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शिक्षा : ‘एक देश एक जीएसटी’ तो एक देश समान शिक्षा क्यों नहीं?

हर साल 8 सितंबर को दुनियाभर में विश्व साक्षरता दिवस मनाया जाता है। इस साल यानी 2019 में युनेस्को की महानिदेशक ऑड्रे एजोले ने अपने संदेश में कहा, ‘हमारी दुनिया लगभग 7,000 जीवित भाषाओं के साथ समृद्ध और विविधता को साथ में लेकर चल रही है। आजीवन सीखने के लिए ये भाषाएं संचार के लिए साधन हैं, वे विशिष्ट पहचान, संस्कृतियों, विश्वदृष्टि और ज्ञान के साथ भी जुड़े हुई हैं। शिक्षा प्रणाली और साक्षरता विकास में भाषाई विविधता को अपनाना समावेशी समाजों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो ‘विविधता’ और ‘अंतर’ का सम्मान करते हैं, जो मानवीय गरिमा को बनाए रखते हैं।’

यदि हमें देश का विकास (वास्तिवक मायनों में) करना है तो पहले हर व्यक्ति को शिक्षित करना होगा। आप कह सकते हैं ये काम सरकार का है, लेकिन सरकार इस काम में काफी हद तक नाकाम रही है! वजह कई हैं, शब्द सीमित हैं। हम देश में ‘एक देश एक जीएसटी’ लागू कर सकते हैं, लेकिन ‘एक देश, एक समान शिक्षा’ लागू क्यों नहीं कर सकते? जब कि यह संभव है।

हमारे देश में ऐसे कई राज्य हैं, जहां की मातृभाषा अलग हैं, वहां की मातृभाषा में बच्चों को शिक्षा दी जा सकती है। तो क्यों ना हमारी वो सरकार जिसको चुनकर हमने संसद में भेजा है। ऐसी कोई पहल करे कि भारत में एक समान शिक्षा संभव हो सके। ये पहल सरकार आसानी से कर सकती है, लेकिन वो क्यों नहीं करती इसके पीछे कई कारण होते हैं। यहां हम सिर्फ निवारण की बात करेंगे। क्योंकि कारण जब भी आप गिनते हैं तो अमूमन का+’रण’ = कोई युद्ध (बहस) का विषय बनता है और निवारण बहुत दूर रह जाता है।

बहरहाल, लोगों ने पहल की है, वो अपने व्यस्त समय से कुछ समय निकाल कर कभी वृद्ध लोगों को, तो कभी बच्चों को निःशुल्क पढ़ाते हैं। बच्चों को कभी पुल के नीचे तो कभी किसी पेड़ के आस-पास पढ़ाने वाले प्रोफेशनल युवाओं की कई खबरें आप अखबारों में पढ़ते हैं। ठीक इसी तरह,  उत्तराखंड के देहरादून का प्रेम नगर पुलिस स्टेशन सुबह के 9.30 बजते ही बच्चों का स्कूल बन जाता है। ये सभी बच्चे टन नदी के पास बसे नंदा की चौकी नामक बस्ती से यहां पढ़ने आते हैं। इन बच्चों को यहां 6 घंटे यानी 3.30 बजे तक पढ़ाया जाता है। मार्च, 2018 में 10 बच्चों के साथ शुरू किए गए इस स्कूल में अब 100 से ज्यादा बच्चे पढ़ रहे हैं।

एक शिक्षक जो बच्चों के सामने हाथ जोड़ता है

तमिलनाडु का विल्लुपुरम जिला यहां के एक स्कूल के प्रिंसिपल जो अपने स्कूल के स्टूडेंट्स को हाथ जोड़कर पढ़ने का निवेदन करते हैं। प्रिसिंपल का नाम बालू है, जो 57 साल के हैं। बालू बताते हैं कि वो अपने स्कूल में बच्चों के प्रदर्शन से काफी नाखुश थे। तब उन्होंने बच्चों को पढ़ाने के लिए यह उपाय सोचा।

    वह बताते हैं, ‘जब मैंने रिजल्ट देखा तो मुझे काफी बुरा लगा। मैं उन सभी फेल हुए बच्चों के घर गया और उनके माता-पिता से बात की। मैंने बच्चों के सामने हाथ जोड़कर विनती की कि अच्छे से पढ़ाई करो और आने वाले एग्जाम में बेहतर करो।’ वे पिछले 31 सालों से बच्चों को पढ़ा रहे हैं। पांच साल पहले ही उन्हें स्कूल के प्रिंसिपल की जिम्मेदारी मिली। ऐसे कई उदाहरण भारत में मौजूद हैं।

    स्कूल में एडमिशन लेने पर जाति/धर्म का जिक्र नहीं

    भारत के संविधान के अनुच्छेद-17 में जाति के उन्मूलन की बात जरूर कही गई है, लेकिन केरल के स्टूडेंट्स ने देश में सकारात्मक संदेश देने की पहल की है। देश में विकास के दावे भले ही सरकार करती रहे, लेकिन सरकार का यह विकास जाति और धर्म के आस-पास ही घूमता है। इसको देखते हुए साल 2018 में केरल के लगभग 1.2 लाख स्टूडेंट्स ने स्कूल में एडमिशन के वक्त अपनी जाति या धर्म का जिक्र करने से मना कर दिया। केरल के शिक्षा मंत्री प्रोफेसर सी रविंद्रनाथ ने विधानसभा में स्वयं यह बात की थी।

    जुमलों से वोट तो मिल सकते हैं, हो सकता है थोड़ा बहुत विकास भी मिल जाए लेकिन शिक्षा नहीं। भारत में शिक्षा बहुत महंगी है। सरकारी शिक्षा की बात करें तो यह बेहद लचर है। केंद्रीय विद्यालय और उत्कृष्ठ विद्यालयों का कॉन्सेप्ट अच्छा है, लेकिन उनमें सीमित, विद्वान विद्यार्थी ही प्रवेश कर पाते हैं। बाकी सरकारी स्कूलों का हाल क्या है, यह एक ऐसा विषय है जिसका निराकरण करना बेहद जरूरी है।

     कहां है प्रौढ़ शिक्षा?

    आजादी के 10 साल बाद भारत सरकार ने प्रौढ़ शिक्षा की पहल करते हुए प्रौढ़ शिक्षा निदेशालय राष्‍ट्रीय आधारभूत शिक्षा केन्‍द्र (एनएफईसी) की स्थापना की। प्रौढ़ शिक्षा विभाग के रूप में पुन: नामकरण करते हुए और 1961 में इसे राष्‍ट्रीय शिक्षा संस्‍थान का भाग बनाया गया। सन् 1971 में इसे स्‍वतंत्र पहचान दी गई। आज भी देश के कुछ शहरों और गांव में यह जारी है, लेकिन बहुत कम 90 के दशक में एनएफईसी केंद्र पर प्रौढ़ शिक्षा को लेकर की जा रही पहल को साफ तौर पर देखा जा सकता था लेकिन जैसे-जैसे हम विकास की ओर बढ़ते गए प्रौढ़ शिक्षा पीछे छूटती गई।

    सरकारी डाटा पर नजर डालें तो साल 2001 की जनगणना में पुरूष साक्षरता 75.26 प्रतिशत दर्ज की गई थी, जबकि महिला साक्षरता 53.67 प्रतिशत के अस्‍वीकार्य स्‍तर पर थी। तो वहीं, 2011 की जनगणना बताती है कि भारत की साक्षरता दर उस समय 72.98 प्रतिशत थी। जबकि महिला साक्षरता दर में 10.96 प्रतिशत (2001 में 53.67 प्रतिशत और 2011 में 64.63 प्रतिशत) की वृद्धि हुई है। निरक्षरों की संख्‍या (2001 में 304.10 मिलियन से घटकर 2011 में 282.70 मिलियन हो गई थी। भारत की अगली जनगणना 2021 में होना है, ऐसे में परिणाम कुछ अलग होंगे। हालांकि ये सरकारी डाटा है, जो अमूमन सकारात्मक ही पेश किया जाता है, वास्तविक हालात कुछ ओर ही होते हैं।

    क्यों मनाते हैं विश्व साक्षरता दिवस

    आप पूछ सकते हैं कि विश्व साक्षरता दिवस क्यों मनाया जाता है, और इसका बिल्कुल सटीक उत्तर है कि मानव विकास और समाज के उन अधिकारों को जानने और साक्षरता की ओर मानव चेतना को बढ़ावा देने के लिए विश्व साक्षरता दिवस मनाया जाता है।

    दुनिया के हर देश के लोगों को साक्षर बनाने की ये पहल गरीबी हटाने, बाल मृत्यु दर को कम करने, जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने, लैंगिक समानता  के लिए जरूरी है। साक्षरता का मतलब केवल पढ़ना- लिखना या शिक्षित होना नहीं है बल्कि यह लोगों के अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूकता लाकर सामाजिक विकास के आधार को मजबूत बनाने की अंतरराष्ट्रीय पहल है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट कहती है कि दुनियाभर में चार अरब लोग साक्षर हैं और आज भी 1 अरब लोग पढ़-लिख नहीं सकते।

    26 अक्टूबर, यानी 2+6 = 8 सितंबर (विश्व साक्षरता दिवस)

    विश्व साक्षरता दिवस 2019 स्वदेशी भाषाओं के अंतरराष्ट्रीय वर्ष 2019 के जश्न और विशेष आवश्यकताओं की शिक्षा पर एकजुटता व्यक्त करने का अवसर है, जिसमें समावेशी शिक्षा पर केंद्रित है। यूनेस्को के अनुसार, लगभग 774 मिलियन वयस्कों में न्यूनतम साक्षरता कौशल की कमी है। पांच वयस्कों में से एक अभी भी साक्षर नहीं है और उनमें से दो-तिहाई महिलाएं हैं।

    लगभग 75 मिलियन बच्चे स्कूल से बाहर हैं और कई अन्य अनियमित रूप से भाग लेते हैं या बाहर जाते हैं। हालांकि, साक्षरता भी इस दिन मनाने का एक कारण है क्योंकि दुनिया में लगभग चार अरब साक्षर लोग हैं।

      संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1 जनवरी, 2003 को संयुक्त राष्ट्र साक्षरता दशक के रूप में 10 साल की अवधि की घोषणा की। यूनेस्को ने एक दशक के ढांचे के भीतर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गतिविधियों में समन्वयकारी भूमिका निभाने का निर्णय लिया। हर साल विश्व साक्षरता दिवस पर, यूनेस्को अंतरराष्ट्रीय समुदाय को विश्व स्तर पर साक्षरता और वयस्क सीखने की स्थिति की याद दिलाता है।

      26 अक्टूबर, 1966 को यूनेस्को के 14 वें सत्र में हर साल ‘8 सितंबर को विश्व साक्षरता दिवस’ (ILD) के रूप में घोषित किया गया था। 1967 के बाद से, साक्षरता के महत्व को याद दिलाने के लिए विश्व साक्षरता दिवस (ILD) समारोह दुनिया भर में जारी है।

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