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49 Years Of Sholay: इस आईकॉनिक फिल्म में 'गब्बर सिंह' का किरदार असली डकैत से था इंस्पायर

49 years of Sholay: शोले साल 1975 की एक्शन-एडवेंचर फिल्म थी, जिसका निर्देशन रमेश सिप्पी ने किया था और फिल्म के निर्माता जी.पी सिप्पी थे. इस आइकोनिक फिल्म के मुख्य किरदार अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र हैं, जिन्होंने फिल्म में दो पक्के दोस्त और क्रिमिनल जय-वीरू का किरदार निभाया था. आज फिल्म को रिलीज पुरे 49 साल हो गए हैं. इस मौके पर आज हम फिल्म से जुड़े कई किस्से आपको बताएंगे, जिन्हें जानकार आप हैरान रह जायेंगे.

सच्ची घटना पर आधारित है गब्बर का किरदार शोले की कहानी जय और वीरू नाम के दो दोस्तों की है, जिसे ठाकुर ने डकैत गब्बर सिंह से बदला लेने के लिए काम पर रखा था. फिल्म में जहां जय-वीरू का किरदार अमिताभ बच्चा-धर्मेंद्र ने निभाया तो वहीं, गब्बर सिंह का किरदार अमजद खान और ठाकुर का किरदार सजीव कुमार ने निभाया था. लेकिन ये बात आपको जानकार काफी हैरानी होगी कि फिल्म में गब्बर सिंह का किरदार असली डकैत गब्बर सिंह से प्रेरित है. दरअसल, सलमान खान के पिता ने एक ग्वालियर में रहने वाले बदमाश डकैत की कहानी सुनाई थी, जो कुत्ते पालता था कर पुलिस की नाक काटता था. यहीं से मेकर्स को फिल्म में गब्बर सिंह के किरदार को लेन की प्रेरणा मिली.

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हेमा मालिनी की वजह से वीरू के किरदार के लिए माने धर्मेंद्र शोले फिल्म में सबसे ज्यादा जिस किरदार पर फोकस किया गया था वह थे, गब्बर और ठाकुर. यही वजह थी कि फिल्म की पूरी स्क्रिप्ट पढ़ने के बाद धर्मेंद्र ठाकुर का किरदार निभाना चाहते थे. जिसके बाद डायरेक्टर रमेश सिप्पी ने बड़ी ही चालाकी से धर्मेंद्र को यह बात समझाई कि अगर ठाकुर का किरदार वह निभाते हैं और संजीव कुमार निभाते हैं तो फिल्म की आखिर में हेमा मालिनी संजीव कुमार की हो जाएंगी.

गब्बर का किरदार मिभाने के लिए सिर मुंडवाया शोले में जिस तरह धर्मेंद्र ठाकुर का किरदार निभाना चाहते थे ठीक उसी तरह संजीव कुमार गब्बर का किरदार निभाना चाहते थे. डायरेक्टर्स को खुश करने के लिए उन्होंने अपने दांतो को काला पेंट कर लिया था कर सिर भी मुंडवा लिया था. लेकिन आखिर में उन्हें फिल्म में ठाकुर का किरदार निभाना पड़ा था.

एक मिनट के सीन के लिए 20 दिन लगे शोले फिल्म में एक मिनट का एक सीन आता है, जब अमिताभ बच्चन हारमोनिका बजाते हैं और सूर्यास्त के समय राधा बनी जाया बच्चन दीपक जलाती है. बता दें कि इस एक मिनट के सीन को पूरा करने के लिए पुरे 20 दिन लगे थे क्योंकि मेकर्स को सूर्यास्त और रात के बीच के समय का जो आसमान का गोल्डन रंग आता है, उसे वे फिल्म में दिखाना चाहते थे.

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