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मूलाधार चक्र : खुद के वजूद को महसूस करने का विकल्प

चित्र : मूलाधार चक्र शरीर के सबसे निचले हिस्से में होता है, जैसा कि चित्र में दिखाया गया है।

मूलाधार चक्र हमारे शरीर में सबसे निचला चक्र है। जैसे किसी इमारत की बुनियाद सबसे महत्वपूर्ण होती है, उसी तरह मूलाधार सबसे महत्वपूर्ण चक्र होता है। सद्गुरू बताते हैं कि अगर आपका मूलाधार मजबूत हो, तो जीवन हो या मृत्यु, आप स्थिर रहेंगे क्योंकि आपकी नींव मजबूत है और बाकी चीजों को हम बाद में ठीक कर सकते हैं।

अगर आप गर्भाधान के ठीक बाद स्त्री के शरीर को देखें, तो वह सिर्फ मांस का एक बहुत ही छोटा सा गोला होता है। मांस का वह नन्हा सा पिंड धीरे-धीरे अपने आप को व्यवस्थित करके वह रूप धारण कर लेता है जो आज दिख रहा है। इस खास तरीके से खुद को व्यवस्थित करने के लिए, एक तरह का सॉफ्टवेयर होता है, जिसे ‘प्राणमय कोष’ कहा जाता है, जिसे आप ऊर्जा-शरीर भी कह सकते हैं।

सबसे पहले ऊर्जा, शरीर का निर्माण करती है, उसके अनुरूप भौतिक शरीर की रचना होती है। अगर ऊर्जा-शरीर में कोई विकृति हो, तो वह भौतिक काया में भी प्रकट होगी। इसी वजह से हमारी संस्कृति में, जब कोई स्त्री गर्भवती होती थी, तो वह मंदिर जाकर वहां पर आशीर्वाद लेती थी। आशीर्वाद से ऊर्जा-शरीर को प्रभावित करने की कोशिश की जाती थी। अगर एक गर्भवती स्त्री के गर्भ में बहुत जीवंत, अच्छी तरह से बना हुआ ऊर्जा शरीर है, तो वह एक बहुत सक्षम और योग्य मनुष्य को जन्म देगी।

बुनियादी चक्र है सबसे महत्वपूर्ण

मूलाधार चक्र ऊर्जा-शरीर की बुनियाद है। आजकल लोग सोचते हैं कि मूलाधार सबसे निचला चक्र है इसलिए उसकी इतनी अहमियत नहीं है। जो भी यह सोचता है कि बुनियाद पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है, वह दरअसल भ्रम में है, जैसे किसी इमारत की बुनियाद सबसे महत्वपूर्ण होती है, उसी तरह मूलाधार सबसे महत्वपूर्ण चक्र होता है।

जब हम योग करते हैं, तो हम किसी और चीज से अधिक मूलाधार पर ध्यान देते हैं। क्योंकि अगर आपने इसे सुदृढ़ और स्थिर कर लिया, तो बाकियों का निर्माण आसान हो जाता है। अगर हम कमजोर नींव पर भवन खड़ा करने की कोशिश करें, तो वह एक सर्कस की तरह हो जाएगा। मानव-जीवन के साथ ऐसा ही हुआ है। रोजाना अपने आप को संतुलन और खुशहाली की एक स्थिति में बनाए रखना- अधिकतर लोगों के लिए एक सर्कस है।

अगर आपका मूलाधार मजबूत हो, तो जीवन हो या मृत्यु, आप स्थिर रहेंगे क्योंकि आपकी नींव मजबूत है और बाकी चीजों को हम बाद में ठीक कर सकते हैं। लेकिन अगर नींव डगमगा रही हो, तो चिंता स्वाभाविक है।

अनुभव की तलाश में जोखिम

अगर कृपा, अपने आप तक पहुंचाना चाहे, तो आपके पास एक उपयुक्त शरीर का होना जरूरी है। अगर आपके पास उपयुक्त शरीर नहीं हो और कृपा आपके ऊपर खूब बरसे, तो आप उसे झेल नहीं पाएंगे। बहुत से लोग बड़े-बड़े अनुभव पाना चाहते हैं, लेकिन वे अपने शरीर को उस रूप में नहीं ढालना चाहते कि वह उन अनुभवों को संभाल पाने में समर्थ हो। इसलिए दुनिया में बहुत से लोग अनुभव की तलाश में पागल हो जाते हैं या उनका शरीर नाकाम हो जाता है।

योग में, आप अनुभवों के पीछे नहीं भागते, आप सिर्फ तैयारी करते हैं। आदियोगी के सात शिष्यों ‘सप्तऋषियों’ ने ऐसा ही किया था। उन्होंने सिर्फ तैयारी की। उन्होंने किसी चीज की इच्छा नहीं की। उन्होंने बस चौरासी सालों तक तैयारी की और जब आदियोगी ने देखा कि वे बिल्कुल तैयार हैं, तो वह कुछ भी अपने पास नहीं रख पाए। उन्हें सारा ज्ञान देना पड़ा।

योग प्रणालियां हमेशा से मूलाधार पर केंद्रित रही हैं। केवल आजकल ही ऐसा हो रहा है कि उन योगियों ने किताबें लिखी हैं, जो खुद अभ्यास नहीं करते, और कहते हैं कि आपको ऊपर वाले चक्रों पर ध्यान देना चाहिए। किताबें पढ़ने वाले लोगों के दिमाग में यह ऊपर और नीचे की बात बहुत मजबूती से बैठी हुई है, लेकिन ज़िन्दगी इस तरह काम नहीं करती।

मानसिक संतुलन या विवेक

अधिकतर योगी अपने भौतिक सीमाओं को तोड़ने के लिए बस चंद आसान मुद्राओं का सहारा लेते हैं। हठ योग ऐसा ही है। हठ योग का मतलब है संतुलन। संतुलन का मतलब मानसिक संतुलन नहीं है। अगर आप अपने जीवन को उल्लासमय बनाना चाहते हैं, तो आपके अंदर थोड़ा पागलपन होना चाहिए। लेकिन अगर आप पागल होने को बाध्‍य हो जाते हैं, तो कोई लाभ नहीं होगा।

जब हम संतुलन की बात करते हैं, तो हम मानसिक संतुलन या विवेक की बात नहीं करते, हम विवेक और पागलपन के बीच की उस जगह को खोजने की बात करते हैं, जहां आप जाने की हिम्मत कर सकते हैं, जोखिम ले सकते हैं। पागलपन एक दु:साहस है। जब तक वह काबू में हो, वह बहुत अद्भुत चीज है। अगर आप काबू खो बैठे, तो वह बदसूरत हो जाएगा।

इसी तरह, मानसिक संतुलन या विवेक एक खूबसूत चीज है, लेकिन अगर आप पूरी तरह विवेकपूर्ण हो जाएंगे, तो आप मृत व्यक्ति के बराबर हो जाएंगे। अगर आपका मूलाधार मजबूत होगा, तो अपनी इच्छानुसार कभी भी किसी भी क्षेत्र में शुरूआत करने और जोखिम उठाने की क्षमता स्वयं आपके पास आ जाएगी।

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