंचमी के दिन से ही शुरू हो जाता है और इसको तीन भाग में बांटा गया है। बैठकी होली, खड़ी होली और महिला होली। इस होली में अबीर-गुलाल का टीका ही नहीं बल्कि गीतों, लोकगीतों और शास्त्रीय गीतों से सजी मंडली को सुना जा सकता है। यह उत्सव यहां 2 महीने तक चलता है।
बैठकी होली में संगीत परंपरा की शुरुआत तो 15वीं शताब्दी में चम्पावत के चन्द राजाओं के महल से शुरू होती है और बाद में यह परंपरा बनकर आस-पास के क्षेत्रों में भी प्रसिद्ध होती गई। सांस्कृतिक नगरी के रूप में मशहूर अल्मोड़ा में तो होली के त्योहार पर गाने-बजाने के लिए दूर-दूर से गायक आते हैं।
खड़ी होली में कुमाऊं का हर व्यक्ति नुकीली टोपी, कुर्ता, चूड़ीदार पायजामा पहन कर एक जगह मौजूद होते हैं और ढोल-दमाऊ को बजाते हुए होली के पारंपरिक गीतों को गाते हैं। यह गीत कुमाऊंनी बोली में होते हैं। होली गाने वाले लोग, जिन्हें होल्यार कहते हैं, वो गांव के लगभग सभी लोगों के घर जाकर होली गाते हैं, और उसकी समृद्धि की कामना करते हैं।
महिला होली अमूमन शाम में मनाई जाती है। इसमें सिर्फ महिलाएं ही होती हैं। गीतों, हंसी-ठिठोली और चर्चाएं के बीच रंग-गुलाल उड़ाने का सिलिसला जारी रहता है।
उत्तर प्रदेश के मथुरा, वृंदावन में होली बसंत पंचमी से शुरू होती है। बरसाने में लड्डू और फूलों से भी होली खेली जाती है। लड्डू को एक दूसरे पर फेंकने वाली होली खेलने की यह परंपरा काफी अनोखी होती है। होली तक यानी पूरे आठ दिनों तक ब्रज, मथुरा और वृंदावन में होली खेली जाती है।
ब्रज में बसंत पंचमी पर होली का डंडा जमीन में प्रतिष्ठित करने के साथ ही ब्रज के सभी मंदिरों और गांव में होली महोत्सव की शुरुआत हो जाती है। यह 40 दिनों तक चलता है।
खासतौर पर यहां होली महोत्सव फाल्गुन शुक्लपक्ष अष्टमी से यानि लड्डू फेक होली से शुरू होती है। होली के त्योहार को गोकुल, वृंदावन और मथुरा में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। यहां रंग वाली होली से पहले लड्डू, फूल और छड़ी वाली होली भी मनाई जाती है। ब्रज की होली में शामिल होने के लिए देश और दुनियाभर से श्रद्धालु आते हैं।
कहते हैं लड्डू होली की परंपरा द्वापरयुग से शुरू होती है। पौराणिक कहानी के अनुसार द्वापर युग में जब बरसाने की सखियों को होली खेलने का निमंत्रण लेकर नंदगांव भेजा गया था। तो राधा जी के पिता बृषभानजी के न्यौते को भगवान श्रीकृष्ण के पिता नंद बाबा ने स्वीकार कर लिया और स्वीकृति का पत्र एक पुरोहित जिसे पंडा कहते हैं उनके हाथों बरसाना भेजा।
बरसाने में बृषभानजी ने नंदगांव से आए पंडे का स्वागत किया और थाल में लड्डू खाने को दिया। इस बीच बरसाने की गोपियों ने पंडे को गुलाल लगा दिया। फिर क्या था पंडे ने भी गोपियों पर लड्डूओं को रंग की तरह फेंके तभी से यहां लड्डू होली की परंपरा मनाई जा रही है।
हरियाणा में होली रिश्तेदार के साथ मनाई जाती है। यहां भाभियां अपने देवर को पीटती है और उनके देवर सारे दिन रंग से डालते हैं। यहां इस होली को धुलेडी होली के नाम से पहचाना जाता है।
तो वहीं महाराष्ट्र और गुजरात में होली ‘मटकी फोड़’ होली परंपरा प्रचलित है। पुरुष मक्खन से भरी मटकियों को फोड़ते हैं, जिसे महिलाएं ऊंचाई पर बांधती हैं। इसे फोड़कर रंग खेलने की परंपरा कृष्ण के बालरूप की याद दिलाती है। जब पुरुष इन मटकों को फोड़ने के लिए पिरामिड बनाते हैं, तब महिलाएं होली के गीत गाते हुए इन पर बाल्टियों में रंग भरकर फेंकती हैं।
बंगाल में होली को ‘डोल पूर्णिमा’ कहते हैं। इस दिन प्रसिद्ध वैष्णव संत महाप्रभु चैतन्य का जन्मदिन माना जाता है। डोल पूर्णिमा के दिन भगवान की अलंकृत प्रतिमा का दल निकाला जाता है और भक्त पूरे उत्साह के साथ इस दल में भाग लेकर हरि की उपासना करते हैं। वहीं रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित शांति-निकेतन में होली के दिन ‘वसंत उत्सव’ के रूप में मनाया जाता है।
पंजाबी में होली सिख धर्म के अनुयायियों के लिए शारीरिक और सैनिक प्रबलता का रूप होती है। होली के अगले दिन अनंतपुर साहिब में ‘होला मोहल्ला’ का आयोजन होता है। माना जाता है इस परंपरा का आरंभ दसवें व अंतिम सिख गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी ने किया था।
मणिपुर में होली 6 दिनों तक मनाया जाता है। साथ ही इस पर्व पर यहां का पारंपरिक नृत्य ‘थाबल चोंगबा’ का आयोजन भी किया जाता है। इस तरह से होली का यह पर्व पूरे देश को प्रेम और सौहार्द के रंग में रंग देता है।
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