चित्र : महाभारत युद्ध के दौरान कुरुक्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन युद्ध की शुरूआत के लिए शंख की ध्वनि का उद्घोष करते हुए।
धर्म हठधर्मिता का विषय नहीं है, बल्कि किसी भी स्थिति में, चाहे वह कितना ही कठिन क्यों न हो, सर्वोत्तम को संभव करने का विषय है। धर्म आस्था से जुड़ा है जो सीधे आपके सूक्ष्म मन तक दस्तक देता है और यह दस्तक हमें श्रीमद्भागवत गीता से मिलती है।
सनातन धर्म की धर्म पुस्तक, भगवान श्री कृष्ण के शब्दों का पुष्प, जीने की कला और सर्वोत्तम ज्ञान की पवित्र पुस्तक ऐसे अनेकानेक नामों से सुसज्जित श्रीमद्भागवत गीता वह पुस्तक है जिसे भारत की राष्ट्रीय पुस्तक के रूप में सबसे सुंदर शब्दों में वर्णित किया जा सकता है। सदियों से, वर्तमान तक ‘गीता’ सबसे लोकप्रिय, अमूमन पढ़ी जाने वाली, दुनिया की कई भाषाओं में अनुवादित और भारत की संस्कृति के अनुसार जीने के शिक्षा पर आधारित है। यह प्रतिस्पर्धा से परे है।
भारत को जानना है तो श्रीमद्भागवत गीता को पढ़ना होगा। इस पुस्तक की गहराई और जीवन के बारे में इसके गंभीर निर्देश, मानवीय बातचीत, मानव मनोविज्ञान के रहस्यों और उच्च चेतना की कुंजी को समझना होगा। गीता, भारत की सभी जटिलताओं, विरोधाभास, रहस्य और सुंदरता को दर्शाती है, यह शाश्वत और अनंत है। यदि हम गीता पढ़ रहे हैं तो इसके सभी स्तर के ज्ञान को आत्मसात कर जटिलताओं से भरा जीवन जीना चाहिए ऐसा करने पर पूरी तरह से तो नहीं लेकिन काफी हद तक जीवन सरल होने की संभावना बनती है।
श्रीमद्भागवत गीता, भगवान श्रीकृष्ण का ज्ञान है जो शब्दश: पुस्तक में मौजूद है। श्रीकृष्ण ईश्वर का रूप हैं और धरती पर एक ऐसे महामानव के रूप में जन्म लेते हैं जो दुनिया में, भारत की गहन योग संस्कृति और सभ्यता के प्रतिनिधि के रूप में आज भी मौजूद हैं। वो दिव्य अवतार, योगावतार, और उच्चतम क्रम के ऋषि के रूप में पहचाने जाते हैं, जो लोगों के सभी स्वभावों को कई तरह से रास्ता सिखाने और दिखाने में सक्षम हैं, उन्होंने मानवता को अपनी उच्चतम क्षमता प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया। श्री कृष्ण दिव्य व्यक्तित्व हैं एक अतुलनीय करिश्मा जो हम सभी के भीतर परमात्मा के अंश को प्रेरित करने का काम करते हैं, वो हमें बड़ी स्पष्टता और सटीकता के जीने की कला सिखाते हैं।
युद्ध के मैदान में श्रीमद्भागवत गीता की उत्पत्ति, सम्मोहक है। यह बताती है कि सारा जीवन प्रकृति, मानवता, विशेष रूप से धर्म और अधर्म की शक्तियों के भीतर और आसपास के कई द्वंद्वों के बीच का संघर्ष है। इतना सब कुछ होने के बाद भी, यह जीवन अच्छाई और बुराई के बीच एक साधारण और समान नहीं है। जीवन प्रकाश और अंधकार जैसा है यानी यहां सुख और दु:ख दोनों ही हैं, यह दोनों ही आते जाते रहते हैं। यहां नैतिक संघर्ष है, जिसमें सच और झूठ के विकल्प में से एक को चुनना होता है, यही आपकी जीवन की दिशा तय करता है।
जीवन विपरीत प्रभावों को लेकर, कई दिशाओं में चलता है। यह प्रतिस्पर्धी ताकतों के चक्रव्यूह में, आगे बढ़ने का संघर्ष है। गीता की शुरुआत में अर्जुन की तरह, दर्द और जटिलताओं से बचने के लिए, ‘संघर्ष नहीं करना’ हमारे लिए आसान है। हम जीवन को हमारे पास से गुजरने देते है। उसकी सीमाओं की निंदा करते हैं, और जो हम पहले ही तय कर चुके हैं, लेकिन यहां तय करने जैसा कुछ नहीं है। सब कुछ अनिश्चित है। जीवन संघर्ष है, सफलता इसी में है कि आप आगे चलते जाएं, रुकें नहीं।
भगवद गीता हमें रास्ता दिखाती है कि जब हमारे जीवन रूपी युद्ध में आदर्श परिस्थितियां कम हों तब सफल होने के लिए इसे सर्वोत्तम और संभव कैसे बनाया जा सकता है। गीता कहती है कि आपके पास ‘मन यानी चेतना’ जैसा शक्तिशाली हथियार है। यदि आप इसका उपयोग नहीं करते हैं तो केवल नकारात्मकता और जड़ता की ताकतें हावी होंगी, यही आपकी जीवन की दशा और दिशा तय करेगी, इसीलिए चेतना जागृत कीजिए।
यदि हम जीवन की कठिनाइयों का सामना नहीं करते हैं और उन पर विजय प्राप्त नहीं करते हैं, तो हम कमजोर रह जाते हैं और इस तरह अपने भीतर मौजूद के ईश्वर के अस्तित्व को खोजने में असफल हो जाते हैं। हम जीवन में अपने सर्वोच्च कर्तव्य की सेवा किए बिना, व्यक्तिगत स्तर पर तृप्ति नहीं पा सकते हैं। गीता हमारे व्यक्तिगत सार को दिखाती है लेकिन सार्वभौमिक होने के हिस्से के रूप में भगवान श्रीकृष्ण हैं।
गीता का अंतिम संदेश है कि मृत्यु नहीं है। कोई भी वास्तव में पैदा नहीं होता है या मर जाता है। हम शुद्ध चेतना के रूप में, आंतरिक दिव्य प्रकृति में अमर हैं। जन्म और मृत्यु केवल शरीर के होते हैं और आत्मा के लिए जीवन-मृत्यु केवल वस्त्र हैं। हमें मोक्ष की आवश्यकता नहीं है, बल्कि आत्म-ज्ञान की आवश्यकता है, जो हमारे अस्तित्व के मूल में है, बस इसे जागृत करना है ताकि बाहरी ताकतें आपको परेशान न कर पाएं।
महाभारत युद्ध मैदान में, अर्जुन की दुविधा, जीवन में हमारी आवश्यक चुनौतियों का प्रतिनिधित्व करती है। हम सभी अपूर्ण हैं, लेकिन एक उच्च पूर्णता की भावना रखते हैं जिसे हम बड़े प्रयास से जागृत कर सकते हैं। यदि हम अपने अंदर के अर्जुन को अपने भीतर जागृत कर लेते हैं तो जीवन में हमारी सफलता की कुंजी मिल जाती है, लेकिन इसके लिए यह भी आवश्यक है कि हम उनके असंख्य रूपों में भगवान श्रीकृष्ण की कृपा और मार्गदर्शन का ज्ञान यानी नियमित श्रीमद्भागवत गीता अध्ययन करें।
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