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ओझल आदिवासी समाज

विनोद कà¥à¤®à¤¾à¤°

 à¤œà¤¨à¤¸à¤¤à¥à¤¤à¤¾ 26 अगसà¥à¤¤, 2014 : आदिवासी समाज के बारे में इधर हमारी दृषà¥à¤Ÿà¤¿ बदली है। बावजूद इसके आदिवासी

बहà¥à¤² इलाकों के बाहर आदिवासी समाज के बारे में अब भी à¤à¤• कौतूहल का भाव रहता है। इस परिपà¥à¤°à¥‡à¤•à¥à¤·à¥à¤¯ में यह जानना दिलचसà¥à¤ª होगा कि गैर-आदिवासी समाज आज भी आदिवासी समाज को किस रूप में देखता है। राजनेताओं की नजर में आदिवासी समाज की अहमियत कà¥à¤¯à¤¾ है, इसे हम कà¥à¤› उदाहरणों से समठसकते हैं। 

बिहार को विशेष राजà¥à¤¯ का दरà¥à¤œà¤¾ इसलिठचाहिठकि उसके हाथ से आदिवासी-बहà¥à¤² इलाका निकल गया, जिसका दोहन कर बिहार की अरà¥à¤¥à¤µà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ चल रही थी और नीतीश कà¥à¤®à¤¾à¤° का सà¥à¤¶à¤¾à¤¸à¤¨ उस आरà¥à¤¥à¤¿à¤• संकट से बिहार को बाहर नहीं निकाल पाया। ओड़िशा को विशेष राजà¥à¤¯ का दरà¥à¤œà¤¾ इसलिठचाहिठताकि वह आदिवासी-बहà¥à¤² इलाकों में चल रही योजनाओं को जारी रख सके। तेलंगाना को अलग राजà¥à¤¯ का दरà¥à¤œà¤¾ इसलिठचाहिठथा, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि उसके आदिवासी-बहà¥à¤² इलाके पिछड़ेपन के शिकार थे। अब चंदà¥à¤°à¤¬à¤¾à¤¬à¥‚ नायडू को आंधà¥à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ को विशेष राजà¥à¤¯ का दरà¥à¤œà¤¾ इसलिठचाहिठकि उनके यहां रह गठरायलसीमा और आंधà¥à¤° के तटीय इलाकों के आदिवासियों के बीच वे ओड़िशा के ‘कोरापà¥à¤Ÿ-बलांगीर-कालाहांडी’ की तरà¥à¤œ पर विशेष योजनाà¤à¤‚ चला सकें। à¤à¤¾à¤°à¤–ंड तो बना ही आदिवासियों के उतà¥à¤¥à¤¾à¤¨ के नाम पर। आदिवासी असà¥à¤®à¤¿à¤¤à¤¾ और उनकी विशिषà¥à¤Ÿ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ की रकà¥à¤·à¤¾ के लिà¤à¥¤ यानी आदिवासी सदियों से कà¥à¤ªà¥‹à¤·à¤¿à¤¤ कोई शिशॠहै, जिसे सभी पौषà¥à¤Ÿà¤¿à¤• आहार खिलाने में लगे हैं और बचà¥à¤šà¤¾ है कि खा-पीकर सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥ होता ही नहीं। 

हम सबको इस बात की तो जानकारी है कि आदिवासी-बहà¥à¤² इलाकों में चले रहे सैकड़ों à¤à¤¨à¤œà¥€à¤“, जिनके मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ दिलà¥à¤²à¥€, मà¥à¤‚बई, मदà¥à¤°à¤¾à¤¸, हैदराबाद, बंगलà¥à¤°à¥ जैसे महानगरों में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ हैं, आदिवासियों के उतà¥à¤¥à¤¾à¤¨ के लिठतीन-चार दशक से सकà¥à¤°à¤¿à¤¯ हैं। वे उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ जीने का सलीका बताते हैं, शौचालय में ही मल तà¥à¤¯à¤¾à¤— को पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤¿à¤¤ करते और खाने से पहले और शौच के बाद हाथ धोने की सलाह देते हैं। उनकी à¤à¤• पà¥à¤°à¤®à¥à¤– सलाह यह रहती है कि बचà¥à¤šà¤¾ सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥ केंदà¥à¤° में ही पैदा करना चाहिठऔर जचà¥à¤šà¤¾-बचà¥à¤šà¤¾ को सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥, विटामिन से भरपूर खाना खाना चाहिà¤à¥¤ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि उनकी समठहै कि आदिवासी का भूखा और नंगा रहना अंधविशà¥à¤µà¤¾à¤¸ का मामला है। और उनके इस सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• पिछड़ेपन और भूखे रहने के अंधविशà¥à¤µà¤¾à¤¸ से उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ मà¥à¤•à¥à¤¤ करना बहà¥à¤¤ जरूरी है। 

इसके अलावा वे उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ वनों की रकà¥à¤·à¤¾ की भी नसीहत देते हैं, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि वन रहेंगे तभी वे भी जीवित रहेंगे। इसके लिठवे दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ भर से पैसे लाते हैं। विमानों से यातà¥à¤°à¤¾ कर राजधानियों के आलीशान होटलों में ठहरते और आदिवासी संघरà¥à¤· और नेतृतà¥à¤µ के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में उभर रहे यà¥à¤µà¤¾ नेता और नेतà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को फांस कर इस पà¥à¤¨à¥€à¤¤ कारà¥à¤¯ में लगाते हैं। इस कà¥à¤°à¤® में होता यह है कि यà¥à¤µà¤¾ नेतृतà¥à¤µ किसी à¤à¤¨à¤œà¥€à¤“ का वेतनभोगी समाजसेवी-à¤à¤•à¥à¤Ÿà¤¿à¤µà¤¿à¤¸à¥à¤Ÿ बन जाता है। 

आदिवासियों के बारे में सामानà¥à¤¯ गैर-आदिवासी दृषà¥à¤Ÿà¤¿ यह है कि वे असभà¥à¤¯ और जंगली लोग हैं, जो मानवजाति के विकास के कà¥à¤°à¤® में पीछे रह गà¤à¥¤ अगर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ मà¥à¤–à¥à¤¯à¤§à¤¾à¤°à¤¾ में नहीं लाया गया तो उनका विनाश अवशà¥à¤¯à¤‚भावी है। à¤à¤¸à¤¾ मानने वालों में आज के दौर के पà¥à¤°à¤¬à¥à¤¦à¥à¤§ समाजशासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ आनंद कà¥à¤®à¤¾à¤° हैं, तो दूसरी तरफ कई दशक पूरà¥à¤µ के पà¥à¤°à¤–र समाजशासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ और हमारे संविधान निरà¥à¤®à¤¾à¤¤à¤¾ भीमराव आंबेडकर। आंबेडकर ने जाति उनà¥à¤®à¥‚लन वाले अपने पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ और बहà¥à¤šà¤°à¥à¤šà¤¿à¤¤ आलेख में à¤à¤• नहीं, कई जगह आदिवासियों को ‘जंगली’ और ‘असभà¥à¤¯â€™ कहा है। वे ‘सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾, समानता और भà¥à¤°à¤¾à¤¤à¥ƒà¤¤à¥à¤µâ€™ के आधार पर हिंदू समाज का पà¥à¤¨à¤°à¥à¤—ठन करना चाहते थे, लेकिन आदिवासी समाज में ये जीवन मूलà¥à¤¯ पहले से विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ हैं, यह नहीं देख पाà¤à¥¤ 

वे उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ असभà¥à¤¯ और जंगली मानते हैं और वरà¥à¤£ वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ से आकà¥à¤°à¤¾à¤‚त हिंदू समाज से इसलिठनाराज हैं कि वह आदिवासियों को सभà¥à¤¯ बनाने का काम नहीं कर रहा। वे यह नहीं देख पाते कि आदिवासी सभà¥à¤¯à¤¤à¤¾ और संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ हिंदू सभà¥à¤¯à¤¤à¤¾-संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के समांतर चलती है और इनके बीच निरंतर संघरà¥à¤· चलता रहा है। 

यह वे नहीं देख पाते कि हिंदू धरà¥à¤® वरà¥à¤£-वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ पर टिका है, जबकि आदिवासी समाज में वरà¥à¤£-वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ नहीं। हिंदू धरà¥à¤® सतीपà¥à¤°à¤¥à¤¾ और विधवा विवाह जैसी समसà¥à¤¯à¤¾à¤“ं से गà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤ रहा है, जबकि आदिवासी समाज औरत-मरà¥à¤¦ के रिशà¥à¤¤à¥‹à¤‚ की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से आदरà¥à¤¶ समाज है। हिंदू धरà¥à¤® में शारीरिक शà¥à¤°à¤® अपमान की वसà¥à¤¤à¥ है और यह सिरà¥à¤« दलित के जिमà¥à¤®à¥‡ है, जबकि आदिवासी समाज में पाहन-पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ भी अपना अनà¥à¤¨ खà¥à¤¦ उपजाता है। बावजूद इसके वे आदिवासियों को असभà¥à¤¯ मानते हैं और हिंदà¥à¤“ं से इसलिठरà¥à¤·à¥à¤Ÿ हैं कि वे उन असभà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को सभà¥à¤¯ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं बना रहे? 

अब पौराणिक कथाओं और साहितà¥à¤¯-जगत की परिघटनाओं पर à¤à¤• नजर डालें। भारतीय उपमहादà¥à¤µà¥€à¤ª के जà¥à¤žà¤¾à¤¤ इतिहास में दानव, राकà¥à¤·à¤¸, असà¥à¤° जैसे जीव नहीं मिलते, लेकिन भारतीय वांगà¥à¤®à¤¯- रामायण, महाभारत, पà¥à¤°à¤¾à¤£ आदि à¤à¤¸à¥‡ जीवों से भरे पड़े हैं। 

ये दानव भीमाकार, काले और मायावी शकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से भरे हà¥à¤ à¤à¤¸à¥‡ जीव हैं, जो देवताओं और मृतà¥à¤¯à¥à¤²à¥‹à¤•, यानी इस भौतिक संसार में रहने वाले भदà¥à¤° लोगों को परेशान करते रहते हैं। इस बारे में मान कर चला जाता है कि ये गाथाà¤à¤‚ सदियों तक चले आरà¥à¤¯-अनारà¥à¤¯ यà¥à¤¦à¥à¤§ से उपजी छायाà¤à¤‚ हैं। 

बहà¥à¤§à¤¾ यह भी देखने में आता है कि धारà¥à¤®à¤¿à¤• गà¥à¤°à¤‚थों, पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ में दà¥à¤·à¥à¤Ÿ तो दानवों को बताया जाता है, लेकिन धूरà¥à¤¤à¤¤à¤¾ करते देवता दिखते हैं। मसलन, समà¥à¤¦à¥à¤° मंथन तो देवता और दानवों ने मिल कर किया, लेकिन उससे निकली लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ सहित मूलà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¨ वसà¥à¤¤à¥à¤à¤‚ देवताओं ने हड़प लीं। यहां तक कि अमृत भी सारा का सारा देवताओं के हिसà¥à¤¸à¥‡ गया और राहू-केतॠने देवताओं की पंकà¥à¤¤à¤¿ में शामिल होकर अमृत पीना चाहा तो उन दोनों को सिर कटाना पड़ा। 

महाभारत में लाकà¥à¤·à¤¾à¤—ृह से बच निकलने और जंगलों में भटकने के बाद पांडव पà¥à¤¤à¥à¤° भीम किसी दानवी से टकराà¤à¥¤

उसके साथ कà¥à¤› दिनों तक रहे, फिर वापस अपनी दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में चले आà¤à¥¤ बेटा घटोतà¥à¤•à¤š कैसे पला-बà¥à¤¾, इसकी कभी सà¥à¤§ नहीं ली। हालांकि उस बेटे ने महाभारत यà¥à¤¦à¥à¤§ में अपनी कà¥à¤°à¥à¤¬à¤¾à¤¨à¥€ देकर पिता के करà¥à¤œ को चà¥à¤•à¤¤à¤¾ किया। à¤à¤•à¤²à¤µà¥à¤¯ की कथा तो इस बात की मिसाल ही बन गई है कि à¤à¤• गà¥à¤°à¥ ने अगड़ी जाति के अपने शिषà¥à¤¯ के भविषà¥à¤¯ के लिठà¤à¤• आदिवासी यà¥à¤µà¤• से उसका अंगूठा गà¥à¤°à¥ दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾ में मांग लिया। तो यह थी आदिवासियों के बारे में पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ की दृषà¥à¤Ÿà¤¿à¥¤ à¤†à¤§à¥à¤¨à¤¿à¤• भारत का दौर आजादी के संघरà¥à¤· से शà¥à¤°à¥‚ होता है, लेकिन उसके इतिहास और साहितà¥à¤¯ में आदिवासी समाज ओà¤à¤² है। हॉफमैन, गियरà¥à¤¸à¤¨, हंटर, जॉन रीड जैसे विदेशी लेखक जब आदिवासी समाज और संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के उदातà¥à¤¤ और संघरà¥à¤·à¤ªà¥‚रà¥à¤£ पहलà¥à¤“ं का उदà¥à¤˜à¤¾à¤Ÿà¤¨ कर रहे थे, उस वकà¥à¤¤ हिंदी के पà¥à¤°à¤¬à¥à¤¦à¥à¤§ लेखकों की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से आदिवासी जीवन ओà¤à¤² रहा। à¤à¤¾à¤‚सी की रानी तो याद रहीं, ओà¤à¤² रहा तिलका मांà¤à¥€, सिदà¥à¤§à¥‹ कानà¥à¤¹à¥‚ं और बिरसा मà¥à¤‚डा के अबà¥à¤† राज का संघरà¥à¤· और बलिदान। 

हिंदी का शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  साहितà¥à¤¯ उसी दौर में लिखा जा रहा था। पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤‚द, जैनेंदà¥à¤°, यशपाल, भगवती चरण वरà¥à¤®à¤¾, वृंदावनलाल वरà¥à¤®à¤¾ आदि उसी दौर के लेखक हैं, लेकिन किसी की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ आदिवासियों के अनूठे संघरà¥à¤· की तरफ नहीं गई। रेणॠने मैला आंचल में उनका जिकà¥à¤° किया है। पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤‚द की करà¥à¤®à¤­à¥‚मि में भील कà¥à¤› जगहों पर अवतरित होते हैं। वृंदावनलाल वरà¥à¤®à¤¾ के उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ वनà¥à¤¯-जीवन की सà¥à¤‚दर छवियां पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ करते हैं, लेकिन उनमें आदिवासी नहीं हैं। 

गैर-आदिवासी लेखक यह नहीं देख सके कि जिस वकà¥à¤¤ कांगà¥à¤°à¥‡à¤¸ के नेतृतà¥à¤µ में देश अंगरेजों से सीमित सà¥à¤µà¤¾à¤¯à¤¤à¥à¤¤à¤¤à¤¾ की मांग कर रहा था, उसके दो दशक पहले बिरसा मà¥à¤‚डा अंगरेजों को अपने इलाके से खदेड़ने का संघरà¥à¤· कर रहे थे। जिस वकà¥à¤¤ 1857 के सिपाही विदà¥à¤°à¥‹à¤¹ के रूप में राजतंतà¥à¤° के अवशेष अपनी आखिरी लड़ाई लड़ रहे थे, उसके पहले सिदà¥à¤§à¥‹ कानà¥à¤¹à¥‚ं और तिलका मांà¤à¥€ अंगरेजों को अपने इलाके से खदेड़ते हà¥à¤ जंगल के मà¥à¤¹à¤¾à¤¨à¥‡ तक पहà¥à¤‚चा आठथे। 

उसी आंदोलन को कà¥à¤šà¤²à¤¨à¥‡ के लिठतो रामगॠमें सैनà¥à¤¯ छावनी बनी थी, जिसने सिपाही विदà¥à¤°à¥‹à¤¹ में अगà¥à¤°à¤£à¥€ भूमिका निभाई। दरअसल, आदिवासियों के बारे में गैर-आदिवासी लेखकों और इतिहासकारों की शà¥à¤°à¥‚ से वही दृषà¥à¤Ÿà¤¿ रही है, जिसकी अभिवà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ आंबेडकर ने की है। इसलिठहिंदी साहितà¥à¤¯ के गौरव भरे दिनों की औपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤¿à¤• कृतियों, कावà¥à¤¯à¤¸à¤‚गà¥à¤°à¤¹à¥‹à¤‚ में आदिवासी जीवन की अतà¥à¤¯à¤‚त सीमित छवियां मिलती हैं। 

बाद के वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ में साहितà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤° आदिवासी जीवन की तरफ मà¥à¤–ातिब तो हà¥à¤, लेकिन इन लेखकों की तीन शà¥à¤°à¥‡à¤£à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ रही हैं। à¤à¤• तो वे, जो आदिवासी समाज के मांसल सौंदरà¥à¤¯ और भोलेपन पर मà¥à¤—à¥à¤§ रहे हैं, दूसरे वे जो उनकी विपनà¥à¤¨à¤¤à¤¾ से आकà¥à¤°à¤¾à¤‚त रहे हैं और तीसरे वे जो आज भी आदिवासी समाज को असभà¥à¤¯ और जंगली मानते हैं। तीनों तरह के लेखकों में समानता यह है कि वे सभी आदिवासियों को विकास का अवरोधक मानते हैं। यहां उनकी आलोचना करना मकसद नहीं है। हम तो आदिवासी समाज के बारे में गैर-आदिवासी समाज की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ की बातें कर रहे हैं। 

हम इस बात पर अफसोस कर रहे हैं कि अभी तक à¤à¤¸à¥€ à¤à¤• भी औपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤¿à¤• कृति सामने नहीं आई है, जो संपूरà¥à¤£à¤¤à¤¾ से आदिवासी समाज के सौंदरà¥à¤¯, उनकी जिजीविषा और उनके शà¥à¤°à¤® और आनंद वाली संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ का चितà¥à¤°à¤£ करती हो। वैसा उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ जो कà¥à¤°à¤®à¥€-महतो समाज पर केंदà¥à¤°à¤¿à¤¤ बांगà¥à¤²à¤¾ उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤•à¤¾à¤° ताराशंकर के ‘हंसली बांक की उपकथा’ जैसा हो। इसलिठआदिवासी साहितà¥à¤¯ की संगोषà¥à¤ à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में यह बात उठने लगी है कि आदिवासी समाज के बारे में आदिवासी ही लिख और समठसकता है। हम इस विवाद में नहीं जाà¤à¤‚गे। लेकिन गैर-आदिवासी लेखकों को पहले आदिवासी समाज के बारे में अपनी दृषà¥à¤Ÿà¤¿ बदलनी होगी। 

मूल सवाल है कि हम सभà¥à¤¯à¤¤à¤¾ की परिभाषा किस तरह करते हैं? नागर जीवन, सà¥à¤°à¥à¤šà¤¿à¤ªà¥‚रà¥à¤£ भोजन और कपड़े से? बहà¥à¤¸à¤‚खà¥à¤¯à¤• आदिवासियों के पास यह उपलबà¥à¤§ नहीं। लेकिन उनके पास उचà¥à¤šà¤¤à¤° जीवन मूलà¥à¤¯ हैं, लालच से मà¥à¤•à¥à¤¤ जीवन की संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ है। उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ भी अचà¥à¤›à¤¾ भोजन, रिहायशी सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ और आधà¥à¤¨à¤¿à¤• जीवन की सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤à¤‚ मिलनी चाहिà¤à¥¤ लेकिन ईमानदारी की बात है कि हमारी अरà¥à¤¥à¤µà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ अभी उस मà¥à¤•à¤¾à¤® पर नहीं पहà¥à¤‚ची है कि सबको अचà¥à¤›à¤¾ भोजन, शानदार भवन, फà¥à¤°à¤¿à¤œ, टीवी, और नठमॉडल की कार दे सके। यह तो कà¥à¤› लोगों के लिठही संभव है और वह भी तब जब बहà¥à¤¸à¤‚खà¥à¤¯à¤• आबादी मà¥à¤«à¤²à¤¿à¤¸à¥€ में जिà¤à¥¤ पानी भात खाठऔर दो जोड़ा कपड़े में रहे। 

अगर हम वासà¥à¤¤à¤µ में उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ भी अचà¥à¤›à¤¾ कपड़ा पहनाना चाहते हैं, अचà¥à¤›à¤¾ भोजन उपलबà¥à¤§ कराना चाहते हैं और जीवन की आधà¥à¤¨à¤¿à¤• वसà¥à¤¤à¥à¤à¤‚ उपलबà¥à¤§ कराना चाहते हैं, तो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सभà¥à¤¯ बनाने के मà¥à¤—ालते को छोड़ हमें अपने बदन के कपड़े कम करने होंगे, थोड़ा कम खाना होगा और विलासितापूरà¥à¤£ जीवन का परितà¥à¤¯à¤¾à¤— करना होगा। सबसे बड़ी बात कि महाजनी शोषण पर टिकी इस वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ की जगह लालच से मà¥à¤•à¥à¤¤ आतà¥à¤®à¤¨à¤¿à¤°à¥à¤­à¤° और संतोष वाली आदिवासी संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के उदातà¥à¤¤ जीवन मूलà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को अपनाना होगा। 

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