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प्रधानमंत्री का बैंक

कà¥à¤®à¤¾à¤° पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤‚त

 à¤œà¤¨à¤¸à¤¤à¥à¤¤à¤¾ 12 सितंबर, 2014: पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ ने पंदà¥à¤°à¤¹ अगसà¥à¤¤ को लाल किले से अपनी जिन हसरतों का जिकà¥à¤° किया,

उनमें à¤à¤• थी कि इस देश के हर गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ और गरीब के पास अपना बैंक खाता होना चाहिà¤à¥¤ फिर à¤à¤• पखवाड़े से भी कम समय में, अटà¥à¥à¤ à¤¾à¤ˆà¤¸ अगसà¥à¤¤ को à¤à¤• करोड़ से अधिक लोगों का बैंक खाता खà¥à¤²à¤¨à¤¾, उनका जीवन बीमा होना, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कà¥à¤°à¥‡à¤¡à¤¿à¤Ÿ कारà¥à¤¡ मिलना आदि कई बातें हà¥à¤°à¥à¤‡à¤‚ जिनकी दूसरी मिसाल खोजे नहीं मिलेगी। इन सारे कीरà¥à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ में जो सबसे बड़ी बात दिखाई दी वह यह कि अगर राजनीतिक इचà¥à¤›à¤¾à¤¶à¤•à¥à¤¤à¤¿ हो तो यही नौकरशाही काम करती है। जहां तक देश को चलाने का सवाल है, खोट औजारों में नहीं, कारीगरों में रही है। बहà¥à¤¤ समय तक खराब कारीगर ही अगर औजार का इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² करते रहते हैं तो औजार भी खराब हो जाता है। हमारे यहां अधिकांशत: यही हà¥à¤† है।  

सबसे पहले हमें तय यह करना चाहिठकि बैंक हैं कà¥à¤¯à¤¾? जनसेवा के उपकरण हैं या बाजार में कूद कर कमाई करने की पागल होड़ में पड़े तिकड़मबाजों का अडà¥à¤¡à¤¾ हैं? पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ बैंकों को कलà¥à¤¯à¤¾à¤£à¤•à¤¾à¤°à¥€ राजà¥à¤¯ के आरà¥à¤¥à¤¿à¤• तंतà¥à¤° को पà¥à¤–à¥à¤¤à¤¾ करने का उपकरण मानते हैं या समाज के सरà¥à¤µ-सामरà¥à¤¥à¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¨ वरà¥à¤— के हाथ में à¤à¤• दूसरा औजार कि जिससे वह औने-पौने ढंग से कमाई करे और फिर सरकार के साथ उसकी बंदरबांट कर ले? यह तय हो ले तभी यह भी तय हो सकेगा कि पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ जन धन योजना में जन कौन है और धन किधर है!  

इंदिरा गांधी ने बैंकों का राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯à¤•à¤°à¤£ किया तो तथाकथित अरà¥à¤¥à¤¶à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में तालियां बजाने वाले और धिकà¥à¤•à¤¾à¤° करने वाले दोनों थे। इसमें अरà¥à¤¥à¤¶à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥à¤° बहà¥à¤¤ कम था और अरà¥à¤¥à¤¶à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की अपनी-अपनी राजनीति बहà¥à¤¤ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ थी। लेकिन तब देश में à¤à¤• आवाज जयपà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ नारायण की भी उठी थी कि सरकारीकरण को राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯à¤•à¤°à¤£ मानने की भूल हम न करें! उनका सीधा मतलब यह था कि बैंकों के राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯-सामाजिक उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ कà¥à¤¯à¤¾ हैं और वे कैसे पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ किठजाà¤à¤‚गे, यह सà¥à¤¨à¤¿à¤¶à¥à¤šà¤¿à¤¤ किठबिना बैंकों के राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯à¤•à¤°à¤£ के तीर से कांगà¥à¤°à¥‡à¤¸ की अंदरूनी राजनीतिक उठा-पटक में सिंडिकेट को हराया और मिटाया तो जा सकता है, लेकिन राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ धन का राषà¥à¤Ÿà¥à¤°-निरà¥à¤®à¤¾à¤£ में इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² नहीं हो सकता है! 

तब जयपà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ नारायण ने कहा था, अब नरेंदà¥à¤° मोदी कह रहे हैं कि बैकों के राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯à¤•à¤°à¤£ के सपने कहीं पीछे छूट गठऔर बैंक कहीं और ही निकल गà¤à¥¤ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ निकल गà¤? किधर निकल गà¤? कैसे निकल गà¤? अगर इंदिरा गांधी के साथ à¤à¤¸à¤¾ हà¥à¤† तो नरेंदà¥à¤° मोदी के साथ à¤à¤¸à¤¾ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं होगा? जवाब बैंकिंग के दिगà¥à¤—जों को और तथाकथित अरà¥à¤¥à¤¶à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को देना चाहिà¤à¥¤  

बैंकों के राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯à¤•à¤°à¤£ के बाद, येनकेन पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¥‡à¤£ निजी बैकों ने फिर से जगह बनानी शà¥à¤°à¥‚ की; हाल-फिलहाल में हमने देखा कि हमारी वितà¥à¤¤-तà¥à¤°à¤¿à¤®à¥‚रà¥à¤¤à¤¿ मनमोहन-चिदंबरम-मोंटेक ने महसूस किया कि हमारे पास पैसों की नहीं, बलà¥à¤•à¤¿ बैंकों की कमी है! बहà¥à¤¤ सारे बैंक होंगे तो हमारा धन जन तक पहà¥à¤‚चेगा। तो बैंक खोलने के आवेदन आमंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ किठगठऔर आप देखेंगे कि देश का शायद ही कोई कॉरपोरेट घराना होगा जो आवेदन लेकर लाइन में नहीं खड़ा हà¥à¤†! आखिर कॉरपोरेट घरानों को कà¥à¤¯à¤¾ हà¥à¤† कि वे सब के सब जनसेवा की बीमारी से गà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤ हो गà¤! यह आरà¥à¤¥à¤¿à¤• इबोला कहां से फैला? 

हमने बहà¥à¤¤ सारी वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤“ं की तरह बैंकिंग की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ भी अंगरेजों से उठा ली है। बैकों को जनसेवा का उपकरण बनने देना न वे चाहते थे और न हमने कभी चाहा। उनके लिठबैंक उपनिवेशों का शोषण करने की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ थी, हमारे लिठभी वही रही। 

कॉरपोरेटों के लिठबैंक à¤à¤• उदà¥à¤¯à¥‹à¤— है जिसमें निवेश कर वे मà¥à¤¨à¤¾à¤«à¤¾ कमाना चाहते हैं; सरकार के लिठबैंक जन से धन à¤à¤•à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¤ कर, उसका राजनीतिक इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² करने के साधन हैं। कॉरपोरेट घराने साधारण मà¥à¤¨à¤¾à¤«à¥‡ की तरफ आकरà¥à¤·à¤¿à¤¤ नहीं होते, वे मà¥à¤¨à¤¾à¤«à¤¾à¤–ोरी की संभावनाओं का आकलन करते हैं और चार लगा कर कम से कम चालीस पाने की जहां आशा न हो वहां वे फटकते भी नहीं हैं। à¤à¤¸à¥‡ कॉरपोरेट अगर बैंक खोलने के लिठलाइन लगाते हैं तो इसका मतलब समà¤à¤¨à¥‡ के लिठहमारा खगोलशासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ होना जरूरी नहीं है। सामानà¥à¤¯ समठही बहà¥à¤¤ कà¥à¤› बता देती है।  

सरकार इतना ही आंकड़ा देश के सामने रखे तो बात आईने की तरह साफ हो जाà¤à¤—ी कि आजादी के बाद से अब तक, सरकारी और निजी बैंकों ने कॉरपोरेट घरानों को कितना, मà¤à¥‹à¤²à¥‡ और लघॠउदà¥à¤¯à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को कितना ऋण दिया है; उनकी वापसी की दर कितनी रही है और किसके माथे कितना बकाया है? 

यह आंकड़ा भी कई सारे रहसà¥à¤¯ खोल देगा कि समय-समय पर चà¥à¤¨à¤¾à¤µà¥€ फसलें काटने के लिठ‘ऋण-माफी तथा दूसरी जनहित की घोषणाओं’ के तहत बैंकों को कितना पैसा, कहां और किनà¥à¤¹à¥‡à¤‚, किन शरà¥à¤¤à¥‹à¤‚ पर बांटने पर मजबूर किया गया है और बैंकों ने उसका कैसे वहन किया? 

à¤à¤• बार यह तसà¥à¤µà¥€à¤° देश के सामने रख ही दी जाठकि हमारे जितने भी वितà¥à¤¤à¥€à¤¯ संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ हैं उन सबके वितà¥à¤¤à¥€à¤¯ वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° की सचà¥à¤šà¤¾à¤ˆ कà¥à¤¯à¤¾ है? पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ का इतना कहना काफी नहीं है कि अमीरों की तà¥à¤²à¤¨à¤¾ में गरीबों को पांच फीसद से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ दर पर ऋण मिलता है बलà¥à¤•à¤¿ यह बताना भी जरूरी है कि अमीरों को ऋण किसलिà¤, किन शरà¥à¤¤à¥‹à¤‚ पर मिला और उनकी वापसी की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ कà¥à¤¯à¤¾ है? यह भी बताया जाठशà¥à¤°à¥€à¤®à¤¾à¤¨ कि सरकार और वितà¥à¤¤à¥€à¤¯ संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ ने अब तक किसकी कितनी रकम खटà¥à¤Ÿà¥‚स- राइट ऑफ- कर दी है? 

यह सब à¤à¤• बार देश के सामने आ जाठतब बैंकिंग वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ का पूरा चेहरा दिखाई देगा

और तब पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ हमें यह बताà¤à¤‚ कि उनकी सरकार इस चेहरे में से कौन-सा और कà¥à¤¯à¤¾ रखना और बदलना चाहती है और नया चेहरा कà¥à¤¯à¤¾ होगा! नहीं, पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€à¤œà¥€, आप यह काम योजना आयोग को भंग करने की तरà¥à¤œ पर नहीं कर सकते। पहले पूरा वैकलà¥à¤ªà¤¿à¤• खाका बनाना होगा, भूमिकाà¤à¤‚ तय करनी होंगी और सरकार को जिमà¥à¤®à¥‡à¤µà¤¾à¤°à¥€ लेनी होगी तभी आप बैंकिंग वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ से छेड़छाड़ कर सकते हैं। à¤à¤¸à¤¾ कोई संकेत आपकी बातों में दिखाई तो नहीं दे रहा है।       à¤¬à¥ˆà¤‚कों की बà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤¦à¥€ संकलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ यह थी कि यह à¤à¤• à¤à¤¸à¥€ वितà¥à¤¤à¥€à¤¯ वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ होगी जहां नागरिक अपने पैसे सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ रख सकेंगे और जब जैसी जरूरत होगी, निकाल भी सकेंगे। नागरिकों के पैसों के à¤à¤µà¤œ में बैंक उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बà¥à¤¯à¤¾à¤œ देगा, करà¥à¤œ और दूसरी सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤à¤‚ देगा। बैंकों में जमा नागरिकों के पैसों का इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² सरकार और दूसरे लोग अपनी योजनाओं के लिठबà¥à¤¯à¤¾à¤œ देकर कर सकेंगे और यही बà¥à¤¯à¤¾à¤œ बैंकों की अपनी कमाई होगी। बैंक जिस दर पर बà¥à¤¯à¤¾à¤œ कमाते हैं और अपने महाजन नागरिक को जिस दर पर बà¥à¤¯à¤¾à¤œ देते हैं उसमें नà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¤à¥à¤²à¥à¤¯ संतà¥à¤²à¤¨ होना ही चाहिà¤à¥¤ बैंक बाजार में उतर कर हर तरह की कमाई के लिठहाथ-पैर मारेंगे तो सà¥à¤µà¤¾à¤­à¤¾à¤µà¤¿à¤• है कि नागरिकों की उपेकà¥à¤·à¤¾ होगी, उनका शोषण होगा और इनके ही पैसों पर बैंकिंग उदà¥à¤¯à¥‹à¤— मौज करेगा। आज à¤à¤•à¤¦à¤® यही सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ है। 

सामानà¥à¤¯ खाता-धारक को बैंक कà¥à¤¯à¤¾ बà¥à¤¯à¤¾à¤œ देता है, कà¥à¤¯à¤¾ सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤à¤‚ देता है, इसका हिसाब लगाà¤à¤‚ हम। जिनके पैसों पर आप अंधाधà¥à¤‚ध कमाई कर रहे हैं उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¤• चेकबà¥à¤• भी आप सौजनà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• नहीं देते हैं। कमाल की लूट है! चेक के बिना हम अपना पैसा न ले सकते हैं न दे सकते हैं, यह वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ आप बनाà¤à¤‚ और फिर चोर दरवाजे से यह शरà¥à¤¤ भी लाद दें कि इस चेक का पैसा भी अदा करना होगा तो यह ईमानदारी की बात है या हमें विवश कर लूटने की? 

बैंक की कोई भी सेवा अब शà¥à¤²à¥à¤• के बिना नहीं मिलती। à¤à¤• महाजन जैसे अजगर की तरह अपने करà¥à¤œà¤¦à¤¾à¤° को लपेटता जाता है ताकि अंतत: उसे बेबस कर सके, वैसा ही हाल बैंकों का है। बैकों की हर सेवा, हर योजना बड़ी पूंजी वालों के हित में बनने लगी है। बैंक में खाता खोलना सीबीआइ के दफà¥à¤¤à¤° में जाने सरीखा कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ बन गया है भाई? कॉरपोरेटों का खाता खोलना हो, उनसे करोड़ों-अरबों की à¤à¤«à¤¡à¥€ पानी हो, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ करà¥à¤œ लेने के लिठतैयार करना हो तो बैंकों के बड़े-बड़े अधिकारी, उनके घरों-दफà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ में कारकूनों की तरह हाजिरी देते हैं; और आपके काउंटर पर खाता खोलने का फॉरà¥à¤® लेकर जो नागरिक खड़ा होता है उससे आप à¤à¤¸à¤¾ बरà¥à¤¤à¤¾à¤µ करते हैं मानो उसने यहां आकर आप पर कृपा न की हो, बलà¥à¤•à¤¿ अपराध किया हो। 

आपने कहा कि हम à¤à¤¸à¥€ वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ करेंगे कि आपको बैंक में आने की परेशानी न उठानी पड़े। हमने तो इसकी शिकायत की ही नहीं थी, लेकिन आपको खà¥à¤²à¥‡ बाजार में किराया भारी पड़ रहा था, आप कम से कम लोगों में अपना काम चलाने की चालाकी में थे तो आपने à¤à¤Ÿà¥€à¤à¤® मशीनें लगारà¥à¤‡à¤‚। 

आपने फिर कहा कि हम आपको à¤à¤¸à¤à¤®à¤à¤¸ से आपके खाते की जानकारी दिया करेंगे, आप फोन से बैंकिंग का अपना पूरा काम कीजिà¤à¥¤ इनमें से कà¥à¤› भी हमने नहीं मांगा था, अपनी सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ के लिठआपने हमें ये सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤à¤‚ दीं और फिर इन सबकी कीमत वसूलनी शà¥à¤°à¥‚ कर दी। à¤à¤Ÿà¥€à¤à¤® की फीस बà¥à¤¤à¥€ जा रही है, हम किसी भी बैंक के à¤à¤Ÿà¥€à¤à¤® से अपना पैसा निकाल सकते हैं, यह सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ भी कम-से-कम की जा रही है। मà¥à¤‚बई के सà¥à¤Ÿà¥‡à¤Ÿ बैंक और आइसीआइसीआइ जैसे बैंकों के à¤à¤Ÿà¥€à¤à¤® का यह हाल है कि वहां से चेक डालने वाले बकà¥à¤¸à¥‡ हटा दिठगठहैं, सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨à¤°à¥€ का सामान, आलपिन कà¥à¤› भी उपलबà¥à¤§ नहीं रहा है। 

हम देखते कि हमारे बैंकों की आरà¥à¤¥à¤¿à¤• दशा इतनी कमजोर है कि वे बेचारे अपनी नाक पानी से ऊपर रखने की जदà¥à¤¦à¥‹à¤œà¤¹à¤¦ में पड़े हैं तो इन सारी चालाकियों को अनदेखा कर जाते। लेकिन हम देख तो यह रहे हैं कि हर बैंक आलीशान-से-आलीशान इमारतें खड़ी कर रहा है, चमकीली-से-चमकीली शाखाà¤à¤‚ खोली जा रही हैं, बैंकों के वेतन देखिà¤, उनका पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° का बजट देखिà¤, उनके सेमिनार और दूसरे आयोजन देखिठतो विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ नहीं होगा कि यह संकट में पड़ा उदà¥à¤¯à¥‹à¤— है। बैंक आज नागरिकों का धन बटोर कर सबसे अकà¥à¤¶à¤², भà¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿ, दिशाहीन और निहित सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥à¥‹à¤‚ से समà¤à¥Œà¤¤à¤¾ कर चलने वाला धंधा बन गया है। बैंकों के अकथ घोटाले हैं – सेबी की अदालत में खड़ी कंपनियों के अरबों-खरबों के घोटाले के मामलों में बैंकों की भूमिका की जांच तो करे कोई! नागरवाला कांड जैसे हà¥à¤† और जैसे उसे दफना दिया गया कà¥à¤¯à¤¾ वह भूलने लायक है?  

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