हर साल की तरह, इस साल भी उन्हीं कुछ चुनिंदा शब्दों से हम हिंदी दिवस की शुभकामनाएं दे चुके हैं, और जल्द भूल जाएंगे! यह कोई नई बात नहीं है। हिंदी का सम्मान एक दिन का सालाना उत्सव नहीं बल्कि हिंदी भाषा की गरिमा का सम्मान किया जाना चाहिए। यह बातें किताबी जरूर लग सकती हैं, लेकिन हिंदी भाषा के सम्मान की सच्चाई कुछ ओर ही है।
देश में इस दिन कई नेता/आला अधिकारियों ने कई भाषण दिए। देश के गृहमंत्री अमित शाह ने इस दिन एक ट्वीट किया, जो चर्चा का विषय है। अभी कई बहस होंगी, उन टीवी चैनल पर जो सरकार के समर्थन और असहमति प्रकट करने के लिए तमाम कार्यक्रमों को रचनात्मकता की हद के पार पहुंचाने की कोशिश करते रहे हैं। गृहमंत्री अमित शाह ने क्या ट्वीट किया यहां आप पढ़ लीजिए।
सवाल यह नहीं की एक देश एक भाषा हो, यह संभव भी नहीं। क्योंकि हमारा देश विविधताओं को एकता के सूत्र में पिरोने की बात करता है। हम वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना से इस पृथ्वी पर मौजूद सभी देशों को देखते हैं। ऐसे में सवाल यह है कि हिंदी आगे कैसे बढ़े? सितंबर के महीने में लोग अमूमन इस बात को अपने भाषण, आलेख या किसी ओर माध्यम से पूछने में संकोच नहीं करते हैं।
लेकिन क्या यह सवाल सचमुच इतना कठिन है? या किसी को किसी भी तरह से यह पता नहीं है कि हिंदी को समाज में सम्मान क्यों नहीं मिल पाता है? आज भी सरकारी कार्यालयों में अंग्रेजी, हिंदी की अपेक्षा पहले पायदान पर होती है। वजह कई हैं, हल एक है और वो यह की यदि हिंदी को सही मायनों में हमें आगे बढ़ाना है तो हमें अहिंदी भाषी राज्यों में अनिवार्य रूप से हिंदी भाषा को शिक्षा में शामिल करना होगा। हालांकि यह विवाद का विषय बन सकता है। उन लोगों के लिए जो भाषा की राजनीति से सत्ता और कई तरह के काम को करते हुए अपनी जिंदगी की गति और दिशा चलते हैं।
तो क्या हिंदी महज पैसा कमाने वाली भाषा?
वर्तमान में हिंदी जो कुछ आगे बढ़ रही है, उसका कारण बाजार भी है। हमारे राष्ट्रीय नेता अब हिंदी बोलने में संकोच नहीं करते हैं। हिंदी का बाजार पहले सिनेमा, फिर टीवी और अब इंटरनेट के जरिए काफी बढ़ रहा है, हिंदी के कारण उसे अब लोग ‘पैसा कमाने वाली भाषा’ मानने में किसी भी तरह का संकोच नहीं करते हैं। हिंदी सिनेमा के बाद अब हिंदी के टीवी चैनल और समाचार पत्र भी विज्ञापनों के जरिए करोड़ों/अरबों रुपए सालाना कमा रहे हैं।
अंग्रेजी या अन्य भाषा अपनी एक अलग अहमियत रखती हैं, लेकिन यहां हम सिर्फ हिंदी की बात करें तो हिंदी का बाजार दिनों-दिन बढ़ रहा है। स्मार्ट फोन, सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने हिंदी के दायरे को बढ़ाने में अपनी एक अलग भूमिका निभाई है। हिंदी हमारी ‘मां’ है तो अंग्रेजी हमारी ‘चाची’ और बच्चों को अपनी ‘मां’ से ज्यादा लगाव होता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम चाची से दूरियां बना लें, वो भी हमारे लिए सम्मान रखती हैं।
हिंदी को हम अपनापन क्यों नहीं दे पाते?
हिंदी एक भाषा है, जो भावनाओं और संचार का माध्यम है। इसलिए हिंदी बोलने वाला हर वो व्यक्ति सम्मान का अधिकार रखता है जो अंग्रेजी या अन्य भाषा बोलता है। अंग्रेजी में बात करना योग्यता की निशानी नहीं, न ही किसी अन्य भाषा में बल्कि आप जिस भाषा में बोल रहे हैं वो ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे। हिंदी भारत की सबसे ज्यादा बोली जानी वाली भाषा है, तो हम हिंदी को अपनापन क्यों नहीं दे पाते (यहां में अन्य अहिंदी राज्यों की बात कर रहा हूं।)।
भारत में अंग्रेजी की दस्तक अंग्रेजो के समय तब हुई जब कलकत्ता भारत में अंग्रेजी सम्राज्य की पहली राजधानी बना। अंग्रेजी के ज्ञान, पुनर्जागरण और पश्चिमी साहित्य के जरिए आधुनिकता सबसे पहले बंगाल में ही आई। हालांकि वहां भी अपनी संस्कृति और भाषा थी। साल, 1998 के पहले, विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं के जो आंकड़े मिलते थे, उनमें हिंदी को तीसरा स्थान दिया जाता था। फरवरी, 2019 में सउदी अरब के अबू धाबी में हिन्दी को न्यायालय की तीसरी भाषा के रूप में मान्यता मिली।
2001 की भारतीय जनगणना में भारत में 42 करोड़ 20 लाख लोगों ने हिन्दी को अपनी मूल भाषा बताया। भारत के बाहर, हिंदी बोलने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका में 8,63,077। मॉरीशस में 6,85,170। दक्षिण अफ्रीका में 8,90,292, यमन में 2,32,760। युगांडा में 1,47,000। सिंगापुर में 5000। नेपाल में ८ लाख। जर्मनी में 30,000 हिंदी बोलने वाले लोग थे, यह संख्या अब तक काफी बढ़ चुकी होगी। न्यूजीलैंड में हिंदी चौथी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है।
6 दिसंबर 1946 में आजाद भारत का संविधान तैयार करने के लिए संविधान का गठन हुआ। संविधान सभा ने अपना 26 नवंबर 1949 को संविधान के अंतिम प्रारूप को मंजूरी दे दी। आजाद भारत का अपना संविधान 26 जनवरी 1950 से पूरे देश में लागू हुआ।
लेकिन भारत की कौन सी राष्ट्रभाषा चुनी जाएगी ये मुद्दा काफी अहम था। काफी सोच विचार के बाद हिंदी और अंग्रेजी को नए राष्ट्र की भाषा चुना गया। संविधान सभा ने देवनागरी लिपी में लिखी हिन्दी को अंग्रेजों के साथ राष्ट्र की आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किया था। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से निर्णय लिया कि ‘हिंदी ही भारत की राजभाषा’ होगी।
जब संविधान सभा ने एक मत से निर्णय लिया कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी। अंग्रेजी भाषा को हटाए जाने की खबर पर देश के कुछ हिस्सों में विरोध प्रर्दशन शुरू हो गया था। तमिलनाडू में जनवरी 1965 में भाषा विवाद को लेकर दंगे हुए थे। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि इस दिन के महत्व देखते हुए हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाए।
हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 में मनाया गया था। साल 1918 में महात्मा गांधी ने हिंदी साहित्य सम्मेलन में हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने को कहा था। इसे गांधी जी ने जनमानस की भाषा भी कहा था। इसलिए हिंदी लिखने, बोलने और हिंदी में अपनी बात अभिव्यक्त करने वाले लोगों को कमतर नहीं मानें, क्योंकि यह आपके द्वारा भाषा के सम्मान की सोच को इंगित करता है।
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