Picture Courtesy: Green Virus
- गौरव मिश्रा।
निशांत त्रिपाठी भारतीय सिनेजगत के एक प्रतिष्ठित और रचनात्मक कला में निपुण माने जाने वाले नाम हैं। आजकल उनका नाम उनकी फिल्म ‘मारक’ के कारण चर्चा का विषय बना हुआ है। फिल्म ‘मारक’ मोबाइल फोन के कैमरे से शूट कर बनाई गई है।
नब्बे मिनट के इस फिल्म की ख़ास बात ये है कि मोबाइल फोन पर शूट होने के बावजूद इसे विश्व प्रसिद्द ऑनलाइन फिल्म कंपनी ‘अमेज़न’ ने अपने बैनर तले रिलीज़ किया।
निशांत बताते हैं कि ‘मारक’ एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो भगवान् से इस अनसुलझे प्रश्न का उत्तर पाने की कोशिश करता है कि आज के समय में हर इंसान अपनी अपनी समस्या को लेकर इतना पीड़ित क्यों है? कोई पैसे से, कोई परिवार से तो कोई और किसी समस्या को लेकर.. खुद को टूटा हुआ और मृत जैसा क्यों महसूस कर रहा है? एक गंभीर विषय पर बनी ये फिल्म ज़रूर दर्शकों को अपनी रचनात्मक अभिव्यक्ति से आकर्षित करने की कोशिश करेगी।
निशांत लगभग एक दशक से ज्यादा समय से फ़िल्मी दुनिया से जुड़े हैं। उन्होंने अपने करियर की शुरूआत मुंबई स्थित प्रसिद्ध फिल्म शिक्षण संस्थान विस्लिंग वुड्स से की। फिल्म बनाने की नई-नई विधाओं का प्रयोग करते रहना निशांत की व्यक्तिगत रूचि में शामिल रहा है। संस्थान में शिक्षा के दौरान भी उन्होंने ‘बीजिंक्स्ड’ नाम की ऐनिमेटेड शॉर्ट फिल्म बनाई जिसे एक नेशनल फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट एनिमेटेड फिल्म का अवार्ड भी मिला। निशांत आईपीएल 2016 की ओपनिंग सेरेमनी के बिहाइंड द सीन डायरेक्टर भी रहे हैं।
वो The Feature Times को दिए इंटरव्यू में बताते हैं कि मोबाइल फोन से फिल्म शूट के दौरान उन्हें किस-किस किस प्रकार के रोचक अवसरों का सामना करना पड़ा। शूट से पहले उन्हें पहले अपनी ही टीम को खुद मोबाइल फोन पर शूट करके ये दिखाना पड़ा कि वो किस प्रकार अपने इस नए प्रयोग में सफल हो सकते हैं। टीम की संतुष्टि के बाद उन्होंने ये काम शुरू किया और मात्र पांच लाख रुपए के माइक्रो बजट में फिल्म बनाकर ये साबित कर दिया कि यदि व्यक्ति में वास्तविक रचनात्मकता है तो वो ज्यादा समय तक तकनीकी की मोहताज नहीं होती।
हालांकि निशांत को फिल्म बनाते समय कैमरा संबंधी कई तकनीकी रुकावटों का सामना करना पड़ा जैसे ज़ूम-इन ज़ूम-आउट का न हो पाना। लेंस का परफेक्शन न मिल पाना और डायनेमिक रेंज का न मिल पाना, लेकिन मोबाइल फोन के आश्चर्यजनक उपयोग से निशांत ने ये काम बखूबी कर दिखाया। शूट के दौरान निशांत ने प्रोफेशनल लाइटिंग के बजाय घरेलू लाइट्स का इस्तेमाल किया जैसे बल्ब, हैलोजन आदि का उपयोग किया।
फिल्म की एडिटिंग भी एक लैपटॉप पर की गई। इतनी चुनौतियों के बावजूद भी निशांत ने एक ऐसी फिल्म बनाई जो अपने सन्देश, रचनात्मकता और बेहतर प्रस्तुतिकरण की वजह से आज अमेज़न जैसी कंपनी के बैनर तले रिलीज की गई।
निशांत उन सभी फिल्मकारों के लिए एक प्रेरणा स्रोत हैं जो अपनी सोच को रुपहले परदे पर बदलता हुआ देखना चाहते हैं, लेकिन आर्थिक और तकनीकी व्यवस्थाओं की कमी की वजह से उसे पूरा नहीं कर पाते। इंसान की चाह ही उसकी राह तय करती हैं और निशांत ने ये कर दिखाया।
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