भाषाई सरहदों को पारकर भारतीय सिनेमा के सितारों की एक भाषा से दूसरी भाषा में यात्रा इतनी सहज कभी नहीं रही। मलयालम सिनेमा के सितारे दुलकर सलमान की हालिया रिलीज तेलुगू फिल्म ‘सीता रामम’ लोगों को खूब भाई। अब दुलकर की नई हिंदी फिल्म ‘चुप’ रिलीज होने को है।दुलकर सलमान मलयालम सिनेमा के सुपरस्टार ममूटी के बेटे हैं। सिनेमा उनके घर परिवार का बचपन से हिस्सा है लेकिन विदेश से व्यापार प्रबंधन में स्नातक होने के बाद तक दुलकर ने कभी अभिनय के बारे में सोचा तक नहीं। वह कहते हैं, ‘मेरा बचपन ऐसे दोस्तों के बीच बीता जो कारोबारी परिवार से थे। स्कूल और कॉलेज के दिनों में भी इन्हीं सबका साथ रहा। मुझे भी कारोबारी बातें अच्छी लगने लगी थीं। लोग कहते थे कि हीरो क्यों नहीं बन जाते लेकिन मलयालम सिनेमा में किसी भी सितारे के बच्चे कामयाब नहीं हुए हैं तो कहीं न कहीं ये बात मेरे मन में घर कर गई। मन ही मन ये तय कर चुका था कि अभिनय नहीं करना है।’
नौ से पांच की नौकरी में जी नहीं लगा
सिनेमा दुलकर सलमान की रग रग में रहा है। उनको बस डर इस बात का रहा कि फ्लॉप हो गया तो लोग क्या कहेंगे। एमबीए करने के बाद दफ्तर में समय बीतने लगा लेकिन नौ से पांच की इस नौकरी में उनको आनंद नहीं आ रहा था। दुलकर कहते हैं, ‘कागज, कंप्यूटर पर जो भी मैं कर रहा था, उसमें मुझे निपुणता हासिल थी। मैं खुश तो था पर सुख नहीं मिल रहा था। मेरे जितने भी दोस्त थे, उनमें से फिल्मी परिवार से कोई नहीं था। फिर मैंने यूं ही कुछ कहानियां सोचकर समय बिताने के लिए लघु फिल्में बनाने की शुरुआत की और तब जाकर मुझे लगा कि संतोष क्या होता है और मन की प्रसन्नता क्या होती है?’
चुनौती को पार करना ही असली जीत
दुलकर के मुताबिक मन को मारकर जीवन में कुछ भी करने से सफलता मिलना मुश्किल है। हर युवा को दूसरों के डर से अपना व्यवसाय नहीं चुनना चाहिए। अपनी बात को और स्पष्ट करते हुए दुलकर कहते हैं, ‘एक कामयाब पिता की जो भी संताने होती हैं, सब पर दबाव बहुत होता है। वे किसी से कहते भले न हों लेकिन ये सच है। दूसरों को भले लगता हो कि इन्हें तो सब कुछ यूं ही मिल गया लेकिन मौका मिलना और खुद को साबित करना दोनों अलग अलग बातें हैं। मुझे भी शुरू में यही डर था कि अभिनेता बना तो मेरी तुलना तुरंत मेरे पिता से होगी। मैंने निर्देशन में भी जाने के बारे में विचार किया था, लेकिन फिर एक दिन मुझे समझ आया कि जो कर्म चुनौती सा दिखने लगे, उसी को पूरा करने में जीवन की असली जीत है।’
कौशल के लिए डरना जरूरी है
अधिकतर कामयाब लोगों में एक बात एक जैसी है और वह ये कि कुछ भी नया शुरू करते समय उन्हें भीतर से डर जरूर लगता है। ये डर ही उन्हें खुद को बीते दिन से बेहतर करने की प्रेरणा देता है। इस डर ने दुलकर की भी मदद की। वह बताते हैं, ‘कोई काम आप अकेले में कर रहे हों तो उतनी घबराहट नहीं होती है लेकिन फिल्म की शूटिंग करने का मतलब है कि दर्जनों लोगों के सामने कैमरे का सामना करना। संवाद याद करने में मुझे मेरे डर से काफी मदद मिली। मुझे लगता था कि शूटिंग के समय ज्यादा रीटेक हुए तो लोग मेरी हंसी उड़ाएंगे तो इस चक्कर में मेरी याददाश्त तेज हो गई। अब तो आलम ये है कि दस दस लाइनों के संवाद भी मैं झट से याद कर लेता हूं।’
पैसे मिलें न मिलें, फर्क नहीं पड़ता
दुलकर सलमान के बारे में एक बात सिनेमा में बहुत चर्चित है और वह ये कि अच्छा किरदार मिलने पर वह कभी पैसे का मोह नहीं करते हैं। दुलकर के मुताबिक, ‘अभिनय मेरे लिए पैसे कमाने का साधन कभी नहीं रहा। मेरा अपना निवेश है बहुत सारे व्यवसायों में जिससे मेरी नियमित आय होती रहती है। भाषाई सीमाएं टूटने से भी अच्छा सिनेमा देखने को मिल रहा है। मैं हर भाषा का सिनेमा करना चाहता हूं। कहानी में किरदार अच्छा हो तो पैसे अच्छे मिलें या न मिलें, मुझे फर्क नहीं पड़ता। मुझे सिर्फ अच्छा सिनेमा करना है।’
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