Tiger State में चीतों की एंट्री: मध्यप्रदेश के कूनो पालपुर सेंचुरी में 17 सितंबर को नामीबिया से 8 चीते लाए जाएंगे। इस मेगा इवेंट पर देश-दुनिया की नजर है, क्योंकि यह चीतों की इस तरह की पहली शिफ्टिंग है। भले ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भारत में 70 साल बाद चीते दिखेंगे, लेकिन इस प्रोजेक्ट के पीछे मप्र कैडर के 1961 बैच के आईएएस अफसर एमके रंजीत सिंह की 50 साल की मेहनत है। उन्होंने 1972 में भारत को फिर से चीतों का घर बनाने का आइडिया सबसे पहले दिया और इस प्रोजेक्ट का ड्राफ्ट तैयार किया था। तब ईरानी चीतों को लाने का एग्रीमेंट इस शर्त के साथ हुआ था कि भारत उन्हें लायन देगा।
कल होने जा रहा प्रदेश में बहुत बड़ा काम Huge work in the state going to be done tomorrowTiger State में चीतों की एंट्री: कल होने जा रहा प्रदेश में बहुत बड़ा काम,कुनो नेशनल पार्क में हो रहा चितो का वेलकम Tiger State में चीतों की एंट्री:
रंजीत सिंह ने फॉरेस्ट सेक्रेटरी रहते हुए कूनो के जंगल को सेंचुरी बनाने की पहल की थी। वे रिटायरमेंट के बाद भी चीता प्रोजेक्ट पर लगे रहे। 2020 में अफ्रीकी चीतों को लाने का रास्ता साफ हुआ। उनके अनुसार कूनो में चीतों की रफ्तार के अनुसार जंगल, भोजन और अनुकूल मौसम है। यही कारण है कि कूनो का चयन किया गया।मैंने चीतों को देश में फिर से बसाने की पहल 50 साल पहले की थी। देश में पहला वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 में बना था। उस समय ईरान से चीते लाकर भारत में बसाने का एक ड्राफ्ट तैयार किया था। भारत और ईरान सरकार के बीच 1973 में एग्रीमेंट हुआ था। भारत को ईरानी चीते और ईरान को भारत के शेर चाहिए थे।
एमके रंजीत कहते हैं, एग्रीमेंट जरूर हो गया था, लेकिन भारत सरकार की चीते लाने के लिए कोई मैदानी तैयारी नहीं थी। कुछ सेंचुरी मप्र सरकार ने बनाई थी। यह काम 1975 में आपातकाल के दौरान भी चलता रहा। इस दौरान मेरा ट्रांसफर यूनाइटेड नेशन में हो गया था। ईरान में जिस सरकार से भारत ने एग्रीमेंट किया था, वह सत्ता से बेदखल हो गई। ईरान की नई सरकार को वाइल्ड लाइफ में कोई रुचि नहीं थी, इसलिए बात आई-गई हो गई।
कुनो नेशनल पार्क में हो रहा चितो का वेलकम Chito’s welcome in Kuno National Park पहली सेंचुरी तो गुजरात के कच्छ में बनाई थी?
चीतों के लिए पहली सेंचुरी गुजरात के कच्छ में बनाई गई थी, लेकिन उसका प्री-बेस धीरे-धीरे खत्म हो गया था। मप्र की सेंचुरी के मुकाबले उसका एरिया बड़ा था। मुझे मध्यप्रदेश सरकार ने यूएन छोड़कर प्रदेश में काम करने का ऑफर दिया तो मैं 1981 में वापस आ गया।
एमके रंजीत कहते हैं, मुझे फॉरेस्ट सेक्रेटरी बनाया गया था। इस दौरान ही मैंने कूनो पालपुर सेंचुरी का ड्राफ्ट तैयार किया था। मुझे वाइल्ड लाइफ ऑफ इंडिया का डायरेक्टर बना दिया गया। इसके बाद 1985 में फिर चीतों को लाने की कवायद शुरू की, लेकिन तब तक ईरान में चीतों की संख्या तेजी से कम हो गई थी। इसके बाद यह प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में चला गया। हमने नए सिरे से 2008-09 में प्रोजेक्ट तैयार किया। मैं नामीबिया गया और फिर केंद्र सरकार से बातचीत की।
Tiger State में चीतों की एंट्री:
इसके बाद केंद्र और राज्य सरकार के बीच नामीबिया से चीते लाने की सहमति बनी थी। उस दौरान तत्कालीन वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने एक कमेटी बनाई थी, जिसका अध्यक्ष मुझे बनाया गया। मामला 2010 में सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया था। अदालत ने 2013 में आदेश दिया था कि कूनो में चीते नहीं लायन बसाए जाएंगे। कमेटी ने कोर्ट में कहा था कि कूनो सेंचुरी लायन के लिए उपयुक्त है, लेकिन यहां पहले चीतों को बसाया जा सकता है, इसके बाद लायन। इसके बाद एक बार फिर यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया।मेरी सिफारिश पर केंद्र सरकार ने रिव्यू पिटीशन दायर की, जिसमें कहा गया कि कोर्ट अपने आदेश पर पुनर्विचार करे। सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2020 में नया आदेश जारी किया। इसमें कहा गया कूनो में चीते बसाए जा सकते हैं। इसकी निगरानी के लिए कोर्ट ने एक कमेटी बनाई थी, जिसका चेयरमैन मुझे बनाया गया था।
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