एक छोटा बच्चा जब अपनी मां की गोद में होता है और एक भीनी सी मुस्कान बिखेरता है और फिर उसकी मां उसे जादू की झप्पी देती है। अमूमन ऐसा ही होता है। हमें उस छोटे बच्चे से सीखना चाहिए कि मुस्कुराने से दुनिया की आधी समस्याओं को दूर किया जा सकता है।
यह तो महज एक जीवंत उदाहरण है। हंसी गंभीरता का विलोम है तो मूर्खता का पर्याय। जैन धर्म का तो जन्म ही हंसी से हुआ है। इसलिए हर हाल में हंसने की कामना करो। कहते हैं गौतम बुद्ध कभी नहीं हंसे, यह बात सच नहीं लगती, लेकिन भगवान बुद्ध का एक शिष्य था ‘होतेई’। वह अपनी हंसी के लिए प्रसिद्ध था। उसकी हंसी के कारण ही उसका नाम लाफिंग बुद्धा पड़ गया यानी एक हंसता हुआ बुद्ध। उसने अपने शिष्यों को ध्यान, प्रार्थना नहीं सिखाई, केवल हंसना सिखाया। अकारण हंसना सिखाया और हंसी से ही ध्यान की एक विशेष विधि विकसित की।
यही बेबात हंसी हमें जिंदगी के माधुर्य की अनुभूति कराती है और हमारे भीतर सहज हंसी फूट पड़ती है। कहा जाता है, ‘जिस इंसान के अंदर आत्मविश्वास होता है, वही खुद पर हंस सकता है।
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि, ‘प्रसादे सर्वदुखाना हानिरस्यो प्रजायते। प्रसन्नचेतसो हयाशु बुद्धि पर्थ वतिष्ठते।।’ यानी खुश रहने मात्र से बुद्धि स्थिर हो जाती है। मन का विचलना रुक जाता है। एकाग्रता बढ़ती है। इसलिए अर्जुन चिंता छोड़ो प्रसन्नता से रहो।
इसी तरह जब युधिष्ठिर से एक बार यक्ष ने पूछा था कि, ‘जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण क्या है? तो युधिष्ठिर ने कहा था कि, निरोगी काया। स्वस्थ्य रहने के लिए तन का स्वस्थ्य रहना जरूरी नहीं, मन का स्वस्थ्य रहना भी उतना ही जरूरी है। और मन की खुराक है सकारात्मक हंसी।’
इन दिनों हंसने वालों पर हंसी आती है क्योंकि जब से पता चला है कि हंसी एक मेच्योर साइकोलॉजिकल डिफेंस है, जिसके जरिए इंसान बहुत सारी परेशानियों को आसानी से संभाल सकता है। तो क्यों न खुलकर हंसा जाए।
फीचर फंडा: हंसिए क्यों कि एक हंसी है जो तनाव, डिप्रेशन और अतःमन में खुशी का संचार करती है। हंसी ही है जो आपको हर पल तरोताजा रखती है।
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