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धरोहर : चंद्रदेव के पुत्र का खजुराहो के मंदिर से है अटूट संबंध

चंद्रमा के उपासक चंद्रवंशियों ने खजुराहो के मंदिरों की नींव रखी। ये  चंद्रमा के उपासक होते थे। सूर्यउदय और सूर्यास्त के समय इन मंदिरों की सुंदरता देखते ही बनती है। इन दोनों समय में पत्थरों पर उकेरा गया स्थापत्य मन में बस जाता है। खजुराहो मप्र के छतरपुर जिले में है।

खजुराहो के मंदिरों का निर्माण कैसे हुआ इस बारे में एक किवदंती है कि एक ब्राह्मण कन्या हेमवती को स्नान करते हुए देखकर चंद्रदेव उस पर मोहित हो गए। हेमवती और चंद्रदेव के मिलन से एक पुत्र चंद्रवर्मन का जन्म हुआ, जिसे मानव और देवता दोनों का अंश माना गया। लेकिन, बिना विवाह के संतान पैदा होने पर समाज से प्रताडि़त होकर हेमवती ने जंगल में शरण ली। जहां उसने पुत्र चन्दवर्मन के लिए माता और गुरु दोनों ही भूमिका निभाई।

चन्द्रवर्मन ने युवा होने पर चंदेल वंश की स्थापना की। चन्द्रवर्मन ने राजा बनने पर अपनी माता के उस सपने का पूरा किया, जिसके अनुसार ऐसे मंदिरों का निर्माण करना था जो मानव की सभी भावनाओं, इच्छाओं, वासनाओं और कामनाओं को उजागर करे। तब चंद्रवर्मन ने खजुराहो के पहले मंदिर का निर्माण किया और बाद में उनके उत्तराधिकारियों ने अन्य मंदिरों का निर्माण किया।

मंदिर के बाहर बनीं ये मूर्तियां मन के विकारों को दूर करती हैं, और जब व्यक्ति मंदिर के अंदर जाता है तो वासनाओं, इच्छाओं से मुक्त हो चुका होता है। सभी मंदिर तीन दिशाओं पूर्व, पश्चिम और दक्षिण दिशा में समूहों में स्थित है। अनेक मंदिरों में गर्भगृह के बाहर तथा दीवारों पर मूर्तियों की पक्तियां हैं, जिनमें देवी-देवताओं की मूर्तियां, आलिंगन करते नर-नारी, नाग, और पशु-पक्षियों की सुंदर पाषाण प्रतिमाएं उकेरी गई है।

यह प्रतिमाएं मानव जीवन से जुडें सभी भावों आनंद, उमंग, वासना, दु:ख, नृत्य, संगीत और उनकी मुद्राओं को दर्शाती है। यह शिल्पकला का जीवंत उदाहरण है। क्योंकि शिल्पियों ने कठोर पत्थरों में भी ऐसा सौंदर्य उभारा है कि देखने वालों की नजरें उन प्रतिमाओं पर टिक जाती हैं। जिनको देखने पर मन में कहीं भी अश्लील भाव पैदा नहीं होता, बल्कि यह तो कला, सौंदर्य और वासना के सुंदर और कोमल पक्ष को दर्शाती है।

शिल्पकारों ने पाषाण प्रतिमाओं के चेहरे पर शिल्प कला से ऐसे भाव पैदा किए कि यह पाषाण प्रतिमाएं होते हुए भी जीवंत प्रतीत होती हैं। खजुराहो में मंदिर अद़भुत और मोहित करने वाली पाषाण प्रतिमाओं के केन्द्र होने के साथ ही देव स्थान भी है। इनमें कंडारिया मंदिर, विश्वनाथ मंदिर, लक्ष्मण मंदिर, चौंसठ योगिनी, चित्रगुप्त मंदिर, मतंगेश्वर मंदिर, चतुर्भूज मंदिर और आदिनाथ मंदिर प्रमुख है। इस तरह ये मंदिर अध्यात्म अनुभव के साथ-साथ लौकिक जीवन से जुड़ा ज्ञान पाने का भी संगम स्थल है।

खजुराहो के पश्चिमी समूह में लक्ष्मण, कंदारिया महादेव, मतंगेश्वर, विश्वनाथ, लक्ष्मी, जगदम्बी, चित्रगुप्त, पार्वती तथा गणेश मंदिर आते हैं। यहीं पर वराह और वराह के मंडप भी हैं। जो देखने योग्य हैं।

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