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Bio Diversity: जैव विविधता से भरा है मध्यप्रदेश, छह बाघ अभयारण्य और व्हाइट टाइगर सफारी है सूबे की शान

विस्तार देश का दिल मध्यप्रदेश अपनी प्राकृतिक सुंदरता के साथ साथ जैव विविधता से भरा हुआ है। प्रदेश अब टाइगर स्टेट के साथ ही अब अफ्रीकी चीता के लिए भी जाना जाएगा। देश में करीब 70 साल बाद चीता की वापसी हो रही है, और वो भी मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले में स्थित कूनो राष्ट्रीय अभ्यारण्य में। प्रदेश को प्राकृतिक खूबसूरती तो कुदरत की ही देन है। लेकिन देश में सबसे ज्यादा एक तिहाई हिस्से में वन इसी प्रदेश में फैले हुए हैं।

प्रदेश में 28.27 फीसदी वन क्षेत्र है, जो कि पूरे देश के राज्यों से ज्यादा है। इन वनों में कई तरह के वन्य जीव विचरण करते हैं। लेकिन इस वन संपदा और वन्य जीवों को संरक्षण और संवर्धन देने के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने कई सराहनीय कार्य किये हैं। इसी का नतीजा है कि आज प्रदेश में देश के सबसे ज्यादा बाघ हैं। इसके साथ ही घड़ियाल, तेंदुओं, गिद्धों जैसे जीवों के संरक्षण के मामले में भी मध्यप्रदेश का देश में पहला स्थान है।

देश में 12 राष्ट्रीय उद्यानों और छह बाघ अभयारण्यों के साथ मध्यप्रदेश भारत का वन्यजीव हॉटस्पॉट है। कान्हा, बांधवगढ़, संजय टाइगर रिजर्व, पन्ना, सतपुड़ा और पेंच टाइगर रिजर्व के रूप में मौजूद हैं। इन दिनों टाइगर की गिनती का काम पूरे देश में किया जा रहा है, जिसके परिणाम आगामी अक्तूबर माह तक आने के अनुमान हैं। इस बार भी मध्यप्रदेश को लगातार दूसरी बार टाइगर स्टेट का दर्जा मिलने की उम्मीद है। अभी मध्यप्रदेश में सर्वाधिक 526 टाइगर हैं। मध्यप्रदेश अभयारण्यों में भी टाइगर की संख्या बहुतायत में हैं। सबसे ज्यादा समृद्ध बांधवगढ़ और कान्हा टाइगर रिजर्व माने जाते हैं, जिसमें से कान्हा में करीब 118 टाइगर हैं। पन्ना टाइगर रिजर्व में भी करीब 57 टाइगर हैं। हाल में चल रही गणना के बाद इनकी संख्या में इजाफा होने की संभावना जताई जा रही है ।

टाइगर रिजर्व प्रबंधन देश में सबसे अच्छा पेंच टाइगर रिजर्व के प्रबंधन को देश में सबसे उत्कृष्ट माना गया है। तो वहीं बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व ने बाघ पर्यटन द्वारा प्राप्त राशि का उपयोग कर ईको विकास समितियों को प्रभावी ढंग से पुनर्जीवित किया है। इसके साथ ही कान्हा टाइगर रिजर्व ने अनूठी प्रबंधन रणनीतियों को अपनाया है। कान्हा पेंच वन्यजीव विचरण कॉरिडोर भारत का पहला ऐसा कॉरिडोर है, जिसमें कॉरिडोर का प्रबंधन स्थानीय समुदायों, सरकारी विभागों, अनुसंधान संस्थानों और नागरिक संगठनों द्वारा सामूहिक रूप से किया जाता है। इधर, पन्ना टाइगर रिजर्व ने बाघों की आबादी बढ़ाने में पूरे विश्व का ध्यान आकर्षित किया है। शून्य से शुरू होकर अब इसमें 25 से 30 बाघ हैं। यह भारत के वन्य जीव संरक्षण के इतिहास में एक अनूठा उदाहरण है।

सफेद बाघों से आबाद है रीवा की सफारी मध्यप्रदेश की शान रीवा के सफेद शेरों से भी है। रीवा के सफेद शेरों का इतिहास 1951 से शुरू होता है। 27 मई 1951 को सीधी जिले के कुसमी क्षेत्र के पनखोरा गांव के नजदीक जंगल में सफेद शेर का बच्चा पकड़ा गया था। सफेद शावक मोहन को गोविंदगढ़ किले में रखा गया। 1955 में पहली बार सामान्य बाघिन के साथ सफेद शेर मोहन की ब्रीडिंग कराई गई, जिसमें एक भी सफेद शावक नहीं पैदा हुआ।

30 अक्तूबर 1958 को मोहन के साथ रहने वाली राधा नाम की बाघिन ने चार शावक जन्मे जिनका नाम मोहिनी, सुकेशी, रानी और राजा रखा गया। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति की इच्छा के बाद मोहिनी नाम की सफेद बाघिन को 5 दिसंबर 1960 को अमेरिका ले जाया गया, जहां उसका व्हाइट हाउस में भव्य स्वागत किया गया। 19 वर्षों तक जिंदा रहे मोहन का तीन मादाओं के साथ संपर्क रहा। गोविंदगढ़ में लगातार सफेद शावक पैदा होते गए और मोहन से कुल 34 शावक जन्मे, जिसमें 21 सफेद थे। इसमें 14 शावक राधा नाम की बाघिन से पैदा हुए थे।

10 दिसंबर 1969 को मोहन की मौत के बाद गोविंदगढ़ किला परिसर में ही राजकीय सम्मान के साथ दफनाया गया। 8 जुलाई 1976 को आखिरी बाघ के रूप में बचे विराट की भी मौत हो गई। इसके बाद 40 साल तक सफेद शेरों से रीवा वीरान रहा। 9 नवंबर 2015 को व्हाइट टाइगर सफारी में विंध्य को लाया गया। तब से अब तक यहां कई सफेद शेर हैं और अब ये सफारी देश.विदेश के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।

बुंदेलखंड में खुलेगी वाइल्ड लाइफ सेंचुरी प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पिछले साल राज्य वन्य प्राणी बोर्ड की बैठक में बाघ प्रदेश के सम्मान को बरकरार रखने के लिए बुंदेलखंड में एक वाइल्ड लाइफ सेंचुरी खोलने की घोषणा की है। उत्तरी सागर में 25 हजार 864 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले समृद्ध जंगल होने से यहां पर वन्य जीवों की संख्या तेजी से बढ़ेगी। मध्यप्रदेश के अधिकांश टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या भर चुकी है, वहीं इसके बनने से जहां जंगलों की सुरक्षा होगी वहीं वन्य जीवों को भी नया ठौर मिलेगा।

प्रदेश में 9446 गिद्ध मौजूद हैं, जो देश में सर्वाधिक है। वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट इंडिया द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में सबसे अधिक 1859 घड़ियाल चंबल अभ्यारण्य में हैं। चार दशक पहले घड़ियालों की संख्या खत्म होने के मुहाने में थी, तब दुनिया भर में 200 घड़ियाल ही बचे थे। इनमें से तब भारत में 96 और चंबल नदी में 46 घड़ियाल थे। मुरैना जिले के देवरी में स्थापित घड़ियाल प्रजनन केंद्र में घड़ियालों के अंडों को सुरक्षित तरीके से हैंचिग की जाती है।

गिद्धों की टैगिंग में अग्रणी मध्यप्रदेश भारत में पहली बार गिद्धों की जीपीएस टैगिंग मध्यप्रदेश स्थित पन्ना टाइगर रिजर्व में हुई। गिद्ध टैली मेट्री परियोजना के तहत 25 गिद्धों की टैगिंग हो चुकी है। टेलीमेट्री आधारित परियोजना इस दिशा में सार्थक कदम है। भारत में गिद्धों की नौ प्रजातियां हैं। गिद्ध प्रजाति के संरक्षण में मध्यप्रदेश को अच्छे परिणाम मिले हैं। वर्ष 2021 में गिद्धों बढ़कर 9,446 हो गई है। भारत में उपलब्ध गिद्धों की नौ प्रजातियों में से तीन प्रजाति संकट ग्रस्त हैं। इनमें से सात प्रजातियां पन्ना टाइगर रिजर्व में उपलब्ध हैं ।

प्रदेश में तितलियों का संसार जैव विविधता से भरी मध्यप्रदेश के जंगलों में रंग-बिरंगी तितलियों का भी अनोखा संसार बसा है। रातापानी वन्य अभ्यारण में कुछ समय पहले विशेषज्ञों की टीम के पैदल गस्त कर 100 से अधिक प्रजाति की दुर्लभ तितलियों को खोजा। पर्यावरण में तितलियों की मौजूदगी प्रदूषण मुक्त प्रदेश होने का संकेत है। वन्य जीवों की श्रृंखला में हर जीव की तरह तितलियों की भी महत्वपूर्ण भूमिका है।

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