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जज्बा : वो दुनिया बचाना चाहती हैं, बेहद कम उम्र से कर दी है शुरूआत

All photos courtesy: licypriya kangujam

लिसिप्रिया कंगुजम पर्यावरण कार्यकर्ता हैं। जब वो 7 साल की थीं तो उन्होंने भारतीय संसद के सामने धरना दिया था, जिसके बाद वह भारत ही नहीं दुनिया में चर्चा का केंद्र बनीं।

2 अक्टूबर, 2011 में जन्मीं लिसिप्रिया मणिपुर से हैं। जिन्हें 2019 में डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम चिल्ड्रन अवार्ड, वर्ल्ड चिल्ड्रन पीस प्राइज़, और इंडिया पीस प्राइज़ से नवाजा गया। 2019 में ही उन्हें संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम में ग्रेटा थुनबर्ग और जेमी मार्गोलिन के साथ एक विशेष पर्यावरण कार्यकर्ता के रूप में चुना गया। वह भारत की सबसे कम उम्र की जलवायु कार्यकर्ता हैं।

चित्र: लिसिप्रिया कंगुजम

टेकोहंट टाइम्स को दिए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में लिसिप्रिया बताती हैं, ‘जुलाई 2018 में जब मैं सिर्फ छह 6 साल की थी, तब मुझे मंगोलिया की राजधानी उलानबातोर में आपदा जोखिम सम्मेलन 2018 (AMCDRR 2018) की एक मीटिंग में भाग लेने का अवसर मिला। मैंने पहली बार विश्व नेताओं के सामने अपनी आवाज उठाई। यह मेरी जिंदगी बदलने वाली घटना थी। सम्मेलन के दौरान, मैंने कई महान नेताओं और विश्व के कई देशों के हजारों प्रतिनिधियों से मुलाकात की। कई लोगों ने आपदा और जलवायु परिवर्तन के विभिन्न मुद्दों पर प्रकाश डाला था। मुझे दुःख होता है जब मैं उन बच्चों और उनके माता-पिता को देखती हूं जो बेघर हैं। मेरा मन उन लोगों के लिए दुःख महसूस करता है जो आपदा आने पर खुद की मदद नहीं कर सकते।’ वो बताती हैं, ‘मंगोलिया से वापस घर लौटने के बाद, मैंने 10 जुलाई 2018 को ‘द चाइल्ड मूवमेंट’ नामक एक संस्था शुरू की, जो विश्व के नेताओं से हमारे पर्यावरण, हमारे ग्रह और हमारे भविष्य को बचाने के लिए तत्काल जलवायु कार्रवाई करने का आह्वान करती है। मैं जलवायु परिवर्तन और आपदा जोखिम में कमी के बारे में अपनी चिंताओं को उठाने के लिए जगह-जगह यात्रा करती हूं। अब तक, मेरे आंदोलन के चलते 32 से अधिक देशों की यात्रा की है।’

जब स्पेन में मैड्रिड के COP-25 में युवा लिसेप्रिया कंगुजम ने मंच संभाला, तो उन्हें थोड़ी उलझन हुई। उस दौरान की यादों को बयां करते हुए वो कहती हैं, ‘मैं दुनिया के नेताओं को यह बताने के लिए पहुंची थी कि यह कार्य करने का समय है, और यह एक वास्तविक जलवायु आपातकाल है। वहां मैं प्राकृतिक आपदा में बेघर हुए लोगों से मिली जिन्होंने मुझे जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए प्रेरित किया।’

मैं सक्रिय भूमिका में थी। मेरे पिता ने समर्थन किया था, मां शुरू में सहमत नहीं थीं क्योंकि वह मेरे भविष्य के बारे में चिंतित थी। मैने एक साल तक पर्यावरण जागरूकता परियोजनाओं के लिए दुनिया भर में यात्रा की। मुझे स्कूल छोड़ना पड़ा। मैं अब अपनी शिक्षा जारी रखने के बारे में सोच रही हूं क्योंकि मेरे भविष्य और करियर को आकार देने के लिए भी इसका महत्व है।

वे सिर्फ बोल रहे हैं, और कोई कार्रवाई नहीं : 18 साल की ग्रेटा थुनबर्ग से मिलना मेरे लिए काफी प्रभावी था, वास्तव में वह एक महान क्षण था। जब हम मिले तब दोनों ही काफी परेशान थे। हम दोनों में बातचीत हुई कि, ‘विश्व नेताओं की निष्क्रियता के कारण हमारे प्रयास बेकार हो रहे हैं। हमारे नेता दीर्घकालिक समाधान खोजने के बजाय एक-दूसरे पर आरोप लगाने में व्यस्त हैं। वे सिर्फ बोल रहे हैं, और कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं।’ मैं चाहती हूं कि हमारे नेता अधिक कार्रवाई करें, अन्यथा, हमारा भविष्य जल्द खत्म हो जाएगा। मैनें यह सभी बातें COP-25 के दौरान कहीं थीं और आज भी कहती हूं।

चित्र: SUKIFU

क्या है ‘सर्वाइवल किट’ : लिसिप्रिया ने प्रदूषण कम करने के लिए एक ‘सर्वाइवल किट’ भी तैयार की है। यह पूछे जाने पर कि यह किट कैसे कार्य करती है वो बताती हैं…

  • प्रदूषण की दर अधिक होने पर हमारे शरीर में ताजी हवा प्रदान करने के लिए SUKIFU लगभग शून्य बजट किट है।
  • विशेषतौर इसे कचरे से बनाया गया है। हरित आंदोलन की मान्यता में यह पहनने योग्य पौधा है और यह दुनिया भर में घातक प्रदूषण की ओर ध्यान आकर्षित करने वाला होगा।
  • SUKIFU में एक पॉटेड प्लांट एक बैकपैक के अंदर रखा जाता है, जो एक ट्यूब को फेस मास्क में ताज़ा हवा में पहुंचाने के लिए झुका होता है। यहां एक ऑक्सीजन टैंक भी होता है जिसके पास एक पारदर्शी बॉक्स में एक पौधा होता है, जो नाक से जुड़ता है।
  • दरअसल, यह मॉडल आईआईटी, जम्मू के प्रोफेसर चंदन घोष के सहयोग से विकसित किया गया है।

ईंधन पर सब्सिडी देना बंद करें : इसी बीच साल 2020 की शुरूआत में लिसिप्रिया ने वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में एक पत्र प्रकाशित किया, जिसमें एक्टिविस्ट ग्रेटा थुनबर्ग, लुइसा न्युबॉएर, इसाबेल एक्सेलसन और लौकीना टील ने कंपनियों, बैंकों और सरकारों से कहा कि वे जीवाश्म ईंधन पर सब्सिडी देना तुरंत बंद करें। वह कहती हैं, ‘हम 2021, 2030 और 2050 तक इन चीजों को नहीं करना चाहते हैं, हम अभी यही चाहते हैं, जैसी अभी हैं। हम दुनिया के नेताओं से आह्वान करते हैं कि वे इस जीवाश्म ईंधन की अर्थव्यवस्था में निवेश को रोकें जो इस ग्रह संकट के केंद्र में है।’

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