- गौतम चिकरमने, आर्थिक विशेषज्ञ।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट में बड़े-बड़े एलान नहीं हैं। इसका नज़रिया हक़ीक़त पेश करने वाला है। चमक दमक से दूर ये बजट ठीक वैसा ही है, जैसा केंद्र सरकार के बजट को होना चाहिए।
प्राचीन भारत के एक जरूरी विचार पर आधारित वर्ष 2020 के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का बजट उन दो चुनौतियों से निपटने का नज़रिया पेश करता है, जो आज आधुनिक भारत के सामने खड़ी हैं विकास और उसका जुड़वां भाई कल्याण।
अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने महाभारत के शांति पर्व के एक उद्धरण का ज़िक्र किया, ‘राजा को हमेशा जनता की भलाई के लिए काम करना चाहिए और राज्य का शासन बिनी किसी लापरवाही के धर्म के अनुकूल चलाना चाहिए और इसके साथ-साथ जनता से इस तरह से कर वसूलना चाहिए जो धर्म के हिसाब से उचित हों।’
आज इक्कीसवीं सदी में भी भारत के नीति निर्माता समुदाय और राजनीतिक अपेक्षाएं वही हैं, जो आज से पांच हज़ार साल पहले थीं और ये जनता के बीच संपत्ति के उचित बंटवारे के बग़ैर संपत्ति अर्जित करने की इजाज़त नहीं देतीं।
अपने, पहले के वित्त मंत्रियों की तरह निर्मला सीतारमण का बजट भी एक साथ दो समानांतर रास्तों पर चलता दिखता है। अपने छोटे से बजट भाषण में वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार का लक्ष्य ‘आर्थिक विकास के व्यापक पहलुओं पर ज़ोर देने के साथ साथ ज़मीनी स्तर पर सबका कल्याण करना है।’
इसके बावजूद ये ऐसा बजट है जो विकास की राह प्रशस्त करेगा। विपक्ष इस बजट से नफ़रत करेगा। निजी उद्यमी, फिर चाहे वो छोटे हों या बड़े, इसे पसंद करेंगे और जहां तक शेयर बाज़ार का सवाल है, तो थोड़े बहुत उतार चढ़ाव के साथ इस बजट को ये देखते हुए स्वीकार करेगा कि भले ही आज दुनिया भर के बाज़ारों में उठा-पटक मची हुई हो, लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था की बुनियादें मज़बूत हैं।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक़, भारत वर्ष 2022 में 9 प्रतिशत की दर से विकास करेगा। भारत के आर्थिक सर्वेक्षण में अनुमान लगाया गया है कि वित्त वर्ष 2022-23 में भारत की विकास दर 8 से 8.5 प्रतिशत के बीच रहेगी।
आर्थिक विकास में सबसे बड़ी भूमिका सार्वजनिक पूंजी निवेश की होगी। महामारी के बाद के दौर में भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था बनकर उभरा है। इसके बावजूद मौजूदा क्षमताओं के उपयोग और क्षमताएं बढ़ाने के लिए निवेश के नए दौर के बीच एक बड़ा फ़ासला रहेगा। ये स्पष्ट है कि इस बीच में विकास की रफ़्तार तेज़ करने की ज़िम्मेदारी करदाता को ही उठानी होगी। इसी भावना से बजट में पूंजीगत व्यय को 35.4 प्रतिशत बढ़ाकर 7.5 लाख करोड़ (या 100 अरब अमेरिकी डॉलर) करने का प्रस्ताव बजट में रखा गया है। ये रक़म 2019-20 के बजट से 2.2 गुना ज़्यादा है।
वित्त-मंत्री ने कहा कि निजी निवेश में सहयोग के लिए सरकार का ये पूंजीगत निवेश ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि, ‘वर्ष 2022-23 में सार्वजनिक निवेश को अगुवाई करना जारी रखना होगा, जिससे कि निजी निवेश और मांग की गति बनाए रखी जा सके।’
निजी क्षेत्र में पूंजी निवेश
इसका मतलब है कि न केवल निर्मला सीतारमण सरकार का ख़ज़ाना उस जगह लगा रही हैं, जहां निवेश बढ़ाना सरकार का लक्ष्य है, बल्कि वो आर्थिक गतिविधियों में सक्रिय उन लोगों की बातें भी सुन रही हैं, जो ज़मीनी हक़ीक़त से बाख़बर हैं, और बजट के ज़रिए सार्वजनिक नीति निर्माण संबंधी परिचर्चा का हिस्सा रहे हैं।
अभी तीन महीने भी नहीं हुए होंगे, जब आदित्य बिरला ग्रुप के चेयरमैन कुमार मंगलम बिरला ने भविष्यवाणी की थी कि आने वाले दशक में निजी क्षेत्र से भारी मात्रा में पूंजी निवेश होगा। उन्होंने इसे ‘कैपेक्स महोत्सव’ का ख़ूबसूरत नाम भी दिया था।
मुमकिन है कि वित्त मंत्री ने इस बयान को सुना हो और निजी क्षेत्र से पूंजी निवेश के संभावित महोत्सव की शुरुआत सरकारी पूंजी व्यय बढ़ाने का दिया जलाकर की हो। आप कह सकते हैं कि महज़ 100 अरब डॉलर से क्या होता है और हो सकता है कि आप सही हों।
लेकिन, कल्याणकारी राजनीति के दायरे में रहते हुए निर्मला सीतारमण ने बहुत अच्छा काम किया है। एक कुशल परिवहन और लॉजिस्टिक व्यवस्था के बग़ैर कोई भी अर्थव्यवस्था तरक़्क़ी नहीं कर सकती है। इस मामले में बजट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मल्टी मोडल कनेक्टिविटी वाले नेशनल मास्टर प्लान या गति शक्ति पर बहुत ज़ोर दिया है। इसमें सड़कों, रेलवे, मल्टी-मोडल परिवहन, मल्टी-मोडल लॉजिस्टिक पार्क, शहरी परिवहन और कनेक्टिविटी, रोप-वे और इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए क्षमता का निर्माण करना शामिल है। इनमें से हर पहलू अपने आप में विकास को बढ़ावा देने वाला है।
अगर हम बजट के व्यापक दृष्टिकोण की बात करें, तो वित्त वर्ष, 2022-23 में राजकोषीय घाटा 6.4 प्रतिशत रहने का अनुमान है। ये साल 2021-22 के बजट अनुमानों से 0.40 फ़ीसद कम है और संशोधित आकलन से 0.50 प्रतिशत कम है। आज जबकि चीन से पैदा हुई महामारी का क़हर जारी है, तो ऐसे हालात में वित्त वर्ष 2022-23 में राजकोषीय घाटे के अनुमान से 0.10 से 0.20 तक बढ़ने से इनकार नहीं किया जा सकता है।
लेकिन, आज जो कुछ बजट के दायरे के बाहर हो रहा है, उससे ज़्यादा उम्मीद जगती है। जनवरी 2022 में GST की वसूली 1.4 लाख करोड़ से ज़्यादा यानी अब तक की सबसे अधिक रही है। दूसरे शब्दों में कहें तो विकास का पहिया गतिशील है और ये दोबारा रफ़्तार पकड़ रहा है। अगर सरकारी ख़र्च के प्रबंधन को दुरुस्त कर लिया जाए, तो वित्तीय घाटे के आख़िरी आंकड़े में शायद कुछ और कमी आ जाए।
हां, हम सबको ये पता है कि दुनिया की सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं यानी G20 देशों ने वित्तीय घाटे को नैतिक रूप से अलविदा कह दिया है। लगभग हर देश वित्तीय घाटे के मामले में तय सीमा से आगे बढ़ चुका है। ऐसे में सिर्फ़ भारत पर इसे लेकर उंगली उठाना जायज़ नहीं होगा।
क्रिप्टो करेंसी को वैधानिकता
2022 के बजट ने क्रिप्टोकरेंसी के नियमन की एक बड़ी कमी को दो नीतिगत क़दमों से दूर किया है। बहुत से निवेशकों ने क्रिप्टो करेंसी में पैसा लगाया है, जो निजी ताक़तों की मुट्ठी में बंद एक ख़याल से ज़्यादा कुछ नहीं हैं।
दुखी तो वो देश होंगे, जो अपनी मुद्रा को निजी हाथों में सौंप देते हैं। एक तरफ़ तो वित्त मंत्री ने इस वित्त वर्ष में रिज़र्व बैंक द्वारा डिजिटल रुपया लॉन्च किए जाने का ऐलान किया है। इस क़दम से भारत अपनी अर्थव्यवस्था में धन की गतिविधि को नई रफ़्तार दे सकेगा। अपनी मुद्रा के प्रबंधन को नई ताक़त देकर तरक़्क़ी को ऊर्जा दे सकेगा। इसके साथ-साथ, वित्त मंत्री ने 2022 के बजट में वर्चुअल डिजिटल संपत्तियों पर 30 फ़ीसद कर का भारी बोझ भी डाला है, जिसे किसी भी तरह की कोई टैक्स रियायत हासिल नहीं होगी और न ही डिजिटल संपत्तियों से हुए नुक़सान की भरपाई किसी अन्य स्रोत से होने वाली आमदनी से की जा सकेगी।
इसके अलावा क्रिप्टो करेंसी के लेन-देन पर 1 प्रतिशत टैक्स लगाने का भी ऐलान का गया है। इस क़दम को इस तरह से भी देखा जा सकता है कि क्रिप्टो करेंसी में निवेश को वैधानिकता दी गई है। इसी बात को दूसरे तरीक़े से इस तरह देखा जा सकता है कि क्रिप्टो करेंसी की आमदनी पर टैक्स का इतना भारी भरकम बोझ लाद दिया गया है।
तमाम अन्य बातों के साथ, बजट की एक और ख़ूबी का ज़िक्र बहुत कम हुआ है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि हाल के वर्षों में, ‘केंद्र सरकार के 1486 क़ानून ख़त्म कर दिए गए और 25,000 से ज़्यादा नियमों को हटाया गया है’, जो क़ानून ख़त्म किए गए हैं, उनके बारे में जानकारी सार्वजनिक है।
लेकिन, जो 25,000 हज़ार नियम हटाएं गए हैं, उनके बारे में जानकारी के लिए हमें सरकार की ओर से अधिसूचना जारी होने का इंतज़ार है। अगर हम इस संख्या पर विश्वास कर लें, तो ये कारोबार करने में सहूलत देने की दिशा में बहुत बड़ा क़दम है।
ऐसा क़दम जो आर्थिक विकास को और ताक़त देगा। एक आशंका जो अक्सर ज़ाहिर की जाती है, वो ये है कि कारोबार से जुड़े ज़्यादातर नियम तो राज्य सरकारों के स्तर पर लगाए जाते हैं, न कि केंद्र सरकार के, जबकि दोनों ही क़ानून एक दूसरे से जुड़े हुए होते हैं।
राज्य सरकारों द्वारा इन नियम क़ायदों को ख़त्म करने के लिए काफ़ी मशक़्क़त करनी होगी। केंद्र सरकार, बीजेपी शासित राज्यों के साथ इस दिशा में एक शुरुआत कर सकती है।
एक वक़्त था जब केंद्रीय बजट, केंद्र सरकार का एक प्रमुख वार्षिक नीतिगत दस्तावेज़ हुआ करता थाय़ 1991-92 में तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह द्वारा पेश किए गए बजट के बाद से बजट पेश किया जाना एक अहम घटना बन गया, जिसका बेसब्री से इंतज़ार किया जाता था और जिसे मीडिया भी काफ़ी तवज्जो देता था।
लेकिन, 2014 के बाद से बजट भाषण आम कारोबारी ऐलान जैसे हो गए हैं। 21वीं सदी के आर्थिक किरदारों की ज़रूरत के हिसाब से नीति निर्माण भी विचारों का पूरे साल चलने वाला आदान-प्रदान बन गया है, जो अब सिर्फ़ एक दस्तावेज़ तक सीमित नहीं रहा।
उसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए, निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किया गया वित्त वर्ष 2022 का बजट विकास के नए आत्मविश्वास से भरपूर नज़र आता है। इसमें बड़ी बड़ी कल्याणकारी योजनाओं का ऐलान नहीं है। इसका नज़रिया हक़ीक़त पर आधारित है। इसमें चमक दमक भी नहीं है। ये ठीक वैसा ही है, जैसा किसी भी केंद्रीय बजट को होना चाहिए।
This article first appeared on Observer Research Foundation.
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