वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, न्यूयॉर्क Published by: बशु जैन Updated Sat, 28 Sep 2024 10:45 PM IST
जयशंकर ने कहा कि पाकिस्तान की सीमा पार आतंकवाद की नीति कभी सफल नहीं होगी। भारत और पाकिस्तान के बीच अब केवल एक ही मुद्दा सुलझाया जाना है और वह है पाकिस्तान द्वारा अवैध रूप से कब्जाए गए भारतीय क्षेत्र को खाली कराने का मामला। उन्होंने पाकिस्तान के मौजूदा हालात को लेकर उसके कर्मों को जिम्मेदार ठहराया। एस जयशंकर – फोटो : एक्स/जयशंकर
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संयुक्त राष्ट्र महासभा के 79वें सत्र को भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने बीते दिन पाकिस्तान के बेतुके बयान का जवाब दिया। उन्होंने पड़ोसी मुल्क के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को उनके कश्मीर राग के लिए जमकर लताड़ा। उन्होंने कहा कि हमने कल इसी मंच से कुछ अजीबोगरीब और विचित्र बातें सुनीं। मैं भारत की स्थिति को बहुत स्पष्ट कर देना चाहता हूं। पाकिस्तान की सीमा पार आतंकवाद की नीति कभी सफल नहीं होगी। उसे सजा से बचने की कोई उम्मीद भी नहीं करनी चाहिए। इसके विपरीत कार्रवाई के निश्चित रूप से परिणाम होंगे। हमारे बीच हल किया जाने वाला मुद्दा केवल पाकिस्तान की ओर से अवैध रूप से कब्जाए गए भारतीय क्षेत्र को खाली करना और निश्चित रूप से आतंकवाद के साथ पाकिस्तान के लंबे समय से चले आ रहे लगाव को छोड़ना है।
आतंकवादियों को प्रतिबंधित करने में रोड़ा नहीं बनना चाहिए
जयशंकर ने कहा कि दुनिया बड़े पैमाने पर हिंसा जारी रहने के बारे में भाग्यवादी नहीं हो सकती, न ही इसके व्यापक परिणामों के प्रति अभेद्य हो सकती है। चाहे यूक्रेन में युद्ध हो या गाजा में संघर्ष, अंतरराष्ट्रीय समुदाय तत्काल समाधान चाहता है। इन भावनाओं को स्वीकार किया जाना चाहिए और उन पर कार्रवाई की जानी चाहिए। आतंकवाद दुनिया की हर उस चीज के विपरीत है, जिसका वह समर्थन करती है। इसके सभी रूपों और अभिव्यक्तियों का दृढ़ता से विरोध किया जाना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र द्वारा वैश्विक आतंकवादियों को प्रतिबंधित करने में भी राजनीतिक कारणों से बाधा नहीं डाली जानी चाहिए।
पाकिस्तान के लिए बोले- यह केवल कर्म है
उन्होंने कहा कि कई देश अपने नियंत्रण से परे परिस्थितियों के कारण पीछे छूट जाते हैं, लेकिन कुछ देश जानबूझकर ऐसे फैसले लेते हैं, जिनके परिणाम विनाशकारी होते हैं। इसका एक बेहतरीन उदाहरण हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान है। दुर्भाग्य से उनके कुकृत्यों का असर दूसरों पर भी पड़ता है, खास तौर पर पड़ोस पर। जब यह राजनीति अपने लोगों में इस तरह की कट्टरता भरती है। इसकी जीडीपी को केवल कट्टरता और आतंकवाद के रूप में इसके निर्यात के संदर्भ में मापा जा सकता है। आज हम देखते हैं कि दूसरों पर जो बुराइयां लाने की कोशिश की गई, वे उसके अपने समाज को निगल रही हैं। यह दुनिया को दोष नहीं दे सकता। यह केवल कर्म है। दूसरों की जमीनों पर लालच करने वाले एक बेकार देश को उजागर किया जाना चाहिए और उसका मुकाबला किया जाना चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र महासभा की थीम का समर्थन किया
इससे पहले उन्होंने कहा कि हम 79वें संयुक्त राष्ट्र महासभा की थीम किसी को भी पीछे न छोड़ने का पुरजोर समर्थन करते हैं। हम यहां एक कठिन समय में एकत्र हुए हैं। दुनिया को अभी भी कोविड महामारी के कहर से उबरना बाकी है। यूक्रेन में युद्ध का तीसरा साल चल रहा है। गाजा में संघर्ष जारी है।
उन्होंने कहा कि वास्तव में आपसी संघर्षों से दुनिया विखंडित, ध्रुवीकृत और निराश है। बातचीत मुश्किल हो गई है, समझौते तो और भी मुश्किल हो गए हैं। यह वैसा नहीं है जैसा संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक चाहते होंगे। शांति और समृद्धि दोनों खतरे में पाते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि विश्वास खत्म हो गया है और प्रक्रियाएं टूट गई हैं।
संयुक्त राष्ट्र में सुधार की बात
जयशंकर ने कहा कि देशों ने अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था से जितना अधिक निवेश किया है, उससे कहीं अधिक निकाला है। हम हर चुनौती और हर संकट में इसे स्पष्ट रूप से देखते हैं, इसलिए बहुपक्षवाद में सुधार करना अनिवार्य है। विभाजन, संघर्ष, आतंकवाद और हिंसा का सामना करने वाले संयुक्त राष्ट्र से यह काम नहीं हो सकता। ऐसे में न ही इसे तब आगे बढ़ाया जा सकता है, जब भोजन, उर्वरक और ईंधन तक पहुंच खतरे में पड़ जाए। समस्याएं संरचनात्मक कमियों, राजनीतिक षडयंत्रों, स्वार्थ और पीछे छूट गए लोगों के प्रति उपेक्षा के संयोजन से उत्पन्न होती हैं। हर बदलाव कहीं न कहीं से शुरू होना चाहिए और जहां से यह सब शुरू हुआ है, उससे बेहतर कोई जगह नहीं है। हम संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों को अब गंभीरता से और उद्देश्यपूर्ण तरीके से उस कार्य को पूरा करना चाहिए। इसलिए नहीं कि यह विदेशी प्रभावों की प्रतिस्पर्धा है, बल्कि इसलिए कि अगर हम इसी तरह चलते रहे, तो दुनिया की स्थिति और खराब हो जाएगी।
भारत की उपलब्धियां गिनाईं
जयशंकर ने कहा कि इस मुश्किल समय में आशा, उम्मीद और आशावाद को फिर से जगाना आवश्यक है। हमें यह दिखाना होगा कि बड़े बदलाव संभव हैं। जब भारत चांद पर उतरेगा, अपना खुद का 5G स्टैक तैयार करेगा, दुनिया भर में टीके भेजेगा, फिनटेक को अपनाएगा या इतने सारे वैश्विक क्षमता केंद्र बनाएगा, तो यहां एक संदेश छिपा है। विकसित भारत या विकसित भारत के लिए हमारी खोज का निश्चित रूप से बारीकी से पालन किया जाएगा। कई लोगों के पीछे छूट जाने का एक महत्वपूर्ण कारण वर्तमान वैश्वीकरण मॉडल की अनुचितता है। उत्पादन के अत्यधिक संकेंद्रण ने कई अर्थव्यवस्थाओं को खोखला कर दिया है, जिससे उनके रोजगार और सामाजिक स्थिरता पर असर पड़ा है।
आतंकवादियों को प्रतिबंधित करने में रोड़ा नहीं बनना चाहिए
जयशंकर ने कहा कि दुनिया बड़े पैमाने पर हिंसा जारी रहने के बारे में भाग्यवादी नहीं हो सकती, न ही इसके व्यापक परिणामों के प्रति अभेद्य हो सकती है। चाहे यूक्रेन में युद्ध हो या गाजा में संघर्ष, अंतरराष्ट्रीय समुदाय तत्काल समाधान चाहता है। इन भावनाओं को स्वीकार किया जाना चाहिए और उन पर कार्रवाई की जानी चाहिए। आतंकवाद दुनिया की हर उस चीज के विपरीत है, जिसका वह समर्थन करती है। इसके सभी रूपों और अभिव्यक्तियों का दृढ़ता से विरोध किया जाना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र द्वारा वैश्विक आतंकवादियों को प्रतिबंधित करने में भी राजनीतिक कारणों से बाधा नहीं डाली जानी चाहिए।
पाकिस्तान के लिए बोले- यह केवल कर्म है
उन्होंने कहा कि कई देश अपने नियंत्रण से परे परिस्थितियों के कारण पीछे छूट जाते हैं, लेकिन कुछ देश जानबूझकर ऐसे फैसले लेते हैं, जिनके परिणाम विनाशकारी होते हैं। इसका एक बेहतरीन उदाहरण हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान है। दुर्भाग्य से उनके कुकृत्यों का असर दूसरों पर भी पड़ता है, खास तौर पर पड़ोस पर। जब यह राजनीति अपने लोगों में इस तरह की कट्टरता भरती है। इसकी जीडीपी को केवल कट्टरता और आतंकवाद के रूप में इसके निर्यात के संदर्भ में मापा जा सकता है। आज हम देखते हैं कि दूसरों पर जो बुराइयां लाने की कोशिश की गई, वे उसके अपने समाज को निगल रही हैं। यह दुनिया को दोष नहीं दे सकता। यह केवल कर्म है। दूसरों की जमीनों पर लालच करने वाले एक बेकार देश को उजागर किया जाना चाहिए और उसका मुकाबला किया जाना चाहिए।
‘दुनिया बहुत बदल गई है’
जयशंकर ने कहा, ‘वैश्विक व्यवस्था स्वाभाविक रूप से बहुलवादी और विविधतापूर्ण है। संयुक्त राष्ट्र की शुरुआत 51 सदस्यों के साथ हुई थी, अब हम 193 हैं। दुनिया बहुत बदल गई है और इसलिए इसकी चिंताएं और अवसर भी बदल गए हैं। दोनों को संबोधित करने और व्यवस्था को मजबूत करने के लिए, यह आवश्यक है कि संयुक्त राष्ट्र आम जमीन खोजने के लिए केंद्रीय मंच बने और यह निश्चित रूप से कालबाह्य बने रहकर नहीं हो सकता। जब हमारे समय के प्रमुख मुद्दों पर निर्णय लेने की बात आती है तो दुनिया के बड़े हिस्से को पीछे नहीं छोड़ा जा सकता। एक प्रभावी, कुशल और अधिक प्रतिनिधि संयुक्त राष्ट्र, समकालीन युग में उद्देश्य के लिए उपयुक्त संयुक्त राष्ट्र आवश्यक है। इसलिए आइए हम इस UNGA सत्र से एक स्पष्ट संदेश दें- हम पीछे नहीं रहने के लिए दृढ़ हैं। एक साथ आकर, अनुभव साझा करके, संसाधनों को एकत्रित करके और अपने संकल्प को मजबूत करके, हम दुनिया को बेहतर के लिए बदल सकते हैं।’
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