चित्र : भारत रत्न लता मंगेशकर।
‘मोक्ष एक सुंदर कल्पना है। मैं ईश्वर से हमेशा ये मांगती रही हूं कि यदि हो सके तो वो मुझे दोबारा जन्म न दें। मेरा संगीत ही मुझे अन्ततः जन्म-मृत्यु के खेल से मुक्त करेगा। मुझे गाना मिला है, वहीं मेरा ईश्वर भी है।’ – यह वो शब्द हैं जो किताब ‘लता : सुर-गाथा’ में अंकित हैं, ये शब्द कवि और लेखक यतीन्द्र मिश्र से भारत रत्न लता मंगेशकर ने कहे थे।
06 फरवरी, 2022 वो दिन था, जब स्वर कोकिला लता मंगेशकर का निधन हो गया है। लगभग एक महीने पहले कोरोना संक्रमण के बाद, उन्हें मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती किया गया था जहां सुबह 8 बजकर 12 मिनट बजकर उन्होंने अंतिम सांस ली। लता मंगेशकर की संगीत यात्रा, स्वर गंगा की तरह है, जो सदियों तक भारतीय सिनेमा के इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में अंकित रहेगी।
उनका जन्म 28 सितंबर, 1929 को मध्य प्रदेश की राजधानी इंदौर में हुआ था। इंदौर का सिख मोहल्ला जहां उनका जन्म हुआ और बचपन के कुछ दिन बीते वहां मैं 5 साल तक यहां रहता था, उस वक्त मैं इंदौर के एक प्रतिष्ठित दैनिक समाचार पत्र नईदुनिया में कार्यरत् था। सिख मोहल्ला का हर व्यक्ति, उनकी याद करता था, उन्हें गर्व था कि स्वर साम्रज्ञी लता दीदी उनके मोहल्ले में जन्मी और बचपन के कुछ दिन बिताए। सिख मोहल्ला, के नजदीक है काछी मोहल्ला वहां आज भी एक बेकरी की दुकान है, इस दुकान के संचालक भगवान के साथ लता मंगेशकर की रोज पूजा करते हैं।
हेमा से लता तक का कैसा था सफर
लता दीदी का नाम हेमा था लेकिन बाद उन्हें लता के नाम से जाना जाने लगा। उन्होंने अपने पिता के एक नाटक में लतिका नाम से एक किरदार निभाया था, तब से सभी उन्हें लता नाम से बुलाने लगे और उनका नाम लता ही पड़ गया। उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर शास्त्रीय संगीत गायक में पारंगत थे।
लता मंगेशकर ने अपना पहला गाना ‘नताली’ मराठी फिल्म ‘किती हसाल’ (कितना हसोगे?) (1942) में गाया था। उन्हें सबसे फिल्मों में बड़ा ब्रेक फिल्म महल से मिला। उनका गाया ‘आएगा आने वाला’ आज भी लोगों की जुबां पर रहता है। लता मंगेशकर अब तक 20 से अधिक भाषाओं में 30000 से अधिक गाने में अपनी आवाज की जीवंतता को जिंदा रखा हुआ है।
उन्होंने 1980 के बाद से फ़िल्मो में गाना कम कर दिया और स्टेज शो पर अधिक ध्यान देने लगी। लता मंगेशकर ने आनंद घन बैनर तले फिल्मों का निर्माण भी किया है और संगीत भी दिया है। एक बात उनके बारे में ख़ास है और वो यह कि वो हमेशा नंगे पैर गाना गाती थीं।
…तो क्या इसलिए नहीं की लता दीदी ने शादी!
लता मंगेशकर ने एक बार इंटरव्यू में बताया था कि घर में वह सबसे बड़ी थीं, इसलिए उन पर जिम्मेदारियों भी कई थीं। ऐसे में कई बार शादी का ख्याल आता भी था तो उस पर अमल नहीं कर सकती थीं। बेहद कम उम्र में ही लता दी काम करने लगी थी और काम उनके पास बहुत रहता था।
हालांकि, उस दौर में, इस तरह की खबरें भी सिने मैगजीन में प्रकाशित हुई कि लता मंगेशकर का आनंदघन नाम के संगीत निर्देशक से करीबी रिश्ता था। आनंदघन ने 60 के दशक में चार मराठी फिल्मों में संगीत दिया। लेकिन बाद में पता चला कि आनंदघन कोई व्यक्ति नहीं बल्कि लता मंगेशकर खुद नाम बदलकर फिल्मों में संगीत देती थीं। सन् 1950 में उन्होंने अपने असली नाम के जरिए भी एक मराठी फिल्म का संगीत दिया था, फिल्म थी राम राम पाव्हणं, लेकिन ये सिलसिला जल्द ही थम गया।
मराठी फिल्म साधी माणस को सर्वश्रेष्ठ संगीत का पुरस्कार मिला था. लेकिन लता मंगेशकर अपनी सीट पर शांत बैठी रहीं। तब किसी ने बताया कि संगीत आनंदघन कोई और नहीं लता मंगेशकर हैं। मशहूर निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी ने लता मंगेशकर को फिल्म आनंद का संगीत देने का आग्रह किया, लेकिन लता दीदी ने इनकार कर दिया था।
कौन था वो जो दे रहा था स्वर साम्रज्ञी को जहर?
ये 1962 कि बात है, जब मैं एक महीने के लिए बीमार हो गई थी। मेरे पेट का एक्सरे लिया गया और मुझे बताया गया कि मुझे धीमा जहर दिया गया है। हमारे घर पर एक ही नौकर था जो खाना बनाता था। उस दिन वो नौकर बिना बताए चला गया। पैसे भी नहीं लिए। तब हमें लगा कि किसी ने उसे हमारे घर पर स्थापित किया था। हम नहीं जानते वो कौन था। तीन महीने तक मैं बिस्तर पर थी। तब मजरूह साहब ने मेरी मदद की। वो रोज़ शाम को घर आते और तीन महीने तक सिलसिला जारी रहा। मैं जो खाती, वो भी वही खाते।
– लेखिका नसरीन मुन्नी कबीर द्वारा लता मंगेशकर से इंटरव्यू पर आधारित किताब ‘लता मंगेशकर इन हर ऑन वॉयस‘ के अंश.
स्वर कोकिला पर कई आरोप भी लगे कि उनकी वजह से कई गायिकाओं को काम नहीं मिलता था लेकिन इससे इतर सच तो यह है कि ज्यादातर फिल्मकार और संगीतकार लता को छोड़कर अन्य किसी से गाना गवाना ही नहीं चाहते थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि दूसरा कोई उनके गाने के साथ न्याय नहीं कर पाएगा।
उदाहरण के लिए राज कपूर फिल्म ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ के टाइटल गीत के लिए महीनों तक लता के अनुमति होने का इंतजार करते रहे, लेकिन अन्य किसी गायक से उन्हें यह गीत गवाना गवारा नहीं था। लता और राज कपूर के बीच कुछ दिनों तक मनमुटाव (रॉयल्टी विवाद के दौरान) था। तब फिल्म इंडस्ट्री के सबसे बड़े शोमैन ने लता को राजी करने के लिए गीतकार पंडित नरेंद्र शर्मा की मदद ली थी।
तब रॉयल्टी के लिए की बुलंद आवाज
कहते हैं कि अपने शिखर के दिनों में लता ने एकाधिकार बना रखा था। लेकिन ऐसा नहीं था सिने बिजनेस के कारण वो संगीतकारों की पहली पसंद थीं, उनके गाने उस दौर में प्रसिद्धी की ऊंचाईयों को छूते थे। उन्होंने गायकों के अधिकारों के लिए उन्होंने अपनी आवाज बुलंद की थी। 1960 के दशक की शुरूआत में साथी गायकों की लड़ाई का नेतृत्व किया था ताकि म्यूजिक कंपनियां प्रड्यूसर को जो रॉयल्टी दे रही थीं, उसका एक हिस्सा गायकों को भी दें, इस पर उन्होंने नेतृत्व कर गायक गायिकाओं को रॉयल्टी दिलवाई।
उनकी आवाज़ से चेहरे बनते हैं। ढेरों चेहरे,जो अपनी पहचान को किसी रंग-रूप या नैन -नक्शे से नहीं, बल्कि सुर और रागिनी के आइनें में देखने से आकार पते हैं। एक ऐसी सलोनी निर्मिती, जिसमे सुर का चेहरा दरअसल भावनाओं का चेहरा बन जाता है। कुछ-कुछ उस तरह,जैसे बचपन में पारियों की कहानियों में मिलने वाली एक रानी परी का उदारता और प्रेम से भीगा हुआ व्यक्तित्व हमको सपनों में भी खुशियों और खिलोंनों से भर देता था। बचपन में रेडियों या ग्रामोफोन पर सुनते हुए किसी प्रणय-गीत या नृत्य की झंकार में हमें कभी यह महसूस ही नही हुआ कि इस बक्से के भीतर कुछ निराले द्गंग से मधुबाला या वहीदा रहमान पियानो और सितार कि धुन पर थिरक रही हैं, बल्कि वह एक सीधी-सादी महिला कि आवाज़ कम झीना सा पर्दा है, जिस पर फूलों का भी हरसिंगार कि पंखुरियों का रंग और धरती पर चंद्रमा कि टूटकर गिरी हुई किरणों का झिलमिल पसरा है।
– लेखक यतींद्र मिश्र की किताब ‘लता-सुर गाथा’ के अंश.
सुरीली, दिव्य और सुनकर ठहर जाने की चाह पैदा करने वाली आवाज, अब प्रकृति से ओझल हो चुकी है लेकिन ये आवाज हमेशा जिंदा रहेगी रिकॉर्ड के जरिए और …हम सभी के यादों में!
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