प्रतीकात्मक चित्र।
- संत राजिन्दर सिंह, आध्यात्मिक गुरु।
विज्ञान हमेशा उन चीज़ों को समझने की कोशिश करता रहता है जो समझ से बाहर होती हैं, उन चीज़ों को सुलझाने की कोशिश करता है जो सुलझाई नहीं जा सकतीं, और उन चीज़ों को जानने की कोशिश करता है जो जानी नहीं जा सकतीं। वैज्ञानिक, जीवन की गुत्थियों को सुलझाने के लिए अपने आपको समर्पित कर देते हैं। इंसान की ज्ञान की प्यास के कारण ही, हम जीवन के सभी पहलुओं का गहन अध्ययन करते हैं, ताकि सभी चीज़ों का क्यों और कैसे जान सकें।
इंसान केवल सितारों को देखकर ही संतुष्ट नहीं होता, वो सितारों के बीच उड़कर यह जानना चाहता है कि हम कौन और क्या हैं, और हम कहाँ से आए हैं। हम केवल समुद्र में तैरकर ही संतुष्ट नहीं हैं, हम उसकी गहराई में जाकर यह जानना चाहते हैं कि वहां क्या मौजूद है।
इंसान ख़ुद को आईने में देखकर ही संतुष्ट नहीं हो जाता, वो अपने शरीर के हरेक परमाणु का ही परीक्षण नहीं करना चाहता, बल्कि उस आनुवांशिक कोड को भी समझना चाहता है जोकि हमारी ‘नियमावली’ है, जो हमें बताती है कि हमारा शरीर कैसे और किसलिए बना है, तथा हमारे शरीर जैसा दिखता है और जो कार्य करता है, वो क्यों करता है।
विज्ञान हमेशा क्या, क्यों, और कैसे के जवाब पाने के लिए उत्सुक रहता है। इंसानों की क्या, क्यों, और कैसे के जवाब पाने की आंतरिक जिज्ञासा ही विज्ञान को उसकी उत्सुकता प्रदान करती है। केवल सितारों और ग्रहों को देखकर ही संतुष्ट ने होने के कारण, इंसानों ने चांद पर चलने के, तथा दूर-दूर स्थित ग्रहों के और हमारी आकाशगंगा के चित्र लेने के लिए सैटेलाइट्स भेजने के तरीके ढूंढ निकाले हैं। हमने मंगल ग्रह पर चलने वाली मशीनें बना ली हैं, ताकि वहां की मिट्टी और पत्थरों का अध्ययन करके पानी व जीवन के चिह्न ढूंढ सकें।
कौन सोच सकता है कि इंसानों का एक समूह, एक अंतरिक्ष-यान को सुरक्षित रूप से किसी दूसरे ग्रह, जैसे कि मंगल, पर उतार सकता है, वहां की ज़मीन पर गोल्फ़ कार्ट के आकार की दो मशीनी प्रयोग-शालाओं को उतार सकता है, और यहीं पृथ्वी पर बैठे-बैठे उन प्रयोग-शालाओं को ठीक भी कर सकता है? क्या यह असाधारण नहीं है कि इंसान जब दृढ़ निश्चय कर ले तो वो कुछ भी कर सकता है!
लोगों ने इंसानी जीवन के पूरे आनुवांशिक कोड का खाका तैयार कर लिया है, जिससे पता चलता है कि हम ऐसे क्यों दिखते हैं जैसे हम दिखते हैं, और हम सभी के बीच जो हल्के से फ़र्क हैं, वो क्या हैं। यह बात विस्मयकारी है कि शोधकर्ताओं द्वारा इंसानी जिनोम पर किए गए परीक्षणों के अनुसार, 99 से लेकर 99.9 प्रतिशत तक सभी इंसान बिल्कुल एक समान हैं, और हमारे बीच का फ़र्क केवल 0.1 से लेकर 1 प्रतिशत तक ही है, जिस कारण हमारे बालों, आंखो, और त्वचा का रंग और आकार अलग-अलग होता है।
इसी प्रकार, दूसरे क्षेत्रों में भी इसी प्रकार की तरक्की की जा चुकी है। जब हम मानव इतिहास के शुरुआत से लेकर अब तक हुई वैज्ञानिक खोज व प्रगति की ओर देखते हैं, तो हम पाते हैं कि इस सबके पीछे मानवता की कुछ सवालों के जवाब पाने की ज्वलंत इच्छा ही हैः हम कौन हैं, हम क्या हैं, हम यहाँ क्यों आए हैं, हम यहां कैसे पहुंचे, और अपने शारीरिक अस्तित्व का अंत हो जाने के बाद हम कहाँ चले जाते हैं। इस तलाश में हमें जीव-विज्ञान, भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र, खगोलशास्त्र, भू-विज्ञान, क्वॉन्टम भौतिकी, और अन्य क्षेत्रों द्वारा कुछ आंशिक जवाब प्राप्त हुए हैं।
कम ही लोग जानते हैं कि यही सारे सवाल एक अन्य विज्ञान के मूल में भी स्थित हैं, जिसे अध्यात्म कहा जाता है। अध्यात्म एक ऐसा विज्ञान है जो उन्हीं सवालों के जवाब पाने की कोशिश करता है जिन्हें परंपरागत वैज्ञानिक भी ढूंढना चाहते हैं। अध्यात्म भी यही जवाब पाना चाहता है कि हम कौन हैं, हम यहाँ क्यों आए हैं, हम यहां कैसे पहुंचे, और अपने शारीरिक अस्तित्व का अंत हो जाने के बाद हम कहां चले जाते हैं।
अपने वास्तविक अर्थ में अध्यात्म एक वैज्ञानिक क्षेत्र है, जो उन ताकतों को जानने का प्रयास करता है जिनसे सभी ज्ञात पदार्थों, ग्रहों, पृथ्वी, इंसानों, पशुओं, रसायनों, परमाणुओं, क्वाकर्स, और जीन्स की उत्पत्ति हुई है। रसायनशास्त्र, जीव-विज्ञान, खगोलशास्त्र, भू-विज्ञान, और भौतिकशास्त्र के प्रमुख क्षेत्रों से जुड़े वैज्ञानिक यह निष्कर्ष निकालने में सफल रहे हैं कि हम सभी भौतिक पदार्थ से बने हैं, लेकिन वो अभी तक यह पता नहीं कर पाए हैं कि हम और यह भौतिक जगत कैसे और क्यों अस्तित्व में आए हैं।
अध्यात्म इन सभी सवालों के जवाब प्रदान करने की कोशिश करता है। वो इस सिद्धांत से शुरुआत करता है कि एक सत्ता है, जिसने इस संपूर्ण सृष्टि का निर्माण किया है। लेकिन, विज्ञान की तरह, अध्यात्म केवल सिद्धांतों से ही संतुष्ट नहीं होता; वो ऐसे प्रमाण की तलाश करता है जिसे बार-बार दोहराया जा सके।
दरअसल, अध्यात्म का अध्ययन उसी तरीके से किया जाता है जैसे विज्ञान का। वैज्ञानिक तरीके में, हम एक परिकल्पना या अवधारणा से शुरुआत करते हैं। फिर, हम उस प्रक्रिया और/या सामग्री की योजना बनाते हैं जो हम उस अवधारणा का परीक्षण करने के लिए इस्तेमाल करेंगे। हम अपनी योजना का पूरी तरह से पालन करते हैं और अपने नतीजों या आंकड़ों को रिकॉर्ड करते हैं। यह सब पूरा होने के बाद, हम इन आंकड़ों का विश्लेषण करते हैं और किसी निश्चित परिणाम या निष्कर्ष तक पहुंचते हैं। क्या हमारी अवधारणा सही थी या गलत? हमारे आंकड़े या तो हमारी अवधारणा को प्रमाणित करते हैं या उसे खारिज करते हैं। हमारी अवधारणा तब बिल्कुल सही प्रमाणित होती है जब हम अपने नतीजों को उन्हीं स्थितियों में बार-बार दोहरा पाते हैं।
यही तरीका अध्यात्म के अध्ययन के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। अध्यात्म अंधविश्वास में यकीन नहीं रखता; उसे वैज्ञानिक तरीके का इस्तेमाल करके प्रमाणित किया जा सकता है। अध्यात्म इस अवधारणा का व्यक्तिगत परीक्षण करना है कि हमारे अंदर एक उच्चतर सत्ता मौजूद है, और उस सत्ता को हम स्वयं अनुभव कर सकते हैं।
विज्ञान का आधार यही है कि हम किसी अवधारणा को स्वयं प्रमाणित कर पायें। अध्यात्म का विज्ञान भी यही कहता है कि हम स्वयं उसका अनुभव करें। अध्यात्म के क्षेत्र का वैज्ञानिक आपको वो तरीका सिखाता है जिसे उसने स्वयं सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया है, और वो आपको भी इसे आज़माने के लिए कहता है। अपने शरीर रूपी प्रयोगशाला में स्वयं इस अवधारणा का परीक्षण करके ही हम स्वयं इसका प्रमाण हासिल कर सकते हैं। तो ऐसा वैज्ञानिक हमें कौन सा तरीका सिखाता है? वो अपने अंतर में ध्यान टिकाने का तरीका है।
इस वक़्त, हमारा ज़्यादातर ध्यान बाहरी संसार तथा अपने शरीर की ओर जा रहा है। हम इस दुनिया और अपने शरीर के प्रति अपने ध्यान के कारण ही चैतन्य हैं। हमारा ध्यान, हमारी पांच इंद्रियों के द्वारा इस बाहरी संसार और अपने शरीर की तरफ़ जा रहा है। अपनी इंद्रियों के ज़रिए हम देखने, सुनने, सूँघने, चखने, और स्पर्श की दुनिया में खिंचे चले जाते हैं। इन इंद्रियों के द्वारा ही हम इस संसार को और अपने शरीर को अनुभव करते हैं।
यदि हम अपनी इंद्रियों को अपने भीतर एक बिंदु, जिसे हमारी चेतनता या आत्मा की बैठक कहा जाता है, तथा जो दोनों भौंहों के पीछे और बीच में स्थित है, पर खींच लें, तो हमारा ध्यान वहाँ एकाग्र हो जाएगा। जब हमारा पूरा ध्यान इस बिंदु पर स्थिर हो जाता है, तो हम आंतरिक ज्योति को देख पाते हैं और आंतरिक श्रुति को सुन पाते हैं। इस आंतरिक प्रकाश व ध्वनि पर और अधिक ध्यान टिकाने से, हमारे अंदर का चेतन अंश इसे अधिक से अधिक मात्रा में अनुभव करता जाएगा। हम ऐसे प्रकाश और ध्वनि का अनुभव कर पायेंगे जैसा हमने इस भौतिक संसार में कभी भी नहीं किया होगा। हम ज्योति और श्रुति से भरपूर एक ऐसी दुनिया में प्रवेश कर जायेंगे जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की होगी।
यदि आप आध्यात्मिक विज्ञान में ध्यानाभ्यास का तरीका खोजना चाहें तो यह तरीका बहुत आसान है। साइंस ऑफ़ स्पिरिच्युएलिटी द्वारा सिखाई जाने वाली ध्यानाभ्यास विधि में, हम स्वयं यह प्रमाणित कर सकते हैं कि हमारे अंदर प्रकाश, ध्वनि, उच्चतर चेतनता, और विवके की शक्ति मौजूद है। हम दूसरों को इस सच्चाई का विश्वास नहीं दिला सकते, और केवल किसी के शब्दों में यक़ीन कर लेने से किसी को कोई फ़ायदा होगा भी नहीं; सच्ची परीक्षा तो यही है कि हम स्वयं प्रयोग करें और स्वयं इसका अनुभव करें।
आध्यात्मिक विज्ञान एक ऐसा विज्ञान है जिसका अभ्यास कोई भी कर सकता है। जिस तरह हम इस भौतिक संसार को समझने के लिए बाहरी विज्ञानों का सहारा लेते हैं, उसी तरह हम रोज़ाना अंदरूनी विज्ञान को भी समय दे सकते हैं, ताकि हम जीवन के सबसे बड़े रहस्य को सुलझा सकें, कि हम कौन हैं और हम यहां क्यों आए हैं।
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