प्रकृति की हरी चादर ओढ़े मांडू बाज बहादुर और रानी रूपमती के प्रेम की मिसाल पेश करता है। मांडू के महल को बाज बहादुर ने अपनी रानी के लिए बनवाया था। महल पत्थर की चट्टानों पर बना है जिसकी ऊंचाई 400 मीटर है।
कहते हैं यहां पर रानी रूपमती सुबह उठकर पहले नर्मदा नदी के दर्शन करती थीं और बाद में भोजन करती थीं। जिसके कारण बादशाह ने महल को ऊंचाई पर बनवाया था ताकि रानी को नर्मदा मां के दर्शन हो सकें।
परमार वंश के राजाओं की राजधानी
ऐतिहासिक पर्यटन स्थल ‘मांडू’ मप्र के इंदौर से लगभग 90 किलोमीटर दूर है। यह 10वीं शताब्दी में परमार राजाओं की राजधानी थी। लगभग 13वीं शताब्दी तक उस पर मालवा के सुल्तान का शासन रहा। तब इसका नाम शादियाबाद रखा गया। मांडू विंध्य पहाड़ियों से लगभग 592 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां की दीवारें आज भी वैसी ही लगती हैं, जैसी पहले थीं।
कभी था आनंद नगरी नाम
मांडू को परमार राजाओं ने नगर के रूप में स्थापित किया था। हर्ष, मुंज, सिंधु और राजा भोज इस वंश के महत्वपूर्ण शासक रहे हैं। सुल्तानों के काल में यहां महत्वपूर्ण निर्माण हुए। दिलावर खां गोरी ने इसका नाम बदलकर शादियाबाद (आनंद नगरी) रखा। होशंगशाह इस वंश का महत्वपूर्ण शासक था। मुहम्मद खिलजी ने मेवाड़ के राणा कुम्भा पर विजय के उपलक्ष्य में अशर्फी महल से जोड़कर सात मंजिला विजय स्तंभ का निर्माण कराया था। जिसके कुछ अवशेष बचे हैं।
यहां से आया था ताजमहल बनाने का विचार
शाहजहां 1617 और 1621 में जहांगीर के निमंत्रण पर मांडू आया था। वह होशंगशाह के मकबरे से बेहद प्रभावित था। 1669 में वह अपने वास्तुकार हामिद के साथ विशेष रूप से इस मकबरे की निर्माण शैली देखने मांडू आया और यहीं ताजमहल की रूप रेखा बनी। सफेद संगमरमर से बना यह मकबरा शाहजहां को पसंद आया। मकबरे के नीचे जिस प्रकार कब्र पर एक-एक बूंद पानी गिरता है, उसकी भी नकल ताजमहल में की गई। शाहजहां के वास्तुकार हामिद ने इस मकबरे के मुख्य द्वार पर एक पट्टिका लगाई, जिससे आज भी पता चलता है कि ताजमहल की प्रेरणा हुमायूं का मकबरा न होकर मांडू स्थित होशंगशाह का मकबरा है।
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