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जज्बा : औसत नहीं बेहतर बनिए, फिर देखिए चमत्कार

जिंदगी एक बार मिलती है इसलिए दो बार क्यों सोचना यह बात उन लोगों पर सटीक बैठती है, जो छोटी सी उम्र में लंबा सफर तय करते हुए औसत नहीं बेहतर बनने की कवायद में जुटे रहते हैं।

औसत से बेहतर बनना है तो चुनौतियों को स्वीकार करना होगा। यदि जिंदगी में चुनौतियां न हो तो जीवन जीने का मजा ही नहीं है। हर दिन के लिए प्रत्येक व्यक्ति को कुछ न कुछ लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए। इसी के साथ चुनौतियां भी सामने दिख जाएंगी। लक्ष्य हासिल करने की कोशिश करेंगे तो चुनौतियों से जूझने की क्षमता स्वतः आ जाएगी और आप औसत से बेहतर इंसान बन सकते हैं।

किसी भी व्यक्ति का औसत बने रहना उसकी सबसे बड़ी कमजोरी होती है। गरीबी, पारिवारिक समस्याएं और रोजमर्रा की जिंदगी में आने वाली कई समस्याएं जो उसे इसी हाल में बने रहने के लिए मजबूर करती हैं। उसकी प्रगति में सबसे बड़ी बाधक होती है।

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ये जिंदगी आपको सिर्फ और सिर्फ एक ही बार मिली है और इसी जिंदगी में खुद को साबित करना है। यह आप पर निर्भर करता है, आप किस रास्ते पर चलकर खुद को साबित करते हैं।

यदि आप औसत जिंदगी, औसत सोच और औसत दिनचर्या में खुश हैं तो अभी से बेहतर बनने की कवायद में जुट जाइए। यकीन कीजिए आप बेहतर बनने की ओर जब कदम बढ़ाते हैं तो आपकी निजी और बाहरी जिंदगी में चमत्कार होने लगते हैं।

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फीचर फंडा: मेरे मोहल्ले की गली में दो बिल्लियां रहती हैं। एक काली और दूसरी ब्राउन कलर की, काली बिल्ली नाली के पानी को पीकर अपनी प्यास बुझाती है, तो ब्राउन बिल्ली नगरपालिका के द्वारा रखीं टंकी से टपकते पानी को पीकर प्यास बुझाती है।

कहने का मतलब यह है दोनों बिल्लियां साथ रहती हैं, लेकिन एक औसत जिंदगी जी रही है और दूसरी अपनी जिंदगी को बेहतर बनाना चाहती है, इसलिए वह साफ पानी पीना ही पसंद करती है। यह महज एक जीवंत उदाहरण है। लेकिन, यह नियम इंसानों पर भी लागू होता है।

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